शनिवार, 28 मई 2011

शनि की उपासना


शनि की उपासना
अकारक ग्रहों से संबंधित मंत्र जप, दान तथा व्रत करने से उनके अशुभ प्रभावों में कमी आती है।
जन्म कुंडली में कारक और अकारक दो तरह के ग्रह होते हैं। कारक ग्रह शुभ फल देते हैं और अकारक ग्रह अशुभ फलदाता
 
होते हैं।
जन्म कुंडली में अकारक ग्रह कुंडली के अशुभ भावों के स्वामी होने के कारण बनते हैं जैसे- त्रिषटायश [3, 6, 11], मारकभाव [2 एवं 7] तथा 8वें और 12वें भाव के स्वामी ग्रह होने के कारण अशुभ फल देते हैं। विशेषकर अपनी दशा, अंतर्दशा तथा प्रत्यंतर में और अधिक प्रबलता से अशुभ फल देंगे। लग्नानुसार अकारक ग्रह इस प्रकार बनते हैं-
मेष लग्न में बुध, शुक्र, शनि, वृष में चंद्र, मंगल, गुरू, मिथुन में सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरू, कर्क में सूर्य, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, सिंह में चंद्र, गुरू, शुक्र, शनि, कन्या में सूर्य, मंगल, गुरू, शुक्र, शनि, तुला में मंगल, बुध, गुरू, वृश्चिक में बुध, शुक्र, शनि, धनु में चंद्र, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, मकर में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, कुंभ में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू और मीन में सूर्य, मंगल, शुक्र, शनि, राहु-केतु- जिस स्थान पर या जिस ग्रह के साथ बैठेंगे, वैसे ही फल देंगे।
अकारक ग्रह के अशुभ फल को दूर करने के लिए ग्रहों से संबंधित मंत्र, दान तथा व्रत करने से इनके अशुभ प्रभाव में कमी आती है। नव ग्रहों के मंत्र, व्रत और दान इस प्रकार हैं-
सूर्य मंत्र- ऊँ घृणि सूर्याय नम:, जप संख्या 7,000
दान- माणिक्य, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चंदन, गुड़, केसर अथवा तांबा।
 
व्रत- किसी भी माह के शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार से व्रत आरंभ करके 1 वर्ष तक अथवा 30 या 12 व्रत करें। सूर्यास्त से पूर्व भोजन करें तथा नमक का प्रयोग नहीं करें। बुजुर्ग व्यक्तियों का सम्मान करें।
चंद्र मंत्र- ऊँ सों सोमाय नम:, जप संख्या- 11,000
दान- बांस की टोकरी, चावल [साबुत], कपूर, मोती, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, घी से भरा पात्र, चांदी, मिश्री, दूध, दही, खीर, स्फटिक माला इत्यादि।
व्रत- कुल 10 या 54 सोमवार के व्रत करें। भोजन में प्रथम 7 ग्रास दही, चावल या खीर के खाएं फिर, अन्य भोजन सामग्री ग्रहण करें। मातृ तुल्य महिलाओं का सम्मान करें।
मंगल मंत्र- ऊँ अं अंगारकाय नम:, जप संख्या- 10,000
दान- मूंगा, गेहूं, मसूर, लाल वस्त्र, कनेर पुष्प, गुड़, तांबा, लाल चंदन, केसर।
व्रत- 21 या 45 मंगलवार के व्रत करें। भोजन में प्रथम 7 ग्रास गेहूं, गुड़ तथा घी से बना हलुआ या लड्डू के खाएं। पश्चात यथेच्छा पदार्थ का सेवन करें। विधवा महिलाओं का सम्मान करें, उनका आशीर्वाद लें। चांदी का चौकोर टुकड़ा हमेशा साथ रखें। गले में चांदी की माला धारण करें।
बुध मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नम:, जप संख्या- 9,000
दान- हरे मूंग, हरा वस्त्र, हरा फल, पन्ना, केसर, कस्तूरी, कपूर, शंख, घी, मिश्री, धार्मिक पुस्तकें तथा पूजा में मरगज के गणेशजी रखें।
व्रत- 21 या 45 बुधवार के व्रत करें। भोजन के पूर्व 5-7 पत्ते तुलसी के गंगाजल के साथ ग्रहण करें, इसके बाद व्रत खोलें।
गुरू मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नम:, जप संख्या 19,000
दान- घी, शहद, हल्दी, पीत वस्त्र, पीत धान्य, शास्त्र पुस्तक, पुखराज, लवण, कन्याओं को भोजन, वृद्धजन, विद्वान एवं गुरूओं की सेवा करें।
व्रत- 1 या 3 वर्ष अथवा 16 गुरूवार व्रत रखें। गुरूवार को केले के वृक्ष के दर्शन करें तथा पूजा करके हल्दी एवं सरसों मिलाकर जल प्रदान करें। ध्यान रखें जब गुरू अकारक हो तो स्वयं गुरूवार को केला नहीं खाएं, बल्कि केले के फल का दान दें।
शुक्र मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नम:, जप संख्या 16,000
दान- सफेद छींटदार वस्त्र, सजावट- श्रृंगार वस्तुएं, çस्त्रयों का आदर- सम्मान, तुलसी पूजा, श्वेत स्फटिक, चावल, सुगंधित वस्तु, कपूर, श्वेत चंदन अथवा पुष्प, घी- शक्कर- मिश्री-दही गौ की सेवा।
व्रत- 21 या 31 शुक्रवार के व्रत करें। व्रत के दिन सफेद रंग की गाय या कन्या के दर्शन करें। çस्त्रयों का आदर-सम्मान करें। अंतिम व्रत के दिन 6 कन्याओं को भोजन कराएं। भोजन में खीर हो।
शनि मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराय नम:, जप संख्या- 23,000
दान- उड़द, तिल, सभी तेल, भैंस, लोहा धातु, छतरी, काली गाय, काला कपड़ा, नीलम, जूता-चप्पल, सोना, कंबल आदि का दान दें।
व्रत- 19, 31, 51 शनिवार के व्रत करें। काले कुत्ते, भिखारी या अपाहिज को उड़द, दाल, केला तथा तेल से बना भोजन कराएं या इन्हीं वस्तुओं का दान दें।
राहु मंत्र- ऊँ रां राहवे नम:, जप संख्या- 18,000
दान- गेहूं, उड़द, काला घोड़ा, खड़ग, नीला वस्त्र, कंबल, तिल, लौह, सप्त धान्य,
 
अभ्रक आदि
व्रत- शनिवार का व्रत करें।
केतु मंत्र- ऊँ कें केतवे नम:, जप संख्या- 17,000
दान- तिल, कंबल, कस्तूरी, काला वस्त्र तथा पुष्प, सभी तेल, उड़द, काली मिर्च, सप्तधान्य, बकरा, लौह धातु, छतरी, सीसा, रांगा इत्यादि।
व्रत- शनिवार का व्रत करें।
विशेष- कुंडली के कारक ग्रह अर्थात केंद्र त्रिकोण के स्वामी भी यदि नीचगत हों तो उक्त उपाय करें। अकारक अथवा नीचगत ग्रह का रत्न कदापि धारण नहीं पहनें, बल्कि इनसे संबंधित नगों [रत्नों] का दान करें। इससे ग्रहों की शुभता बढ़ेगी।

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