शुक्रवार, 17 जून 2011

सुप्रीम कोर्ट जज की PM से पाक कैदी को छोड़ने की अपील



नई दिल्ली।। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस मार्कंडेय काट्जू ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हत्या के दोषी 80 वर्षीय पाकिस्तानी नागरिक खलील चिश्ती को मानवीय आधार पर रिहा करने में मदद करने की अपील की है। उन्होंने डर जताया कि अगर चिश्ती को तत्काल रिहा नहीं किया गया, तो राजस्थान हाई कोर्ट की उनकी अपील पर फैसला किए जाने तक जेल में ही उनकी मौत हो सकती है।

सांसद राजीव शुक्ला के जरिए प्रधानमंत्री को भेजे ई-मेल में जस्टिस काट्जू ने कहा कि सिंह को अनुच्छेद 72 के तहत चिश्ती को माफी देने की सिफारिश करनी चाहिए। अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को दोषियों की सजा को कम करने या माफ करने का अधिकार देता है।

जस्टिस काट्जू ने कहा कि वह शुक्ला के जरिए पत्र लिख रहे हैं, क्योंकि उनके पास प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत ई-मेल पता नहीं है। चिश्ती को साल 2010 में राजस्थान की एक सत्र अदालत ने आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

यह फैसला 18 साल तक मुकदमा चलने के बाद सुनाया गया था। उन्होंने हाई कोर्ट में एक अपील दायर की थी, लेकिन उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई।

मुकदमे की सुनवाई के दौरान सेशन कोर्ट ने चिश्ती को जमानत देते वक्त उनसे अजमेर छोड़कर नहीं जाने का आदेश दिया था। दोषी साबित होने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था। चिश्ती कराची मेडिकल कॉलेज में प्रफेसर थे। उन्होंने एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की थी।

अपनी बीमार मां से मिलने के लिए जब वह 1992 में अजमेर आए, तो अजमेर में उनके परिवार और कुछ अन्य लोगों के बीच विवाद हो गया। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई।

इसके बाद चिश्ती को गिरफ्तार कर लिया गया। होई कोर्ट में चिश्ती की अपील का उल्लेख करते हुए जस्टिस काट्जू ने कहा, 'कोई नहीं जानता कि अपील पर कब सुनवाई होगी और इस बीच चिश्ती की जेल में मौत हो सकती है। उन्होंने कहा कि चिश्ती दिल के भी मरीज हैं और उनकी कूल्हे की हड्डी टूट गई है। अगर जेल में उनकी मौत हो जाती है, तो यह देश के लिए कलंक होगा।

उधर, बीजेपी ने चिश्ती की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखने को गैरमामूली करार दिया। बीजेपी ने केंद्र सरकार से कहा कि कि अगर वह इस आग्रह पर गौर कर रही है तो पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की जल्द रिहाई सुनिश्चित कराने के लिये भी नए सिरे से कोशिश की जानी चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें