शनिवार, 10 दिसंबर 2011

अन्ना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में हंगामा, युवक ने पैसे का हिसाब मांगा

नई दिल्ली. अन्ना हजारे ने अपनी टीम के साथ जंतर मंतर में रविवार को होने वाले अनशन से ठीक पहले शनिवार को कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। हजारे ने संसदीय समिति के लोकपाल प्रस्ताव में ग्रुप सी और डी के कर्मचारियों, सीबीआई, सिटिजन चार्टर को बाहर रखने के ठीकरा राहुल गांधी के सिर फोड़ा है। इस बीच, प्रधानमंत्री के स्वदेश लौटने के बाद लोकपाल बिल कैबिनेट के सामने लाए जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने बुधवार को लोकपाल बिल पर सर्वदलीय बैठक बुलाई है। वहीं, मंगलवार को सरकार ने सहयोगियों की बैठक बुलाई है।

शनिवार को रालेगण सिद्धि से दिल्ली पहुंचे हजारे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अभिषेक मनु सिंघवी के नेतृत्व वाली संसदीय समिति पर निशाना साधते हुए अन्ना ने कहा कि देश की जनता से धोखाधड़ी हुई है। उन्होंने कहा, 'ग्रुप सी और डी के कर्मचारियों को जब तक लोकपाल के दायरे में नहीं लाया जाता है, तब तक भ्रष्टाचार नहीं खत्म होगा। सरकार और संसदीय समिति अपना रुख क्यों बदल रहे हैं? इसके पीछे कोई है? इसके पीछे राहुल गांधी हैं। और कौन हो सकता है, इतना बड़ा फैसला लेने वाला? लेकिन इनकी नीयत साफ नहीं है। इनकी मंशा नहीं है भ्रष्टाचार मिटाने की। हम स्टैंडिंग कमिटी का विरोध करते हैं। अगर 22 तक नहीं होता है तो संसद का सत्र बढ़ाइए। तीन मुद्दों पर रामलीला मैदान में मेरा अनशन तुड़वाने के लिए प्रधानमंत्री ने लिखित दिया था। उन्होंने कहा था कि इन तीन मुद्दों को शामिल करेंगे।' अन्ना ने कहा कि अगर राहुल ऐसी ही नीयत के साथ देश के प्रधानमंत्री बन गए तो क्या होगा? अन्ना ने कहा कि अगर मजबूत लोकपाल नहीं आया तो वे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का विरोध करेंगे।

उधर, कांग्रेस के जनार्दन द्विवेदी ने टीम अन्ना की यह कहकर आलोचना की है हम इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कभी नहीं करेंगे, जो अन्ना हजारे कर रहे हैं।
लेकिन टीम अन्ना की प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म होते ही विपिन नैय्यर नाम का एक शख्स वहां पहुंच गया और उसने हंगामा खड़ा कर दिया। नैय्यर ने यह सवाल पूछा कि जब उन्होंने अन्ना हजारे को दान दिया था तो वह पैसा अरविंद केजरीवाल की संस्था पीसीआरएफ के पास कैसे चला गया?
हंगामे से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखते हुए अरविंद केजरीवाल ने भी राहुल गांधी और संसदीय समिति पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि संसदीय समिति दो सदस्य तो आए ही नहीं। 28 सदस्यों में से 17 ने पूरी रिपोर्ट पर असहमति का पत्र दिया है। ऐसे में हम इसे कैसे सही मानें? अरविंद केजरीवाल ने भी राहुल गांधी और संसदीय समिति पर निशाना साधा। केजरीवाल ने कहा, 'प्रणब मुखर्जी ने अगस्त में अन्ना का अनशन तुड़वाने के लिए संसद के दोनों सदनों में लिखित बयान दिया था, जिसमें कहा गया था कि यह सदन सैद्धांतिक तौर पर इस बात पर सहमति देता है कि लोअर ब्यूरोक्रेसी, सिटिजन चार्टर को लोकपाल में शामिल किया जाएगा। अब बताइए कि कौन झूठ बोल रहा है? हम जानना चाहते हैं कि प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री और सिंघवी में से कौन झूठ बोल रहा है? स्टैंडिंग कमिटी ने एक व्यक्ति की मांग को ठप्पा लगाने का काम किया है।
केजरीवाल के मुताबिक, 'स्टैंडिंग कमिटी ने हमारी 34 मांगों में से एक भी मांग नहीं मानी गई। सिर्फ संसदीय समिति को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की बात कही गई है। चूंकि, राहुल गांधी ने संवैधानिक दर्जा दिेए जाने की बात कही थी। इसलिए लगता है कि स्टैंडिंग कमिटी ने सिर्फ राहुल गांधी को खुश करने का काम किया है। सीबीआई के कामकाज को पूरी तरह छिन्न भिन्न कर दिया है। अन्ना के आंदोलन के कंधे पर बंदूक रखकर सिंघवी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले सिस्टम को तहस नहस कर दिया है। हम कहते हैं पहले सांसदों, प्रधानमंत्री और लोअर ब्यूरोक्रेसी को लोकपाल के दायरे में लाओ फिर मीडिया और एनजीओ को लाना। इस बिल का विरोध करते हैं। इससे अच्छा है कि लोकपाल न बने।'
टीम के वरिष्ठ सदस्य और मशहूर वकील शांतिभूषण ने कहा कि संसदीय समिति के प्रस्तावित बिल में जांच का अधिकार न देकर लोकपाल को लुंजपुंज कर दिया गया है। शांति भूषण और अन्ना ने प्रेस को संबोधित किया। शांतिभूषण ने लोकपाल पर संसदीय स्थायी समिति की तीखी आलोचना की। शांतिभूषण ने कहा, 'असली चीज तो जांच ही थी, जिसे लोकपाल से छीनकर सीबीआई को दे दिया गया। समिति के प्रस्तावित बिल में लोकपाल के पास सिर्फ शिकायत बेबुनियाद है या नहीं, यह जानने का काम सौंपा गया है। अगर शिकायत बेबुनियाद नहीं है तो लोकपाल इसे सीबीआई को जांच के लिए आगे बढ़ा देगा। उन्होंने कहा क्या इसी के लिए लोग सड़कों पर उतरे थे। जांच का क्लेरिकल काम लोकपाल को सौंप दिया गया है। उन्होंने अभिषेक मनु सिंघवी पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि लोकपाल से जांच का अधिकार छीनना, इसे लुंजपुंज करना है। उन्होंने कहा कि सरकारी लोकपाल में भी जांच का जिम्मा लोकपाल के पास था।'

वहीं, प्रशांत भूषण ने कहा, 'संसदीय समिति का प्रस्तावित कानून विसंगतियों और भ्रमों से भरा पड़ा है। जब हर टीवी रिपोर्ट, हर सर्वे यह बताता है कि देश की 80 फीसदी जनता मजबूत लोकपाल के हक में है तो हमें ऐसा लोकपाल क्यों दिया जा रहा है? अगर जनता की इच्छा के मुताबकि लोकपाल कानून नहीं बनता है तो जनता के पास आंदोलन के सिवा क्या रास्ता बचता है? जनता से पूछकर नीतियां तय होनी चाहिए। हम देखेंगे इस सत्र में क्या होता है? पार्टियां किस तरह का कानून पास करती हैं? ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम होनी चाहिए जिसमें ग्रामसभा से पूछा जाए कि किस तरह का कानून बनना चाहिए।' टीम अन्ना की सदस्य मेधा पाटकर ने इस मौके पर कहा, 'यह राजनीतिक धोखा है। यह अहिंसक आंदोलनों के साथ कई बार हुआ है। यह प्रस्तावित बिल लोकपाल नहीं शासकपाल है। संसद की स्थायी समिति ने संसद का अपमान किया है।'

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