गुरुवार, 29 मार्च 2012

विकलांग लड़की की पत्थर से शादी!

फतेहपुर इस वैज्ञानिक युग में भी समाज को अंधविश्वास की जकड़न से छुटकारा नहीं मिल पाया है। समाज को झकझोर देने वाला अंधविश्वास का नया मामला उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के एक गांव का है, जहां एक पिता अपनी विकलांग बेटी की शादी पत्थर से तय कर निमंत्रण पत्र भी बांट चुका है। शादी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और गांव के देवी मंदिर में इसके लिए अनुष्ठान भी शुरू हो चुका है। marraige-new.jpg 
फतेहपुर जिले के जाफरगंज थाने के परसादपुर गांव की गौरा देवी मंदिर में यज्ञ और कर्मयोगी श्रीकृष्ण की रासलीला का मंचन किया जा रहा है। इसी यज्ञ के पंडाल में एक अप्रैल को गांव के बालगोविंद त्रिपाठी मानसिक एवं शारीरिक रूप से कमजोर अपनी बेटी की शादी मंदिर के एक पत्थर के साथ हिंदू रीति-रिवाज से रचाएंगे। इसके लिए उन्होंने बाकायदा निमंत्रण पत्र छपवा कर इलाके के गणमान्य व अपने रिश्तेदारों में बांटा भी गया है। हैरानी की बात यह है कि निमंत्रण पत्रों में सभी वैवाहिक कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के लखनऊ सचिवालय में तैनात एक कर्मचारी राजेश शुक्ल द्वारा सम्पन्न कराए जाने का जिक्र है।

त्रिपाठी का कहना है कि वह अपनी बेटी की शादी मंदिर के पत्थर के साथ इसलिए करने जा रहे हैं, ताकि वह अगले जन्म में विकलांग पैदा न हो। ग्रामीण जगन्नाथ का कहना है कि पत्थर के साथ शादी रचाने की यह पहली घटना है। कुछ दिन पूर्व भी त्रिपाठी ने ऐसी कोशिश की थी लेकिन गांव वालों के दबाव में वह सफल नहीं हो पाए थे। मकसद में कामयाब होने के लिए ही अबकी बार उन्होंने सचिवालय के कर्मचारी को आगे किया है, ताकि पुलिस कार्रवाई न हो सके।

बिंदकी के उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) डॉ. विपिन कुमार मिश्र ने बताया, 'मुझे इसके बारे में जानकारी मिली है और मैंने जाफरगंज थानाध्यक्ष को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।'

जाफरगंज के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया, 'यह समाज का फैसला है, इसके लिए क्या कहा जाए। पत्थर से शादी हो सकती है या नहीं, यह जिले के अधिकारी बताएंगे।' थानाध्यक्ष जाफरगंज मनोज पाठक ने कहा, 'एसडीएम का निर्देश मिल चुका है, गांव जाकर जांच पड़ताल की जाएगी। बेजान या पशुओं से किसी की शादी रचाना कानूनन अपराध है।'

इस घटना से एक बात स्पष्ट है कि आधुनिक कहे जाने वाले समाज में ऐसे चेहरे भी मौजूद हैं, जो अंधविश्वास में भरोसा करने की बड़ी भूल कर रहे हैं। यदि निमंत्रण पत्रों में सचिवालय कर्मी का नाम उसकी इजाजत पर छपा है तो मामला और संगीन बन जाता है।

नशे में फोन पर दिया तलाक भी जायज

नशे में फोन पर दिया तलाक भी जायज

नई दिल्ली। दारूल उलूम देवबंद ने फतवा जारी किया है कि नशे की हालत में फोन पर दिया गया तलाक वैध होगा। यह फतवा 13 मार्च को जारी किया गया। एक शख्स ने पूछा था कि क्या नशे की हालत में फोन पर दिया जाने वाला तलाक वैध है। अगर वैध है तो ऎसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए? इस शख्स के मुताबिक हाल ही में उसके जीजा ने नशे की हालत में फोन पर उसकी बहन को तलाक दे दिया था। लेकिन जब मेरे जीजा का नशा उतरा तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

अब वह मेरी बहन से रिश्ता रखना चाहता है। दारूल इफ्ता ने अपने जवाब में कहा कि अगर किसी ने महिला को तीन बार तलाक-तलाक कह दिया तो वह महिला पति के लिए हराम हो जाती है। अब आपकी बहन की फिर से उसी शख्स से शादी वैध हल्लाह के तहत ही हो सकती है। हल्लाह के तहत उस औरत को किसी और से शादी करनी होगी। इसके बाद उसका पति उसे तलाक देगा या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है तो फिर वह पुराने पति से निकाह कर सकती है।

ISI की भारत में विस्फोटकों का जखीरा भेजने की साजिश!

