शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

वसंत पंचमी: विश्वविजय सरस्वती कवच से करें सरस्वती की उपासना

देवी सरस्वती ज्ञान, बुद्धि, कला व संगीत की देवी हैं। इनकी उपासना करने से मुर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है। विश्वविजय सरस्वती कवच का नित्य पाठ करने से साधक में अद्भुत शक्तियों का संचार होता है। विद्यार्थियों के लिए यह विशेष फलदाई है। 
धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवती सरस्वती के इन अदुभुत विश्वविजय सरस्वती कवच को धारण करके ही महर्षि वेदव्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी।



विश्वविजय सरस्वती कवच



श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वत:।

श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु।।

ऊँ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्र पातु निरन्तरम्।

ऊँ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु।।

ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोवतु।

ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु।।

ऊँ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपंक्ती: सदावतु।

ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु।।

ऊँ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धं मे श्रीं सदावतु।

श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु।।

ऊँ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्।

ऊँ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम पृष्ठं सदावतु।।

ऊँ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु।

ऊँ रागधिष्ठातृदेव्यै सर्वांगं मे सदावतु।।

ऊँ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु।

ऊँ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु।।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।

सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु।।

ऊँ ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्ऋत्यां मे सदावतु।

कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु।।

ऊँ सदाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु।

ऊँ गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेवतु।।

ऊँ सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु।

ऊँ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोध्र्वं सदावतु।।

ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु।

ऊँ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोवतु।।

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