गुरुवार, 26 जनवरी 2012

अग्निपथ ....संजय के फैन है तो अपने चहेते स्टार की इस फिल्म को मिस ना करें


करीब दो दशक पहले यश जौहर ने अमिताभ बच्चन को लीड रोल में लेकर अग्निपथ बनाई थी। उस वक्त इस फिल्म कोबॉक्स ऑफिस पर औसत कामयाबी मिली थी। दरअसल , इस फिल्म में अमिताभ ने अपनी आवाज के साथ अलगएक्सपेरिमेंट किया और फिल्म में अलग अंदाज से डॉयलाग बोले। उस वक्त अमिताभ के फैंस को अपने चहेते स्टार का यहअंदाज जमा नहीं और फिल्म बी व सी क्लास सेंटरों के बॉक्स ऑफिस पर औसत से भी कमजोर रही। करीब 22 साल बादकरन जौहर ने अपने स्वर्गीय पापा की इस फिल्म को नए सिरे से बनाने का फैसला किया तो उस वक्त कई लोगों को यहफैसला इसलिए खटका कि जब अमिताभ बच्चन जैसे नामी स्टार की अग्निपथ बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पाईथी तो अब करण ऐसा क्या करिश्मा करेंगे कि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट साबित हो जाएगी।

करन ने इन अटकलों पर ध्यान नहीं दिया और करीब 8 महीने में इस मेगा बजट मल्टि - स्टारर फिल्म को पूरा करदिखाया। यकीनन , जब भी किसी फिल्म का रीमेक बनाया जाता है तो पिछली फिल्म की तुलना नई फिल्म के साथ जरूरहोती है। यहीं वजह है , यंग डायरेक्टर करण मल्होत्रा की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म की तुलना नब्बे के दशक केदिग्गज डायरेक्टर मुकुल एस आंनद द्वारा निर्देशित फिल्म के साथ हो रही है। करन जौहर के पापा यश जौहर को अग्निपथइस कदर पसंद थी कि बीमारी के दिनों में भी यश जब भी रिलेक्स फील करते तो इसी फिल्म को अस्पताल के बेड पर लेटेहुए देखा करते थे। यहीं वजह रही करन ने पापा की पसंदीदा फिल्म का रीमेक बनाने में दिल खोलकर पैसा खर्च किया।बेशक , करन ने फिल्म में कुछ बदलाव भी किए है लेकिन पिछली फिल्म की मूल कहानी को टच नहीं किया। फिल्म मेंसैकड़ों लोगों की मौजदूगी में फिल्माए स्टंट ऐक्शन सीन्स का जवाब नहीं। फिल्म के कैमरामैन की तारीफ करनी होगी किजिन्होंने फिल्म के हर फ्रेम पर खूब मेहनत की है।

कहानी : कहानी मुंबई - गोवा सीमा से सटे मांडवा गांव से शुरू होती है। इस छोटे से गांव में रहने वाले विजय दीनानाथचौहान ( रितिक रोशन ) को उसके आदर्शवादी और ईमानदार स्कूल प्रिंसिपल पिता ( चेतन पंडित ) ने बचपन में हीईमानदारी और आर्दशों का ऐसा पाठ पठाया , जिसने नन्हें विजय की सोच के नजरिया ही बदल दिया। विजय की जिंदगीमें उस वक्त अचानक भूचाल सा आता है जब ड्रग डीलर कांचा ( संजय दत्त ) बरसों बाद एकबार फिर गांव लौटता है।कांचा को जितनी नफरत अपनी डरावनी शक्ल से है उससे कहीं ज्यादा नफरत ऐसे लोगों से है जो उसकी बात नहीं मानते।मांडवा आकर कांचा को लगता है गांव में अपना दबदबा बनाने के लिए स्कूल प्रिसिंपल को अपने रास्ते से हटाना होगा।कांचा एक षड्यंत्र में विजय के पिता को फंसाकर गांव वालों के सामने फांसी पर लटकाकर मार डालता है। विजय अपनीमां के साथ गांव छोड मुंबई पहुंचता है , अब उसकी जिंदगी का मकसद अपने पिता के नाम पर कांचा द्वारा लगाए गए दागको साफ करना और कांचा को उसके गुनाह की सजा देना है।

