शनिवार, 24 सितंबर 2011

शनि की यह चमत्कारी मंत्र स्तुति.. चंद दिनों में ही बना देगी खुशहाल

व्यावहारिक जीवन में संकट या विपत्ति कब आ जाए कोई नहीं जानता। किंतु हर कोई अपने कर्मों को अच्छी तरह से जानता है, जिनमें बुरे कर्म यह आभास कराते रहते हैं कि मुश्किलें किसी भी वक्त आ सकती है। इसलिए सुख से जीने के लिए सत्य व सद्कर्म ही श्रेष्ठ माने गए हैं।

धार्मिक नजरिए से जीवन में बुरे कर्मों के कारण आने वाली मुसीबतों की घड़ी शनि दशा भी मानी जाती है। मान्यता है कि शनि बुरे कर्म के मुताबिक दण्ड देने वाले देवता हैं। इसलिए जाने-अनजाने हुए कर्मदोष से मुक्ति, सद्गति और शनि की प्रसन्नता के लिए शनिवार को शनि उपासना बहुत ही मंगलकारी मानी जाती है।

इसके लिए पुराणों में तपोबली व सिद्ध मुनि पिप्पलाद द्वारा शनि पीड़ा से रक्षा के लिए रचा गया शनि स्त्रोत शनि की साढ़े साती, महादशा और ढैय्या में बुरे प्रभाव से रक्षा करने वाला माना गया है। जानते हैं यह शनि स्त्रोत व पूजा के आसान उपाय -

- शनिवार को सुबह और शाम शनिदेव को स्नान के बाद तिल का तेल चढ़ाकर विशेष तौर पर काली पूजा सामग्रियों, जिनमें गंध, अक्षत के अलावा काले तिल, काले फूल, काले वस्त्र शामिल हो अर्पित करें। तेल से बनी मिठाई का भोग लगाएं और नीचे लिखे शनि स्त्रोत का पाठ संकट व पीड़ा मुक्ति व सुख-समृद्धि की कामना से करें -

नमस्ते कोणसंस्थय पिङ्गलाय नमोस्तुते।

नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।

नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥

नमस्ते यमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते।

प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

- अंत में शनि की धूप व दीप आरती कर जीवन में मन, वचन व कर्म से हुई त्रुटियों की क्षमा मांग प्रसाद ग्रहण करें।

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