शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

थार की धरा पर उतरे सारंगी के सुर

थार की धरा पर उतरे सारंगी के सुर


// दुर्गसिंह राजपुरोहित बाड़मेर

बाड़मेर की धरा पर शुक्रवार को सारंगी के सुर बिखरे तो मानो सारी जमीन पर सुरमई रंगत पसर गई ! शास्त्रीय संगीत की विरासत को बचाने के अभियान में जुटी स्पिक मैके संस्था द्वारा आयोजित  कार्यक्रम में सारंगी वादक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय कलाकार मुराद अली ने बेहतरीन प्रस्तुतिया दी ! कन्या महाविध्यालय आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे ! मुराद अली ने सारंगी के बारे में छात्राओ को जानकारी देते हुए कहा कि ' सारंगी भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक ऐसा वाद्ययंत्र है जो गति के शब्दों और अपनी धुन के साथ इस प्रकार से मिलाप करता है कि दोनों की तारतम्यता देखते ही बनती है।सारंगी मुख्य रूप से गायकी प्रधान वाद्य यंत्र है। इसको 
लहरा अर्थात अन्य वाद्य यंत्रों की जुगलबंदी के साथ पेश किया जाता है।सारंगी शब्द हिंदी के सौ और रंग से मिलकर बना है जिसका मतलब है सौ रंगों वाला।अठारहवीं शताब्दी में तो सारंगी ने एक परम्परा का रूप ले लिया हुआ था। सारंगी का इस्तेमाल गायक अपनी गायकी में जुगलबंदी के रूप में लेते रहे हैं। राग ध्रुपद जो गायन पद्धति का सबसे कठिन राग माना जाता है, सारंगी के साथ इसकी तारतम्यता अतुल्य है। '
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संगीत प्रेमी लोग शरीक हुए वही कार्यक्रम में तबला पर अब्दुल रहमान ने संगत दी !

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