.जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर में छह महीने पूर्व आतंकवादियों से मुकाबला करते शहीद हुए जोधपुर के करवड़ गांव निवासी नायब सूबेदार लालसिंह खींची को शौर्य चक्र प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है।
57 राष्ट्रीय राइफल के खींची की पत्नी को यह शौर्य चक्र राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील मार्च में होने वाले समारोह में प्रदान करेंगी। कुपवाड़ा सेक्टर में 27 जुलाई 2011 को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सीने में गोली लगने से लालसिंह शहीद हो गए थे।
उनके साहस व वीरता के लिए 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर शौर्यचक्र से अलंकृत करने की घोषणा की गई है। जिला सैनिक कल्याण अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल राजेंद्रसिंह राठौड़ ने बताया कि यह शौर्य चक्र मार्च में राष्ट्रपति भवन में होने वाले एक समारोह में उनकी पत्नी ओमकंवर को प्रदान किया जाएगा।
आतंकियों से कई बार मुकाबला किया था :
वर्ष 1966 में जन्मे लालसिंह चौपासनी स्कूल में बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद बीस साल पूर्व सेना में भर्ती हुए थे। कमांडो का विशेष प्रशिक्षण हासिल करने की वजह से वे करीब 18 साल जम्मू-कश्मीर में ही तैनात थे। लालसिंह की कश्मीर में कई बार आतंकियों से मुठभेड़ हो चुकी थी।
पांच साल पूर्व मुठभेड़ के दौरान पेट व आंत में दो गोलियां लगी थी, लेकिन उनकी जान बच गई थी। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें सेना मेडल भी दिया गया था। मौत को नजदीक से देखने के बावजूद लालसिंह का हौसला कम नहीं हुआ था और वे आतंकियों से मुकाबला करने में सबसे आगे रहते थे।
57 राष्ट्रीय राइफल के खींची की पत्नी को यह शौर्य चक्र राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील मार्च में होने वाले समारोह में प्रदान करेंगी। कुपवाड़ा सेक्टर में 27 जुलाई 2011 को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सीने में गोली लगने से लालसिंह शहीद हो गए थे।
उनके साहस व वीरता के लिए 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर शौर्यचक्र से अलंकृत करने की घोषणा की गई है। जिला सैनिक कल्याण अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल राजेंद्रसिंह राठौड़ ने बताया कि यह शौर्य चक्र मार्च में राष्ट्रपति भवन में होने वाले एक समारोह में उनकी पत्नी ओमकंवर को प्रदान किया जाएगा।
आतंकियों से कई बार मुकाबला किया था :
वर्ष 1966 में जन्मे लालसिंह चौपासनी स्कूल में बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद बीस साल पूर्व सेना में भर्ती हुए थे। कमांडो का विशेष प्रशिक्षण हासिल करने की वजह से वे करीब 18 साल जम्मू-कश्मीर में ही तैनात थे। लालसिंह की कश्मीर में कई बार आतंकियों से मुठभेड़ हो चुकी थी।
पांच साल पूर्व मुठभेड़ के दौरान पेट व आंत में दो गोलियां लगी थी, लेकिन उनकी जान बच गई थी। उनकी इस वीरता के लिए उन्हें सेना मेडल भी दिया गया था। मौत को नजदीक से देखने के बावजूद लालसिंह का हौसला कम नहीं हुआ था और वे आतंकियों से मुकाबला करने में सबसे आगे रहते थे।
नमन इस वीर योद्धा को !
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