शनिवार, 28 जनवरी 2012

बहुओं के सपने साकार कर रही सासू माएं

भारतीय समाज में अक्सर सास की छवि बहुत नकारात्मक ढंग से पेश की जाती है। लेकिन राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले में बहुओं के सपने सासों के कारण ही साकार हो रहे हैं।


सामाजिक बदलाव के इस नए उदाहरण में गांवों में सरकारी नौकरियों के अवसरों ने योगदान दिया है। क्षेत्र की अनेक बहुओं ने ससुराल में रहते हुए सरकारी नौकरियां पाने में सफलता हासिल की है।

चैनी देवी [19] के माता-पिता ने आठवीं कक्षा के बाद उसका स्कूल छुडा़ दिया था और शादी कर दी थी। लेकिन आज वह अपनी सासू के प्रोत्साहन और गांव में सरकारी नौकरी की उम्मीद से स्नातक कक्षा की पढा़ई कर रही है।

महिला शिक्षा के क्षेत्र में एक दशक पूर्व तक अति पिछडे रहे बाड़मेर जिले में चैनी अकेली नहीं है। राजस्थान के बाड़मेर जिले में ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसरों के आकर्षण में कई शादीशुदा अनुसूचित जाति तथा जनजाति की महिलाओं ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है। अधिकांश मामलों में रोचक बात यह है कि इन महिलाओं के समर्थन में सबसे पहले उनकी सासू मां आई है जिनकी भारतीय समाज में अक्सर नकारात्मक छवि बनी हुई है।

शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. लक्ष्मी नारायण जोशी ने बताया कि 2000 से अधिक शादीशुदा महिलाएं ग्रामीण इलाकों में स्कूलों में आ रही है। इनमें से कुछ ऐसी है जिनकी शादी बहुत ही कम उम्र में हो गई थी और उन्होंने किताब का पन्ना भी खोलकर नहीं देखा। वे अपने पास पडो़स की उन महिलाओं का अनुसरण कर रही है जिन्हें पढा़ई करने के बाद सरकारी नौकरी मिल गई है।

उन्होंने कहा कि सैंकड़ों महिलाएं आंगनवाडी़ केन्द्रों से जुड़ रही हैं। इन महिलाओं को ग्रामीण इलाकों के लिए शुरू की गई विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायकों के रूप में नियुक्त किया जा रहा है। कई बहुएं ग्राम सेवक, पटवारी, अध्यापिका, आंगनवाडी़ कार्यकर्ता, रोजगार सहायिका, सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में अपनी सेवाएं दे रही है।

बाड़मेर वह जिला है जहां किसी समय पढी़ लिखी महिला तो दूर साक्षर पुरुष भी गिने चुने मिलते थे, लेकिन आज इस सरहदी क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में आए बदलाव ने कहानी बदल कर रख दी। चैनी देवी बाड़मेर के महिला कालेज से स्नातक की पढाई कर रही हैं।

चैनी ने कहा कि मुझे लगा था कि मैं अब दोबारा कभी स्कूल नहीं जा पाऊंगी। मैंने आंगनवाडी कर्मी की नौकरी के लिए आवेदन किया था और मामूली शैक्षिक योग्यता के कारण मुझे नौकरी मिल गई। इससे मेरी सासू मां का उत्साह बढा़ और उन्होंन मुझे फिर से स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें