कुलधरा,खाभा अवशेषों के साथ ही गुम हो जाएंगे
पशिचमी सरहदी जेसलमेर जिले का वैभवाली इतिहास इसकी कहानी खुद कहता हैं।जैसलमैर जिले के प्राचीन ,समृद्धाली,विकसित और वैभवाली इतिहास के साथ पालीवालों कें 84 गांवों की दर्दनाक किंदवन्तिया भी जुडी हैं।जैसलमेर जिला मुख्यालय सें 18 से 35 किलो मीटर के दायरे में पालीवालों कें वीरान और उजडे 84 गांवों की दास्तान आम आदमी कें रोंगटे खडे कर देता हैं।कुलधरा में हनुमान और खाभा में श्री कृश्णा मन्दिर आज भी वीरानी के साक्षी हैं।मेरा पुतैनी गांव खाभा जहॉ किलें की तलहटी पर मेरें परदादा पूज्य श्री शोभ सिंह जी की मूर्ति आज भी विद्यमान हैें।
कुलधरा पालीवालों का गांव था और पता नहीं क्या हुआ कि एक दिन अचानक यहां फल-फूल रहे पालीवाल अपनी इस सरज़मीं को छोड़कर अन्यत्र चले गये । उसके बाद से कुलधरा,खाभा,नभिया,धनाव सहित 84 गांवों पर कोई बस नहीं सका । कोशिशें हुईं पर नाकाम हो गयीं । कुलधरा के अवशेष आज भी विशेषज्ञों और पुरातत्वविदों के अध्ययन का केंद्र हैं । कई मायनों में पालीवालों ने कुलधरा को वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया था
कुलधरा जैसलमेर से तकरीबन अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है । पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में चौरासी गांव थे और ये उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था । पालीवालों का नाम दरअसल इसलिए पड़ा क्योंकि वो राजस्थान के पाली इलाक़े के रहने वाले थे । पालीवाल ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था । अपनी बुद्धिमत्ता, अपने कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने धरती पर सोना उगाया था । हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरज़मीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी । रेगिस्तान में खेती । पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था जिप्सम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना । पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ।
पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था । और बड़ी शान से जीता था ।
पालीवाल खेती और मवेशियों पर निर्भर रहते थे और इन्हीं से समृद्धि अर्जित करते थे । दिलचस्प बात ये है कि रेगिस्तान में पालीवालों ने सतह पर बहने वाली पान या ज़मीन पर मौजूदपानी का सहारा नहीं लिया । बल्कि रेत में मौजूद पानी का इस्तेमाल किया । पालीवाल ऐसी जगह पर गांव बसाते थे जहां धरती के भीतर जिप्सम की परत हो । जिप्सम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्त फसल पैदा करते । पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था ।
कुलधरा की वास्तुकला के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य कि कुलधरा में दरवाज़ों पर ताला नहीं लगता था । गांव का मुख्य-द्वार और गांव के घरों के बीच बहुत लंबा फ़ासला था । लेकिन ध्वनि-प्रणाली ऐसी थी कि मुख्य-द्वार से ही क़दमों की आवाज़ गांव तक पहुंच जाती थी । दूसरी बात उन्होंने ये बताई कि गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं । कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे ।
ऐसा उन्नत और विकसित 84 गांव एक दिन अचानक खाली कैसे हो गया । ये एक रहस्य ही है ।
कहते हैं कि जैसलमेर की राजा सालम सिंह को कुलधरा की समृद्धि बर्दाश्त नहीं हो रही थी । उसने कुलधरा के बाशिंदों पर भारी कर/टैक्स लगा दिये थे । पालीवालों का तर्क था कि चूंकि वो ब्राम्हण हैं इसलिए वो ये कर नहीं देंगे । जिसे राजा ने ठुकरा दिया । ये बात स्वाभिमानी पालीवालों को हज़म नहीं हुई और मुखियाओं के विमर्श के बाद उन्होंने इस सरज़मीं से जाने का फैसला कर लिया । इस संबंध में एक कथा और है । कहते हैं कि जैसलमेर के दिलफेंक दीवान को कुलधरा की एक लड़की पसंद आ गयी थी । ये बात पालीवालों को बर्दाश्त नहीं हुई और रातों रात वो यहां से हमेशा हमेशा के लिए चले गये । अब सच क्या है ये जानना वाक़ई बेहद मुश्किल है । लेकिन कुलधरा के इस वीरान खंडहर में घूमकर मुझे बहुत अजीब- सा लगा । इन घरों, चबूतरों, अटारियों को देखकर पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि अभी कोई महिला सिर पर गगरी रखे निकल पड़ेगी या कोई बूढ़-बुजुर्ग चबूतरे पर हुक्का गुड़गुड़ाता दिखेगा । बच्चे धूल मिट्टी में लिपटे खेलते नज़र आएंगे । पगड़ी लगाए पालीवाल अपने खेतों पर निकल रहे होंगे । पर सच ये है कि सदियों से पालीवालों का ये गांव पूरी तरह से वीरान है ।
अफ़सोस के पालीवालों के वैज्ञानिक रहस्य कुलधरा के अवशेषों के साथ ही गुम हो जाएंगे ।
dhinwaad sa.
जवाब देंहटाएंbot hi umda jaankari athe di aap . pdh ne dard re saage garv hoyo PALIWALA ri vegyaanik buddhi par.
in bare me suniyo ho kei var ar athe pdhne or chokho laago .
aapro kaam bot sarawn jog hai .
sagala foto bot jeewant hai . aapro dard khud bayan kr dewe .
जवाब देंहटाएंshare khatr dhinwad .
kiranji aapro ghano man .aabhar
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