अनुठे हैं थार के झोंपड़े,सिन्ध शैली के झोंपे लोकप्रिय
बिना कूलर एयर कण्डीसनर के शीतलता का अहसास
बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिला रेगिस्तान के विशाल भूु भाग में विषम परिस्थितियों में बसा सपनो के सुन्दर चित्रो से जुदा नहीं हैं।थार वासियों की कठिन किन्तु रंगीन जीवन शैली हर एक को प्रभावित करती हैं।रेगिस्तानी धोरो के बीच बने तरह तरह के झोपे आकर्षित करते हैं।पाकिस्तान से सटी सरहद क्षैत्रा में ग्रामिणो द्धारा बनाए सिन्धशली के अनुठे झौंपे मरुस्थल की रंगीन जीवनशैली को दर्शाता हैं।वहीं थार के रेगिस्तान में पड रही भीषण गर्मी का मुहॅ तोड जवाब ये देसी झौंपे हैं।जो 48-50 डिग्री की गर्मी में बिना कुलर एयर कण्डीशनर के शीतलता का अहसास कराता हैं।रेगिस्तनी गर्मी को मुॅह चिढातें देशी शैली के ये झौंपे बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं।राजस्थानो मरुस्थल क्षैत्र में किसी भी दिशा में चले जांए झौंपो के अलग अलग प्रकार के सैकडों झांकियां आखों को शकुन देती हैं।कई गांव झौंपो की ना-ना प्रकार की छटा लिये हुए मिलेंगं तो कुछ गांव झोंपड़े,पड़वे,गड़ाल,छान,ओळा,आदि रुपों में अपनी बनावट,मण्डाई,रुपाकंन,और सुख सुविधाओं के सुन्दर स्वरुप सहेजे मिलेंगे।गांव ढाणियों मेंगोबर के गारे से निर्मित झोंपो की दीवार में मुरड़,खड़ी,राख या फिर सीमेंट का उपयोग किया जाता हैं।झोंपों की दीवारो के उपरी भाग की मण्डाई का कार्य क्षैत्र में उपलब्ध पैड़-पौधें,घास,और झाड़ियों के अनुरुप किया जाता हैं।छाण या ढॉचा तैयार करने मेंकैर,खैजड़ी,देसी बबुल,या रोहिड़े की घोड़ियॉ तो बाण के रुप में आक,फोग,की पतली टहनियों तथा छावण का उपरी भाग बाजरें के पुळों एव। घास की पुळियों या खींप और सिणियों से किया जाता हैं।भीतरी ढांचे और छिवाई के जोड़ों को मजबूती प्रदान करने के लिए बांधी जाने वाली डोरियों कों जूण कहा जाता हैं,जो सिणियों ,खींप या फिर मूंज से बनाया जाता हैं।झोंपे के भीतरी भाग की छत को सुन्दर रुप देने के लिए सरकण्डों का उपयोग किया जाता हैं।इसके मण्डाण में परम्परागत षिल्प और शगुन का ध्यान रखा जाता हैं।झौंपो का फर्श परम्परागत रुप से गोबर का नीपा जाता हैं।झौंपों की बसावट खेत की उॅचाई वाले स्थान या धोरे पर की जाती हैं। स्थान तय करने से पहले हवा पानी तथा खेतों की रखवाली को ध्यान में रखा जाता हैंझोंपे के निर्माण के वक्त हवा के रुख का पूर्ण ध्यान रखा जाता हैंआमने-सामने की दिवारो। पर मोखे खिड़कियां रखी जाती हैं जिसमें शानदार हवा अनवरत आती हैं।सरहदी क्षैत्रा में बने झौंपे सिन्ध शैली के अधिक हैं।सिन्ध क्षैत्रा के झौंपो की तरह झौंपो को आर्कषक बनाने के लिए उनके भीतरी भाग को पाण्डु और गेरु की भांतो से रंग दिया जाता हैं।उसके सूखने पर आळो और मोखों के चारों ओर तथा खाली स्थानों पर लोक संस्कृति के माण्डणे मांण्डे जातेहैं ।ये माण्ड़णे बहुररंगी तथा चटकीले रंगो में होते हैं।पाण्डु और कलाई के प्रभाव से उनकी छआ देखते बनती हैं।इन माण्ड़णोमेंलोक शैली में पैड़-पौधे,वनस्पति,सूरज,चान्द,बेल-बूटे पशु-पक्षी, लोक वाद्य यंत्रो,लोक देवताओं के मन मोहक चित्राण होते हैं।कहीं कहीं रंगों की बजाए पाण्डु के श्वेत धरातल पर गेरु के चितराम उकेरे जाते हैं।झोंपे का आंगन भी कम नहीं सजाया जाता हैं।चिकनी मिटी और गोबर के लेप से आंगन में गैरु और पाण्डु की झालर और बीच बीच में माण्डणे माण्ड कर आ।गन को आकर्षक बनाया जाता हैं।झोंपे सामान्य धरो से पॉच सितारा होटलो की शान बन चुके हैं,देशी विदेशी पर्यटक खास तौर से झौंपों की मांग करते हैं।सरकारी अधिकारीयों को भी झापों का शौक चर्राया हेेै,अमुमन हर अधिकारी के बंगले में दो तीन झौंपें अवश्य नजर आते हैं।ग्रामीण क्षैत्रों में झौंपों की साज सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता हैं।पाक की सरहद से सटे सीमावर्ती गांवों के झौंपे इतने आकर्षक होते हैं कि वो सिर्फ देखने से ताल्लुक रखते हैं।
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