मेले के बाद भी उमड़ रही है श्रद्धालुओं की भीड़
पुलिस व्यवस्था के साथ-साथ दुकानदारों ने भी समेटे अपने सामान
रामदेवरा बाबा रामदेव मेले के प्रशासनिक स्तर पर समापन के बावजदू भी भद्रपद शुक्ला द्वादशी को स्थानीय ग्रामीणों सहित आस-पास के क्षेत्रों के लोगों की भारी भीड़ रही। शुक्रवार को समाधि के मुख्य प्रदेश द्वार खुलने से पूर्व ही हजारों दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लग गई जो दिन चढऩे के साथ बढ़ती गई। सुबह एकादशी को विश्नोई समाज एवं स्थानीय ग्रामीणों की भीड़ सर्वाधिक थी। मेला समाप्ति की औपचारिकता के चलते पुलिस बल व अन्य विभागीय अधिकारियों को कार्यमुक्त करने के बाद दिन भर रही भीड़ स्वत: नियंत्रित हो कर दर्शन लाभ लेते देखी गई।
प्रशासन ने की जल्दबाजी : सरकारी तिथि अनुसार भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक मेला अवधि मान गुरुवार को बाहरी जिलों से आए श्रद्धालुओं व शुक्रवार को जिले की पुलिस को कार्यमुक्त कर विदाई दे दी गई। जबकि शुक्रवार को मेला समाप्ती के पहले दिन विगत कई दिनों की भीड़ से सर्वाधिक भीड़ देखी गई। अमूमन दर्शनार्थियों की आवक भाद्रसुदी पूर्णिमा तक रहती है ऐसे में प्रशास को व्यवस्थाए बनाए रखने के लिए पर्याप्त स्टाफ की तैनातगी सुनिश्चित रखती चाहिए।
कोई वैकल्पिक सुविधा नहीं: शुक्रवार को दर्शनार्थियों की कतारों को व्यवस्थित करने एवं सुगमता पूर्वक दर्शन व्यवस्था बनाए रखने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं देखी गई। कस्बे में अलग स्थानों पर स्थापित सूचना केन्द्रों के अभाव में एक दूसरे से बिछुड़े परिजन आपस में ढूंढते बिलखते नजर आए। वहीं पर्याप्त स्वास्थ्य चौकियों के अभाव में बाहरी इलाकों से पैदल यात्रा कर पहुंचने वाले पदयात्रियों को प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं देखी गई।
ठेकेदारों ने समेटा सामान: मेला व्यवस्थाओं के नाम पर आगामी 12 सितंबर तक ग्राम पंचायत को विद्युत, टेंट व अन्य आवश्यक सामग्री सप्लाई करने वाले ठेकेदारों ने गुरुवार की शाम को ही अपने डेरे समेटने शुरू कर दिए। कनातों के सहारे लगाई गई अस्थाई लाइटें हटाने से गुरूवार रात्रि कई इलाके अंधेरे में डूबे रहे।
पुलिस व्यवस्था के साथ-साथ दुकानदारों ने भी समेटे अपने सामान
रामदेवरा बाबा रामदेव मेले के प्रशासनिक स्तर पर समापन के बावजदू भी भद्रपद शुक्ला द्वादशी को स्थानीय ग्रामीणों सहित आस-पास के क्षेत्रों के लोगों की भारी भीड़ रही। शुक्रवार को समाधि के मुख्य प्रदेश द्वार खुलने से पूर्व ही हजारों दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लग गई जो दिन चढऩे के साथ बढ़ती गई। सुबह एकादशी को विश्नोई समाज एवं स्थानीय ग्रामीणों की भीड़ सर्वाधिक थी। मेला समाप्ति की औपचारिकता के चलते पुलिस बल व अन्य विभागीय अधिकारियों को कार्यमुक्त करने के बाद दिन भर रही भीड़ स्वत: नियंत्रित हो कर दर्शन लाभ लेते देखी गई।
प्रशासन ने की जल्दबाजी : सरकारी तिथि अनुसार भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक मेला अवधि मान गुरुवार को बाहरी जिलों से आए श्रद्धालुओं व शुक्रवार को जिले की पुलिस को कार्यमुक्त कर विदाई दे दी गई। जबकि शुक्रवार को मेला समाप्ती के पहले दिन विगत कई दिनों की भीड़ से सर्वाधिक भीड़ देखी गई। अमूमन दर्शनार्थियों की आवक भाद्रसुदी पूर्णिमा तक रहती है ऐसे में प्रशास को व्यवस्थाए बनाए रखने के लिए पर्याप्त स्टाफ की तैनातगी सुनिश्चित रखती चाहिए।
कोई वैकल्पिक सुविधा नहीं: शुक्रवार को दर्शनार्थियों की कतारों को व्यवस्थित करने एवं सुगमता पूर्वक दर्शन व्यवस्था बनाए रखने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं देखी गई। कस्बे में अलग स्थानों पर स्थापित सूचना केन्द्रों के अभाव में एक दूसरे से बिछुड़े परिजन आपस में ढूंढते बिलखते नजर आए। वहीं पर्याप्त स्वास्थ्य चौकियों के अभाव में बाहरी इलाकों से पैदल यात्रा कर पहुंचने वाले पदयात्रियों को प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं देखी गई।
ठेकेदारों ने समेटा सामान: मेला व्यवस्थाओं के नाम पर आगामी 12 सितंबर तक ग्राम पंचायत को विद्युत, टेंट व अन्य आवश्यक सामग्री सप्लाई करने वाले ठेकेदारों ने गुरुवार की शाम को ही अपने डेरे समेटने शुरू कर दिए। कनातों के सहारे लगाई गई अस्थाई लाइटें हटाने से गुरूवार रात्रि कई इलाके अंधेरे में डूबे रहे।
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