थर की थळी में विख्यात स्वादिष्ट हैं गडरा के लड्डू,
सीमावर्ती जिला बाड़मेर जिसकी 227 किमी लम्बी सीमा पाकिस्तान से सटी हैं। भारत विभाजन के बाद बाड़मेर जिले के कई गांव दो हिस्सों में बंट गए। एक ही परिवार के दो टुकडे हो गए। राम भारत में तो श्याम पाकिस्तान में।अल्लाह भारत में तो अकबर पाकिस्तान में। पाक सीमा से एक किमी पहले ही गडरारोड़ भारत में हैं। गडरा सीटी नाम का कस्बा था जो 1947 में विभाजित हो गया।
गडरारोड़ भारत में तथा गडरा सीटी पािकस्तान में रह गया। अविभाजित गडरा सीटी के तिजारा के लड्डू बड़े ही स्वादिष्ट होते थे। गडरा के लड्डू पूरे राजपूताना में प्रसिद्ध थे। बंटवारे के बाद भारतीय सीमा में गडरारोड़ हो गया।गडरा में ढाटी माहेश्वरीयों के काफी परिवार रहते थे जों हलवाई का काम करते थे।रेगिस्तानी इलाकें में ऐसी मिठाईयॉ ही बनती थी जो लम्बे समय तक खराब ना हो।ऐसी ही मिइाई गडरा के अमोलख माहेश्वरी बनाते थे जो पूरे थर की थळी में विख्यात थी।
गडरारोड़ में रह रहे माहेश्वरी परिवार लड्डू बनाने में माहिर थे। 1965 के युद्व के पश्चात् के गडरा सीटी से सैंकडो परिवार भारतीय सीमा में आकर बस गए। इनमें से ढाटी माहेश्वरी जाति के परिवार गडरारोड़ आकर बस गए। इन परिवारों में एक परिवार अमोलख भूतडा का भी था। जो पहले वहां लड्डुओं के निर्माता थे। गडरारोड़ आकर अपना पुश्तैनी कार्य लड्डू बनाना आरम्भ किया। गडरा के लड्डू मुख्य रूप से उडद की दाल से बनाये जाते हैं। पिसी हुई उड़द की दाल में गोंद, मावा शक्कर, देशी घी डालकर सेका जाता हैं। इस अत्यधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें बादाम, काजू, दाख, काली मिर्च डाली जाती हैं। एक सौ पच्चास रूपये प्रति किलो के भाव से बिकने वाले लड्डुओ का लाजवाब स्वाद मुंह में पानी ले आता हैं।
गडरा के लड्डुओ का स्वाद लाजवाब होने के कारण सर्वप्रिय हैं। सीमा पर तैनात जवानों, स्थानीय नागरिकों में गडरा के लड्डू सर्वप्रिय हैं। इन लड्डुओ की प्रसिद्धी सीमार पार में भी बराबर हैं।
तारबन्दी से पूर्व आसानी से पाकिस्तान भेजे जाने वाले ये लड्डू अब थार एक्सपेस के माध्यम से पाक ले जाए जाते हैं। ये लड्डू एक महीने तक खराब नहीं होते। यहां के लड्डू साम्प्रदायिक सद्भावना के प्रतीक हैं।दोनो देशो की अवामों कें बीच गडरा के लडडू आज भी पारिवारिक सदभाव बनाऐ रखे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें