रविवार, 21 अगस्त 2011

श्रीकृष्ण की जन्मभूमि तीन लोक से न्यारी मथुरा

मथुरा। श्रीकृष्ण की जन्मभूमि तीन लोक से न्यारी मथुरा में जन्माष्टमी अनूठे तरीके से मनाई जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस भाव से यहां जन्माष्टमी मनाई जाती है उसके दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं।

जहां अधिकांश मंदिरों में यह आयोजन रात 12 बजे होता है वहीं वृन्दावन के तीन प्राचीन मंदिरों में जन्माष्टमी दिन में मनाई जाती है।

इन मंदिरों में बाल स्वरप के भाव से सेवा होती है। प्राचीन राधारमण मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि वास्तव में उनके मंदिर में जन्माष्टमी कृष्ण की सालगिरह के रप में मनाई जाती है। रात में उन्हें जगाकर सालगिरह मनाना ठीक नहीं है इसलिए उनके मंदिर में दिन में ही जन्माष्टमी मनाई जाती है। दिन में ही मंदिर का वातावरण वेद की ऋचाओं के साथ साथ यशोदा जायो लालना मैं वेदन में सुनि आई जैसे गीतों से गूंजता रहता है।

इस मंदिर के स्वयं प्राक ट्य विग्रह का अभिषेक 21 मन दूध. दही. घी. बूरा और शहद से करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की वनौषधियों से वैदिक रीति से किया जाता है। लगभग तीन घंटे के अभिषेक के बाद चरणामृत का वितरण तीर्थयात्रियों एवं वृन्दावनवासियों में किया जाता है।

इस दिन ठाकुर जी के प्रसादी वस्त्र का वितरण भी किया जाता है जो भाग्यशाली लोगों को ही मिल पाता है।

वृन्दावन के ही राधा दामोदर मंदिर में भी जन्माष्टमी कृष्णोत्सव के रूप में दिन में ही मनाई जाती है तथा मंदिर के सिंहासन पर विराजमान ठाकुर श्री राधा दामोदर महाराज. ठाकुर वृन्दावन कृष्ण चन्द्र ठाकुर राधामाधव. ठाकुर छैल चिकनिया के साथ साथ भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सनातन गोस्वामी को प्रदत्त गिर्राज शिला का कई मन पंचामृत. पंच मेवा एवं औषधियों से महाभिषेक किया जाता है और मंदिर का वातावरण मेरे दामोदर ने जन्म लियो है से गूंज उठता है।

उसी समय मंदिर के महंत जगमोहन से भक्तों पर हल्दी मिश्रित दही पानी का घोल डालते हैं जिस पर यह प्रसाद पड जाता है धन्य हो जाता है। महाभिषेक के बाद विग्रहों का अदभुत श्रंगार होता है तथा रसिया और भजनों का रंगारंग कार्यक्रम होता है। अगले दिन मंदिर प्रांगण में मटकी फोडलीला होती है।

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान एवं द्वारकाधीश मंदिर में रात 12 बजे अभिषेक होता है तथा सभी दर्शनार्थियों में प्रसाद वितरित किया जाता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान में तो अपार जनसमूह एकत्र होता है। गोवर्धन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात जहां अभिषेक होता है वहीं अभिषेक का चरणामृत ग्रहण करने के बाद गिरि गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करने की होड सी लग जाती है। कुल मिलाकर जन्माष्टमी पर समूचा ब्रजमंडल भक्ति के सागर में डूब जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी समूचे ब्रजमंडल में श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाई जाती है पर गोकुल की जन्माष्टमी निराली ही होती है। वहां के कार्यक्रमों में एक बार द्वापर फिर गोकुल में उतर आता है। गोकुलनाथ मंदिर और राजा ठाकुर मंदिर में सेवायत आचार्य यशोदा के रप में जब मंदिर के गर्भगृह और जगमोहन से सामान लुटाते हैं तो इसे लूटने के समय उंच नीच का विचार समाप्त हो जाता है।

कन्हैया के आगमन पर जहां गोकुल को नई नवेली दुल्हन की तरह सजाया जाता है वहीं मंदिरों में हल्दी. पानी एवं दही के मिश्रण से एक प्रकार से होली होती है तथा भक्तों में मिठाई. फल. खिलौने. रपये लुटाए जाते हैं। मंदिरों से प्रारंभ होकर यह महोत्सव गोकुल की चौक पर पहुंचता है जहां कन्हैया के आगमन पर ग्वाल बाल एक दूसरे पर उक्त मिश्रण डालकर प्रसन्न होते हैं और ब्रज के लोकगीतों की धुन में तो उनके पैर थिरक उठते हैं। श्यामाश्याम की उपस्थिति में आयोजित इस कार्यक्रम में ऐसा दृश्य उपस्थिति होता है जिसे दिखने के लिए देवता भी तरसते हैं।

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