नई दिल्ली। जनलोकपाल बिल को लेकर लड़ाई लड़ने वाली अन्ना की टोली अब सौदेबाजी पर उतर आई है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अन्ना की टीम ने कहा है कि अगर सरकार अपने लोकपाल बिल से गैर सरकारी संगठनों को जांच के दायरे से बाहर कर दें तो वे प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से रखने पर सहमत हो सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अन्ना की टोली ने सरकारी मदद नहीं पाने वाले गैर सरकारी संगठनों को लोकपाल बिल के दायरे से बाहर रखने की मांग की थी। मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि लोकपाल बिल पर बुधवार को स्टैंडिंग कमेटी में चर्चा के दौरान अन्ना की टोली के सदस्य शांति भूषण ने कहा था कि एनजीओ को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। इस पर सरकारी पक्ष के सदस्य ने विरोध जताया।
उसने कहा कि सभी एनजीओ देवतुल्य नहीं है। वे स्वर्ग से नहीं आए हैं। उनमें भी गड़बडियां हो सकती है। इस पर भूषण ने कहा कि सरकारी मदद लेने वाले एनजीओ को लोकपाल के दायरे में रखा जा सकता है। भूषण का मतलब था कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर से पैसा पाने वाले एनजीओ को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। हजारे की टीम की दलील थी कि अगर कोई अपने मित्र से मदद लेता है और उसका दुरूपयोग करता है तो इस पर केस किया जा सकता है।
इस बैठक में अन्ना की टोली ने प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में नहीं लाए का मुद्दा नहीं उठाया। गौरतलब है कि अन्ना के संगठन इंडिया अगेंस्ट करप्शन को कई निजी लोगों और कंपनियों से पैसा मिल रहा है। इसके अलावा बैंकों और सीईओ से भी मदद मिल रही है। किरण बेदी के संगठन इंडिया विजन फाउंडेशन को लेहमैन ब्रदर्स और भारती वॉल मार्ट जैसी कंपनियों से पैसा मिल रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अन्ना की टोली ने सरकारी मदद नहीं पाने वाले गैर सरकारी संगठनों को लोकपाल बिल के दायरे से बाहर रखने की मांग की थी। मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि लोकपाल बिल पर बुधवार को स्टैंडिंग कमेटी में चर्चा के दौरान अन्ना की टोली के सदस्य शांति भूषण ने कहा था कि एनजीओ को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। इस पर सरकारी पक्ष के सदस्य ने विरोध जताया।
उसने कहा कि सभी एनजीओ देवतुल्य नहीं है। वे स्वर्ग से नहीं आए हैं। उनमें भी गड़बडियां हो सकती है। इस पर भूषण ने कहा कि सरकारी मदद लेने वाले एनजीओ को लोकपाल के दायरे में रखा जा सकता है। भूषण का मतलब था कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर से पैसा पाने वाले एनजीओ को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। हजारे की टीम की दलील थी कि अगर कोई अपने मित्र से मदद लेता है और उसका दुरूपयोग करता है तो इस पर केस किया जा सकता है।
इस बैठक में अन्ना की टोली ने प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में नहीं लाए का मुद्दा नहीं उठाया। गौरतलब है कि अन्ना के संगठन इंडिया अगेंस्ट करप्शन को कई निजी लोगों और कंपनियों से पैसा मिल रहा है। इसके अलावा बैंकों और सीईओ से भी मदद मिल रही है। किरण बेदी के संगठन इंडिया विजन फाउंडेशन को लेहमैन ब्रदर्स और भारती वॉल मार्ट जैसी कंपनियों से पैसा मिल रहा है।
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