बेटों ने मुंह मोड़ा, बहू ने दी मुखाग्नि

इंदौर । एक ओर जहां बहुएं सास-ससुर को घर से निकाल रही हैं। वहीं एक बहू ने ससुर की जीवनभर न सिर्फ सेवा की बल्कि मौत के बाद बेटों के न आने पर ससुर को मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज भी निभाया। गुमाश्ता नगर निवासी राधा मोहन तोषनीवाल का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। उनके चार बेटे हैं, जो पिता की अर्थी को कंधा देने भी नहीं आए। ऎसे समय में उनकी बहू प्रेमलता ने बेटे का फर्ज निभाते हुए पंचकुईया मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया।
प्रेमलता 27 साल पहले बहू बनकर तोषनीवाल परिवार में आई थीं। शादी के कुछ समय बाद ही पति ने जिम्मेदारियों को नकारते हुए घर छोड़ दिया। ऎसे में प्रेमलता ने न सिर्फ ससुराल को पीहर माना बल्कि पिता समान ससुर और परिवार की सेवा में जीवन अर्पित कर दिया। बहू को बेटी कहने वाले ससुर ने उसको जीवन से संघर्ष करना सिखाया। वहीं बहू ने उनके बिजनेस में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। जीवन की अंतिम यात्रा में चार बेटों ने जब फर्ज से पल्ला झाड़ लिया तो बहू ने उसे पूरा किया।
चार बेटे और एक बेटी
राधा मोहन के चार बेटे और एक बेटी है। बेटे इंदौर में ही रहते हैं, जिन्होंने करीब रहते हुए भी पिता के प्रति जिम्मेदारियों को कभी नहीं निभाया और न ही उनको मुखाग्नि देने आए।
शादी के कुछ दिनों बाद छोड़ा पति ने
शादी के कुछ दिनों बाद ही राधा मोहन के दूसरे बेटे ने धर्म परिवर्तन कर लिया, जिससे दुखी होकर बहू प्रेमलता अंधेरों में खो जाना चाहती थी। ससुर ने उसे बेटी का दर्जा देकर संघर्ष करना सिखाया। पीहरवालों ने उसे दूसरी शादी की सलाह दी पर ससुराल में मिले अपनेपन को वो छोड़ना नहीं चाहती थी। बेटी बन कर उनकी सेवा करने का निर्णय ही लिया।
इंदौर । एक ओर जहां बहुएं सास-ससुर को घर से निकाल रही हैं। वहीं एक बहू ने ससुर की जीवनभर न सिर्फ सेवा की बल्कि मौत के बाद बेटों के न आने पर ससुर को मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज भी निभाया। गुमाश्ता नगर निवासी राधा मोहन तोषनीवाल का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। उनके चार बेटे हैं, जो पिता की अर्थी को कंधा देने भी नहीं आए। ऎसे समय में उनकी बहू प्रेमलता ने बेटे का फर्ज निभाते हुए पंचकुईया मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया।
प्रेमलता 27 साल पहले बहू बनकर तोषनीवाल परिवार में आई थीं। शादी के कुछ समय बाद ही पति ने जिम्मेदारियों को नकारते हुए घर छोड़ दिया। ऎसे में प्रेमलता ने न सिर्फ ससुराल को पीहर माना बल्कि पिता समान ससुर और परिवार की सेवा में जीवन अर्पित कर दिया। बहू को बेटी कहने वाले ससुर ने उसको जीवन से संघर्ष करना सिखाया। वहीं बहू ने उनके बिजनेस में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। जीवन की अंतिम यात्रा में चार बेटों ने जब फर्ज से पल्ला झाड़ लिया तो बहू ने उसे पूरा किया।
चार बेटे और एक बेटी
राधा मोहन के चार बेटे और एक बेटी है। बेटे इंदौर में ही रहते हैं, जिन्होंने करीब रहते हुए भी पिता के प्रति जिम्मेदारियों को कभी नहीं निभाया और न ही उनको मुखाग्नि देने आए।
शादी के कुछ दिनों बाद छोड़ा पति ने
शादी के कुछ दिनों बाद ही राधा मोहन के दूसरे बेटे ने धर्म परिवर्तन कर लिया, जिससे दुखी होकर बहू प्रेमलता अंधेरों में खो जाना चाहती थी। ससुर ने उसे बेटी का दर्जा देकर संघर्ष करना सिखाया। पीहरवालों ने उसे दूसरी शादी की सलाह दी पर ससुराल में मिले अपनेपन को वो छोड़ना नहीं चाहती थी। बेटी बन कर उनकी सेवा करने का निर्णय ही लिया।
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