जैसलमेर। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इन्टर सर्विसेज इन्टेलीजेंस (आईएसआई) के राजस्थान के रेतीले टीलों से लगती अन्तरराष्ट्रीय सीमा से हथियार और विस्फोटकों का जखीरा भारत भेजने की साजिश का खुलासा हुआ है।


विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि मुंबई एटीएस के सीमा पार से भेजे गए एक संदेश से पता चला है कि आईएसआई के भारत में मौजूद अपने एक एजेंट को इस बारे में जानकारी दी है कि विस्फोटकों और हथियारों का जखीरा राजस्थान सीमा से भिजवाया जा रहा है।

सूत्रों ने बताया कि इस संदेश के बाद सीमा सुरक्षा बल को सतर्क कर दिया गया है और सीमावर्ती पुलिस थानों को भी सजग रहने के निर्देश दिए गए हैं। इस बारे में संपर्क किये जाने पर जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक उमेश मिश्रा ने बताया कि सीमा पार से हथियार भेजने की बातचीत को मुंबई एटीएस ने इंटरसेप कर पुलिस महानिदेशक राजस्थान को इस बारे में सूचना भेजी है।

उन्होंने बताया कि जैसलमेर और बाडमेर पुलिस को सतर्कता बढाने को कहा गया है और सीमावर्ती थानों को चौकसी बढाने के साथ ही संदिग्धों पर निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।

बीएसएफ के सूत्रों ने बताया कि सीमा पर तैनात प्रहरियों को अलर्ट कर दिया गया है औऱ सीमा पर पैनी निगाह रखने के साथ रात्रिकालीन गश्त बढा दी गई है।

राजस्थान दिवस बाड़मेर से एक साथ उठेगी राजस्थानी को मान्यता की आवाज


अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर

 राजस्थान दिवस बाड़मेर से एक साथ उठेगी राजस्थानी को मान्यता की आवाज

‘राजस्थानी रै बिना गूंगो राजस्थान’ का लगेगा नारा, कार्यकर्त्ता देंगे तहसील व जिला मुख्यालयों पर बारह बजे ज्ञापन

राजस्थान दिवस के अवसर पर 30 मार्च को राजस्थानी भाषा को मान्यता की आवाज

प्रदेशभर से एक साथ उठेगी।



बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षसमिति की ओर सेराजस्थान दिवस पर बाड़मेर जिला मुख्यालय सहित सभी उपखंड मुख्यालयों पर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग को लेकर ज्ञापन

दिए जाएंगे। इसके लिए संघर्ष समिति के बी डी चारण ,अनिल वैष्णव को बालोतरा ,महावीर जीनगर को बायतु ,के एस दाखा को सिवाना बाबूलाल मंजू को गुडा मालानी रहमान जायादू को चौहटन नेपाल सिंह कोटडा को शिव का प्रभार सोंपा गया हें जिला मुख्यालय पर जिला संयोजक चन्दन सिंह भाटी,मोटियार परिषद् के पाटवी रघुवीर सिंह तामलोर ,डॉ लक्ष्मी नारायण जोशी अनिल सुखानी श्रीमती देवी चौधरी श्रीमती उर्मिला जैन रमेशा सिंह इन्दा ,एडवोकेट विजय कुमार ,रमेश गौड़ को जिम्मेदारिया दे गयी हें ,

समिति के समिति के संयोजक चन्दन सिंह भाटी के अनुसार इसदिन ‘राजस्थानी रै बिना गूंगो राजस्थान’ संघर्ष का मुख्य नारा रहेगा तथासभी कार्यकर्त्ता ज्ञापन सौंपते वक्त यह नारा लिखी मुखपत्ती अपने मुख परलगाए रखेंगे। संघर्ष समिति के सभी घटक राजस्थानी मोट्यार परिषद,राजस्थानी महिला परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी फिल्म परिषद,राजस्थानी खेल परिषद, राजस्थानी लोक कलाकार परिषद तथा मातृभाषा राजस्थानीछात्र मोर्चा के कार्यकर्ता इसमें सक्रिय भूमिका निभाएंगे औरप्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री के नाम राजस्थानी भाषा को संवैधानिकमान्यता की मांग के ज्ञापन दोपहर बारह बजे जिला कलेक्टर को देंगे। साथ ही केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारणमंत्री अंबिका सोनी के नाम राजस्थान दूरदर्शन का नाम डीडी राजस्थान सेडीडी राजस्थानी करने तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम राजस्थानी भाषा,साहित्य, संस्कृति व शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने संबंधी 17 सूत्री ज्ञापनभी दिए जाएंगे।