मुंबई पहुंचे 12 साल के विजय का सामना जब रऊफ लाला ( ऋषि कपूर ) से होता है तो उसे लगता है गुनाह की दुनियामें अपना अलग मुकाम रखने वाला और कांचा से बेपनाह नफरत करने वाला रऊफ उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा सकताहै। कांचा तक पहुंचने के रास्ते में विजय को ना जाने क्या कुछ नहीं करना पड़ता है। कानून तोड़ना और लाला के हरगैरकानूनी काम में उसका सबसे करीबी साथी बना विजय अब गुनाह की दुनिया में पहचान बना चुका है। विजय को हरमोड़ पर उसकी बचपन की दोस्त काली गावड़े ( प्रियंका चोपड़ा ) का साथ मिलता है , लेकिन अपनों का नहीं। करीब 15साल बाद विजय एक बार फिर मांडवा पहुंचता है जहां उसका सामना कांचा से होता है।

ऐक्टिंग : खलनायक , वास्तव , और मुन्ना भाई सीरीज की दो फिल्मों के बाद संजय दत के लिए यह फिल्म उनके करियरके लिए एक बडा टर्निंग पॉइंट्स है। कांचा के रोल में संजय दत्त ने खुद को ऐसा ढाला है कि दर्शकों को फिल्म में स्टार्ट टुलास्ट संजय कांचा दिखाई देता है। सदाबहार फिल्म शोले के विलेन गब्बर सिंह के साथ कांचा की तुलना की जा सकती हैजिन्हें हॉल में बैठे दर्शकों की नफरत के अलावा कुछ और नहीं मिलता। वहीं , अमिताभ बच्चन और रितिक रोशन कीतुलना करे तो विजय दीनानाथ के रोल के मामले में अमिताभ का पलड़ा कहीं ज्यादा भारी है। फिल्म की शुरुआत मेंरितिक की डायलॉग डिलीवरी और उनके चेहरे के एक्सप्रेशन कमजोर हैं , वहीं आखिरी 50 मिनट की फिल्म में रितिक नेसंजय को टक्कर देने की अच्छी कोशिश की है। काली गावड़े के रोल में प्रियंका चोपड़ा पूरी तरह परफेक्ट है। एक आइटमसॉन्ग में नजर आई कटरीना कैफ ने जब स्क्रीन पर अपने लटके झटके दिखाए तब हॉल में खूब सीटियां बजीं।

डायरेक्शन : करण मल्होत्रा अपने काम में पूरी तरह से कामयाब रहे। करण ने कांचा के कैरक्टर को जिस दमदार ढंग सेपेश किया और स्टार्ट टु लास्ट फिल्म के दो लीड किरदारों विजय दीनानाथ और कांचा को जिस अंदाज में पेश कियाकाबिले तारीफ है। वहीं , अगर करण चाहते तो तीन घंटे लंबी इस फिल्म को आसानी से तीस मिनट कम किया जा सकताथा।

संगीतः कटरीना पर फिल्माए आइटम सॉन्ग चिकनी चमेली को छोड़ दिया जाए तो बाकी गानों में दमखम नहीं। हां ,अजय - अतुल की जोड़ी ने स्टोरी और कहानी की पृष्ठभूमि के अनुकूल संगीत दिया है।

क्यों देखें : अगर आप संजय के फैन है तो अपने चहेते स्टार की इस फिल्म को मिस ना करें। कांचा के रोल में संजय काजीवंत अभिनय और उनकी पावरफुल डायलॉग डिलीवरी का जवाब नहीं। रितिक का मासूम चेहरा और आखिरी पचासमिनट की फिल्म में रितिक की गजब ऐक्टिंग और बिना डुप्लिकेट यूज किए रितिक के गजब स्टंट और ऐक्शन सीन्स। दबंग, बॉडीगार्ड के बाद ऐसी फिल्म जो ऐक्शन फिल्मों के शौकीनों को अपसेट नहीं करेगी।

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