गीता - सार
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थडरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्माना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है,वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भीअच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप नकरो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमानचल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुमक्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमनेक्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? नतुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं सेलिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया,इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसीको दिया।
खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जोआज तुम्हारा है, कल और किसी का था,परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपनासमझ कर मग्न हो रहे हो। बस यहीप्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुममृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एकक्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो,दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो।मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मनसे मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुमसबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर केहो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाशसे बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तुआत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो।यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारेको जानता है वह भय, चिन्ता, शोक सेसर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान केअर्पण करता चल। ऐसा करने से सदाजीवन-मुक्त का आन्दन अनुभव करेगा।
जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है,वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भीअच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप नकरो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमानचल रहा है।
तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुमक्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमनेक्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? नतुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं सेलिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया,इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसीको दिया।
खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जोआज तुम्हारा है, कल और किसी का था,परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपनासमझ कर मग्न हो रहे हो। बस यहीप्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुममृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एकक्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो,दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो।मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मनसे मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुमसबके हो।
न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर केहो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाशसे बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तुआत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो।यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारेको जानता है वह भय, चिन्ता, शोक सेसर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान केअर्पण करता चल। ऐसा करने से सदाजीवन-मुक्त का आन्दन अनुभव करेगा।
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