शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

गायकी के साथ लोक सेवा का संगीत सुना रहे हैं दरबारी कलाकार उस्ताद अकबर खाँ

डॉ. दीपक आचार्य, जिला सूचना एवं जन सम्पर्क अधिकारी, जैसलमेर


भारत की पश्चिमी सरहद पर रेतीले धोरों की धरती जैसलमेर कलाकारों की खान है, जहाँ विभिन्न विधाओं में माहिर एक से बढ़कर एक कलाकारों की सुदीर्घ श्रृंखला विद्यमान है। कलाकारों की इस खान में बहुमूल्य हीरा है - उस्ताद अकबर खाँ। बहत्तर साल के अकबर खाँ का उत्साह किसी युवा से कम नहीं है।
    आज भी वे कला और संस्कृति के लिए जीते हुए बहुत कुछ कर गुजरने के ज़ज़्बे के साथ जुटे हुए हैं। अकबर खाँ में वे सभी गुण हैं जो एक अच्छे कलाकार की पहचान होते हैं। कोमल भावनाओं से भरे और दिल के साफ अकबर खाँ का सर्वस्पर्शी व्यक्तित्व हर किसी को प्रभावित किए बिना नहीं रहता।
    शैशव से ही कलाकार के रुप में मशहूर रहे अकबर खाँ का मौलिक हुनर बचपन से ही झरने लगा था। निरंतर अभ्यास की बदौलत रियासत काल में दरबारी लोक गायक कलाकार के रुप में ख्याति पाने वाले अकबर खाँ उम्र के इस पड़ाव में भी लोक गायकी के प्रति समर्पित जीवन का पर्याय बने हुए हैं।
    ग्याह जुलाई 1939 को जैसाण की सरजमीं पर पैदा हुए उस्ताद अकबर खॉं ’’जैसलमेरी आलम खाँ’’ आज कला जगत में जानी-मानी हस्ती हैं। साधारण साक्षर अकबर खाँ को संगीत का उहुनर  विरासत में मिला। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उन्हें पिता आरब खाँ से मिली।
    अकबर खाँ ने घर-परिवार चलाने के लिए शिक्षा विभाग में नौकरी की और वहीं से जमादार के रूप में सेवानिवृत्त हुए। राजकीय सेवा के साथ-साथ संगीत व संस्कृति जगत की सेवा तथा हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने व करने का जो ज़ज़्बा यौवन पर रहा, वह आज भी पूरे उत्साह से लवरेज दिखाई देता है।
    वंश परम्परा से पारिवारिक लोक संगीत में दक्ष कलाकारों की श्रृंखला में जुड़े उस्ताद अकबर खाँ वास्तव में उस्ताद हैं जिनकी रगों में पीढ़ियों से सांगीतिक लहू बह रहा है।
    सन् 1973  में पहली बार मांगणियार गायकों का सम्मेलन आयोजित करने में अकबर खाँ की सराहनीय भूमिका रही। इस पर रूपायन संस्थान बोरुंदा की ओर से उन्हें सराहना पत्रा भी भेंट किया गया।
    आकाशवाणी और दूरदर्शन के कई केन्द्रों से उस्ताद अकबर खाँ के कार्यक्रमों का प्रसारण हो चुका है।  इसके साथ ही लोक चेतना, सामाजिक एवं राष्ट्रीय सरोकारों के कई कार्यक्रमों, योजनाओं, परियोजनाओं के जागरुकता कार्यक्रमों से जुड़े रहे अकबर खाँ ने अनगिनत स्कूलों व अन्य संस्थाओं में वार्ताओं, लोकगीत गायन, संगीतिक प्रस्तुतियों आदि के माध्यम से अपनी सशक्त व ऐतिहासिक भागीदारी का इतिहास कायम किया है।
 हर कहीं पाया सम्मान
        अद्भुत कला कौशल व माधुर्य से परिपूर्ण गायकी को लेकर प्रदेश तथा देश की कई हस्तियों व संस्थाओं द्वारा उन्हें सम्मानित व अभिनन्दित किया जा चुका है। लोक कला के संरक्षण व विकास में प्रशंसनीय सेवाओं के उपलक्ष में अकबर खाँ का को स्वाधीनता दिवस -1999 के जिला स्तरीय समारोह में जिला प्रशासन की ओर से सम्मानित भी किया गया। इसी प्रकार जैसलमेर स्थापना दिवस  पर विगत 26 अगस्त, 1996 को कवि तेज लोक कला विकास समिति द्वारा उत्कृष्ट आलमखाना (राजगायक ) एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया।
        भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर में 28 अप्रेल 1979 को हुए राजस्थान लोकानुरंजन मेले में पद्मश्री देवीलाल सामार ने उस्ताद अकबर खाँ का अभिनन्दन किया व लोक कला के उन्नयन, विकास व प्रचार-प्रसार में उनके  बहुमूल्य योगदान की मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
       उस्ताद अकबर खाँ का बोध वाक्य है- ’’ जागो-जगाओ, काम की ज्योति जगाओ, सुस्ती, नशा, क्रोध हटाओ, देश बचाओ ’’, एक अकेला थक जाएगा, मिल कर बोझ उठाओ ।’’
      इस बोध वाक्य की उन्होंने बाकायदा मोहर बनवा रखी है जिसे वे पत्रा व्यवहार में इस्तेमाल करते रहे हैं। माण्ड गायक उस्ताद अकबर खाँ को सन् 1996 में माड सम्मान से नवाजा जा चुका है।
      एक मशहूर कलाकार के साथ ही निष्काम समाजसेवी के रुप में अकबर खाँ की अलग ही पहचान है। जैसलमेर जिले में स्वच्छता, नशा मुक्ति, पॉलिथीन पर पाबंदी के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान ‘जागो और जगाओ’ चलाने वाले अकबर खाँ ने लोक चेतना के लिए अपने खर्च से पेम्पलेट भी छपवा कर खूब बंटवाए हैं।
     अकबर खाँ मुम्बई में सुर सिंगर संसद द्वारा सन् 1989 में हुए आचार्य बृहस्पति सम्मेलन सहित कई विराट आयोजनों में शिरकत कर चुके हैं। सुर सिंगर संसद मुम्बई ने आपको सुमणि अवार्ड प्रदान किया है। पद्मश्री कोमल कोठारी ने भी उनकी सराहना की है।
 कलाकारों को प्रोत्साहन में मदद
      देश-दुनिया में मशहूर कलाकार अकबर खाँ ने लंगा और मांगणियार कलाकारों को मंच देकर प्रोत्साहित करने, जैसलमेर को लोक संगीत में प्रसिद्धि दिलाने आदि में उनकी अहम् भूमिका रही है। वे सेवाभावी कलाकार और लोक कला के सिद्ध साधक हैं।
     माड और शास्त्रीय गायन व संगीत के विकास तथा कलाकारों को प्रोत्साहन के लिए उस्ताद अकबर खां ने आरबा संगीत संस्थान की स्थापना की हुई है। सन् 1950 से वे संगीत की सेवा में समर्पित हैं।  विलक्षण प्रतिभा के धनी अकबर खाँ कुशल माड गायक होने के साथ ही पश्चिमी राजस्थान के लोक संगीत को बखूबी पेश करने एवं सिखाने का अद्भुत सामर्थ्य रखते हैं।
हस्तियों के समक्ष प्रस्तुति दे धाक जमायी
        उस्ताद अकबर खाँ देश की कई नामी हस्तियों के समक्ष अपनी गायकी का प्रदर्शन कर चुके हैं। भारत के राष्ट्रपति  स्व. ज्ञानी जैलसिंह, स्व. नीलम संजीव रेड्डी, एम. हिदायतुल्ला, प्रधानमंत्राी श्रीमती इंदिरा गांधी, विश्व विख्यात स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर सहित देश-विदेश की कई हस्तियों  के समक्ष वे  अपने  फन की धाक जमा चुके हैं।
       हिन्दी फिल्म रुदाली, नन्हे जैसलमेर, लम्हे, कृष्णा, सात रंग के सपने, जोर, मीनाक्षी , रेशमा और शेरा, रजिया सुल्तान सहित कई भारतीय एवं विदेशी फिल्मों में उन्होंने अपनी लोक संगीत की शानदार प्रस्तुतियों का रिकार्ड बनाया है।  यूनेस्को वर्ल्ड म्यूजिक वैबसाईट पर भी अकबर की प्रस्तुति समाहित है।
     महारावल श्री गिरधर स्मारक धर्मार्थ न्यास ट्रस्ट, इन्टेक, अल्ला जिलाही बाई मांड गायिकी और प्रशिक्षण संस्थान, बीकानेर द्वारा सम्मान के साथ ही शिक्षा विभाग बीकानेर द्वारा इन्हें राज्यस्तरीय मंत्रालयिक कर्मचारी सम्मान भी प्रदान किया गया है। स्टेट फैडरेशन ऑफ यूनेस्को द्वारा सम्मानित अकबर खॉं को राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर ने भी कला पुरोधा अवार्ड देकर प्रोत्साहित किया है।
दूसरों के लिए जीने की भावना
       उस्ताद अकबर खाँ उन बिरले फनकारों में हैं जो अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीते हैं। सांस्कृतिक आयोजन हों या कलाकारों के प्रोत्साहन-कल्याण का कोई प्रयोजन, कलाकारों को संगठित कर उनके सामाजिक एवम् आर्थिक विकास के लिए उन्होंने हर संभव संघर्ष किया और कभी पीछे नहीं रहे।
       पुरानी पीढ़ी से लेकर नई पीढ़ी के कलाकार भी अकबर खाँ को खूब इज्जत देते हैं। आम आदमी की पीड़ाओं के प्रति संवदेनशील उस्ताद अकबर खाँ की पहल पर कई जन समस्याओं का समाधान हुआ है। उस्ताद अकबर खाँ अपनी 72 वर्ष की आयु में भी कला और संस्कृति जगत की सेवाओं के लिए समर्पित हैं।

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