तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरिस तत्क्षणात्।
यानी अगर शनि प्रसन्न हो तो राजसी सुख देते हैं, वहीं रुष्ट होने पर सारे सुख छीन दुर्गति कर देते हैं। चूंकि शनि न्यायाधीश है, इसलिए जाहिर है कि वह सद्गुणी पर कृपा करते हैं व दुर्गुणी को सजा देते हैं।
साफ है कि जो इंसान कर्म को प्रधानता देता है, जिसके आचरण में पवित्रता और परोपकार समाया होता है उस पर शनि की कृपा बरसती है और वह शाही यानी तमाम सुख, वैभव के साथ जीवन गुजारता है।
शास्त्रों में शनि कृपा से ऐसे ही सुख पाने के लिए ही शनिवार की सुबह एक विशेष मंत्र स्तुति का पाठ बहुत ही प्रभावी माना गया है। जानते हैं यह मंत्र विशेष व शनि पूजा की आसान विधि -
- शनिवार को सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ शनि मंदिर या नवग्रह मंदिर में काले आसन पर बैठ शनि पूजा करें। घर में काले वस्त्र बिछी चौकी पर शनि तस्वीर को रख पश्चिम दिशा की ओर मुख कर भी पूजा कर सकते हैं।
- शनि देव की प्रतिमा का तेल से अभिषेक करें यानी तेल चढ़ाएं। चंदन या गंध लगाएं, काले तिल, उड़द, नीले फूल, काला वस्त्र व दक्षिणा के साथ तेल के व्यजंन का भोग लगाएं। धूप व तेल का दीप जलाकर अपार सुखों की कामना के साथ नीचे लिखी शनि मंत्र स्तुति बोलें, बाद शनि आरती कर बुरे कर्मो की क्षमा मांग, प्रसाद ग्रहण करें -
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च।
नम: कालाग्रिरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मासदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो: विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुन:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदष्ट्रं नमोस्तुते।।
नमस्ते कोटरक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेस्तु भास्करेअभयदाय च।।
अधोदृष्टे नमस्तेस्तु संवर्तक नमोस्तुते।
नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोस्तुते।।
ज्ञान चक्षुर्नमस्तेस्तु कश्पात्मजसूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरिस तत्क्षणात्।
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