बाघा भारमली की अमर प्रेम कहानी की



राजस्‍थान लोक साहित्‍य में विशिष्‍ट स्‍थान है

 बाघा भारमली की अमर प्रेम कहानी की

बाड़मेर: प्रेम की कथा अकथ है, अनिवर्चनीय है। फिर भी प्रेम कथा विविध प्रकार से कही जाती है, कही जाती थी और कही जाएगी। थार के इस रेगिस्‍तान में कई प्रेम गाथाओं ने जन्म लिया होगा, मगर बाघा-भारमली की प्रेम कथा राजस्थान के लोक साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

समाज और परम्पराओं के विपरित बाघा भारमली की प्रेम कथा बाड़मेर के कण-कण में समाई है। इस प्रेम कथा को रुठी रानी में अवश्य विस्तार मिला है। मगर, स्थानीय तौर पर यह प्रेम कथा साहित्यकारों द्वारा अपेक्षित हुई है। हालांकि, चारण कवियों ने अपने ग्रन्थों में इस प्रेम कथा का उल्लेख अवश्य किया है। कोटड़ा के किले से जो प्रेम कहानी निकली, वह बाघा-भारमली के नाम से अमर हुई।

मारवाड़ के पश्चिमी अंचल बाड़मेर-जैसलमेर से सम्बन्धित यह प्रणय वृतान्त आज भी यहां की सांस्कृतिक परम्परा एवं लोक-मानस में जीवन्त है। इस प्रेमगाथा का नायक बाघजी राठौड़ बाड़मेर जिले के कोटड़ा ग्राम का था। उसका व्यक्तिव शूरवीरता तथा दानशीलता से विशेष रूप से सम्पन्न था। जैसलमेर के भाटियों के साथ उसके कुल का वैवाहिक संबंध होने के कारण वह उनका समधी (गनायत) लगता था।

कथा की नायिका भारमली जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की दासी थी। 1536 ई में उमा दे का जोधपुर के राव मालदेव (1531-62ई) से विवाह होने पर भारमली उमा दे के साथ ही जोधपुर आ गई। वह रुप-लावण्य तथा शारीरिक-सौष्ठव में अप्सराओं जैसी अद्वितीय थी।

विवाहोपरान्त मधु-यामिनी के अवसर पर राव मालदेव को उमा दे रंगमहल में पधारने का अर्ज करने हेतु गई दासी भारमली के अप्रतिम सौंदर्य पर मुग्ध होकर मदमस्त राव जी रंगमहल में जाना बिसरा भारमली के यौवन में ही रम गये। इससे राव मालदेव और रानी उमा दे में ‘रार’ ठन गई, रानी रावजी से रुठ गई। यह रुठन-रार जीवनपर्यन्त रही, जिससे उमा दे ‘रुठी रानी’ के नाम से प्रसिद्व हुईं।

राव मालदेव के भारमली में रत होकर रानी उमा दे के साथ हुए विश्वासघात से रुष्ट उसके पीहर वालों ने अपनी राजकुमारी का वैवाहिक जीवन निर्द्वन्द्व बनाने हेतु अपने योद्वा ‘गनायत’ बाघजी को भारमली का अपहरण करने के लिए उकसाया। भारमली के अनुपम रुप-यौवन से मोहित हो बाघजी उसका अपहरण कर कोटड़ा ले आया एवं उसके प्रति स्वंय को हार बैठा। भारमली भी उसके बल पौरुष हार्द्विक अनुसार के प्रति समर्पित हो गई, जिससे दोनों की प्रणय-वल्लरी प्रीति-रस से नित्‍य प्रति सिंचित होकर प्रफुल्ल और कुसुमित-सुरभित होने लगी।

इस घटना से क्षुब्ध राव मालदेव द्वारा कविराज आसानन्द को बाघाजी को समझा-बुझा कर भारमली को लौटा लाने हेतु भेजा गया। आसानन्द के कोटड़ा पहुंचने पर बाघ जी तथा भारमली ने उनका इतना आदर-सत्कार किया कि वे अपने आगमन का उद्देश्य भूल वहीं रहने लगे। उसकी सेवा-सुश्रूषा एवं हार्दिक विनय-भाव से अभिभूत आसाजी का मन लौटने की बात सोचता ही नहीं था। उनके भाव विभोर चित्त से प्रेमी-युगल की हृदयकांक्षा कुछ इस प्रकार मुखरित हो उठी-

‘जहं तरवर मोरिया, जहं सरवर तहं हंस।
जहं बाघो तहं भारमली, जहं दारु तहं मंस।।’

उसके बाद आसानन्‍द, बाघजी के पास ही रहे। इस प्रकार बाघ-भारमली का प्रेम वृतान्त प्रणय प्रवाह से आप्‍लायित होता रहा। बाघजी के निधन पर कवि ने अपना प्रेम तथा शोक ऐसे अभिव्यक्त किया-

‘ठौड़ ठौड़ पग दौड़, करसां पेट ज कारणै।
रात-दिवस राठौड़, बिसरसी नही बाघनै।।’