शुक्रवार, 24 जून 2011

भगवत गीता भगवान श्री कृष्ण के साक्षात वचनों संग्रह है। उसी के अनुसार इंसान को जीवन व्यतीत करना चाहिए























































भगवत गीता


 कुरुक्षेत्र की रण भूमी में अर्जुन ने भगवान् श्री कृष्ण से कहा 'भगवान् मैं नहीं लडूँगा l अपने बन्धु बंधुओं तथा गुरुओं का सहार  कर के राजसुख भोजन की मेरी इच्छा नहीं है l यही अर्जुन कुछ क्षण पूर्व कोवरव की सारी सेना से णा को धराशायी करने के लिए संकल्प कर चुका था l परिस्तिथितिश क्लीव हो गया l कर्म से विमुख हो गया  l कर्तव्य से विमुख अर्जुन को जो उपदेश दिया गया वही तो गीता है l

गीता की गणन विश्व के महान ग्रंथो में की जाती है l श्री शंकराचार्य से लेकर श्री विनोबा भावे तक के महान साधकों ने गीता के महत्त्व को स्वीकार है l श्री लोकमान्य तिलक ने गीता से 'कर्म योग ' लिया l इस गीता के आधार पर राष्ट्र पिटा महात्मा गाँधी ने 'अनाशक्ति योग 'का प्रति पादन किया l गीता के महत्त्व का  प्रति पादन करते हुए महात्मा गाँधी  जी ने लिखा है जब मैं किसी विषय पर विचार करने में असमर्थ हो जाता हूँ तो गीता से ही मुझे प्रेरणा मिलती है l महामना पं ओ मदन मोहन मालवीय के अनुसार गीता अमृत है l इस अमृत का
पान करने से व्यक्ति अमर हो जाता है l गीता का आरम्भ धर्म से तथा अन्त कर्म से होता है l गीता मनुष्य को प्रेरणा देती है l 'मनुष्य का कर्तव्य क्या है ? इसी का बोध कर वाना गीता का लक्ष्य है l इसी आधार पर अर्जुन ने स्वीकारा था -'भगवान् !मेरा मेह क्षय हो गया है l अज्ञान से में ज्ञान में प्रवेश पा गया हूँ l आपके आदेश का पालना करने के लिए मैं कटिबद्ध हूँ l

गीता में कुल अठारह अध्याय है l महाभारत का युद्ध भी अठारह दिन तक हो चला था l गीता के कुल शलोकों की संख्या ७०० है l भगवत गीता में भक्ति तथा कर्म योग का सुन्दर समन्वय है l  इस मे ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है l ज्ञान की प्राप्ति पर ही मनुष्य को शंकाओं का वास्तविक समाधान होता है l इसी लिए गीता सर्व शास्त्रमय है l योगिराज श्री कृष्ण का मनुष्य मात्र को उपदेश है -कर्म करो l तुम्हारा कर्तव्य  कर्म करना ही है l फल की आशा  मत करो l फल को दृष्टी मे रखकर भी कर्म मत करो l कर्म करो पर निष्काम भाव से l फल इच्छा से कर्म करने वाला व्यक्ति विफल होकर दुखी होता है l अस्तु लक्ष्य की ओर प्रयास रतरहना हेई अच्छा है ----------
'कर्मण्ये  वाधिकारस्ते माफले शुक दाचना l
माँ कर्म फल हेतु भूर्मा ते सड गो स्त्व्यकर्माणि l l '

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