गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

वांकल माता का प्रसिद्ध धाम वीरातरा जन-जन की आस्था का केन्द्र

जन-जन की आस्था का केन्द्र चौहटन

चौहटन। वांकल माता का प्रसिद्ध धाम वीरातरा जन-जन की आस्था का केन्द्र है। वंाकल धाम वीरातरा में वर्ष में तीन बार मेले सजते हैं तथा नवरात्री एवं तेरस और चौहदस के दिन मेले सा माहौल रहता है। वांकल धाम पर लाखो की तादाद में श्रद्धालू अपने सुखद भविष्य की मन्नते मांगने आते हैं तथा देवी के चरणों में धोक लगाकर पूजा अर्चना करते हैं। वीरातरा धाम को लेकर कई मान्यताएं है, जिनके कारण यह स्थन जग प्रसिद्ध एवं श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। वांकल वीरातरा का अब काफी विस्तार होने के कारण अब इसे ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाता है तथा देव स्थान विभाग में पंजीकृत किया गया है।

हिरण भाखरी पर था मंदिर
वांकल माता वीरातरा का मंदिर दर्जनों वर्षो पहले वीरातरा की हिरण्य भाखरी की चोटी पर बना हुआ था। पहाड़ी के बीच विकट कठिन ऊंचाई पर चढ़ कर श्रद्धालू धोक लगाने जाते थे। बताया जाता है कि एक वृद्ध महिला पहाड़ी की ऊंचाई पर चढ़ते-चढ़ते थक गई। उसके पांवों ने जवाब दे दिया अैर वह हिम्मत हार गई। उस वृद्धा ने वांकल माता से पुकार की कि हे मां मै सच्चे मन से तुम्हारे दर्शन करने के लिए आई हंू, लेकिन मेरा यह वृद्ध शरीर ऊंची पहाड़ी के मंदिर तक नहीं जा पा रहा है, हे मां मुझे दर्शन दो।

वृद्धा की पुकार सुनकर वांकल माता उसकी भक्ति और आस्था पर प्रसन्न हुई और जोरदार कम्पन के साथ एक बड़ा पत्थर जमीन पर आ पहुंचा। यह पत्थर नीचे आते ही बीच में से फटा जहां से वांकल माता की प्रतिमा प्रकट हो गई। यह वृद्धा वांकल माता के दर्शन कर खुश हुई तथा हमेश के लिए एवं कठिन पहाड़ी पर नहीं चढ़ पाने वाले श्रद्धालूओं के लिए यहीं मंदिर बनाया गया।

धीरे-धीरे यह स्थान विस्तार करता रहा आज यहां संगमरमर के सुंदर पत्थरों बना मंदिर है। तीन साल पहले इस नवनिर्मित मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी, जिसका तीसरा पाटोत्सव 23 फरवरी को मनाया जा रहा है। मंदिर का शिलान्यास राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री व देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत द्वारा किया गया था। तीसरे पाटोत्सव में राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रतिपक्ष की नेता वसंुंधराराजे मुख्य अतिथ के रूप में आज यहां शिकरत करेंगी।

यह है मान्यता
मान्यता हे कि उज्ौन नगरी के राजा वीर विक्रमादित्य द्वारा हिंगलाज धाम पाक से हिंगलाज माता के मंदिर में तप-तपस्या, यज्ञ व पूजा अर्चना कर माता को प्रसन्न किया गया। वीर विक्रमादित्य की भक्ति एवं आस्था से प्रसन्न होकर मन्नत मांगने को कहा। वीर ने और कुछ भी नहीं मांगकर माता को अपने साथ उज्ौन चलने का निवेदन किया। हिंगलाज माता ने साथ चलने की हां कर दी, साथ उसे पीछे मुड़कर नहीं देखेन की हिदायत दी।

हिंगलाज धाम से माताजी को साथ लेकर वीर विक्रमादित्य हिरण्य भाखरी पर पहुंचे तथा यहां रात्रि लेकर विश्राम किया। रात्रि के अंधेरे में दिशा भ्रम होने से वीर का मुख्य पश्चिम की तरफ हो गया। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे वीर तेरा मुख पश्चिम की ओर हो गया है, अब इससे आगे तेरे साथ नहीं चल सकती। तुम्हें यहीं मंदिर बनाना होगा। वीर विक्रमादित्य ने हिंगलाज माता के आदेश से यही मंदिर बनवाया जिसे वांकल माता के मंदिर के रूप नामकरण हुआ साथ ही वीर के माताजी के साथ यहां रात्री विश्राम करने के कारण वीरातरा नाम दिया गया।

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