गुरुवार, 29 मार्च 2012

विकलांग लड़की की पत्थर से शादी!

फतेहपुर इस वैज्ञानिक युग में भी समाज को अंधविश्वास की जकड़न से छुटकारा नहीं मिल पाया है। समाज को झकझोर देने वाला अंधविश्वास का नया मामला उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के एक गांव का है, जहां एक पिता अपनी विकलांग बेटी की शादी पत्थर से तय कर निमंत्रण पत्र भी बांट चुका है। शादी की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और गांव के देवी मंदिर में इसके लिए अनुष्ठान भी शुरू हो चुका है। marraige-new.jpg 
फतेहपुर जिले के जाफरगंज थाने के परसादपुर गांव की गौरा देवी मंदिर में यज्ञ और कर्मयोगी श्रीकृष्ण की रासलीला का मंचन किया जा रहा है। इसी यज्ञ के पंडाल में एक अप्रैल को गांव के बालगोविंद त्रिपाठी मानसिक एवं शारीरिक रूप से कमजोर अपनी बेटी की शादी मंदिर के एक पत्थर के साथ हिंदू रीति-रिवाज से रचाएंगे। इसके लिए उन्होंने बाकायदा निमंत्रण पत्र छपवा कर इलाके के गणमान्य व अपने रिश्तेदारों में बांटा भी गया है। हैरानी की बात यह है कि निमंत्रण पत्रों में सभी वैवाहिक कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के लखनऊ सचिवालय में तैनात एक कर्मचारी राजेश शुक्ल द्वारा सम्पन्न कराए जाने का जिक्र है।

त्रिपाठी का कहना है कि वह अपनी बेटी की शादी मंदिर के पत्थर के साथ इसलिए करने जा रहे हैं, ताकि वह अगले जन्म में विकलांग पैदा न हो। ग्रामीण जगन्नाथ का कहना है कि पत्थर के साथ शादी रचाने की यह पहली घटना है। कुछ दिन पूर्व भी त्रिपाठी ने ऐसी कोशिश की थी लेकिन गांव वालों के दबाव में वह सफल नहीं हो पाए थे। मकसद में कामयाब होने के लिए ही अबकी बार उन्होंने सचिवालय के कर्मचारी को आगे किया है, ताकि पुलिस कार्रवाई न हो सके।

बिंदकी के उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) डॉ. विपिन कुमार मिश्र ने बताया, 'मुझे इसके बारे में जानकारी मिली है और मैंने जाफरगंज थानाध्यक्ष को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।'

जाफरगंज के पुलिस क्षेत्राधिकारी (सीओ) सूर्यकांत त्रिपाठी ने बताया, 'यह समाज का फैसला है, इसके लिए क्या कहा जाए। पत्थर से शादी हो सकती है या नहीं, यह जिले के अधिकारी बताएंगे।' थानाध्यक्ष जाफरगंज मनोज पाठक ने कहा, 'एसडीएम का निर्देश मिल चुका है, गांव जाकर जांच पड़ताल की जाएगी। बेजान या पशुओं से किसी की शादी रचाना कानूनन अपराध है।'

इस घटना से एक बात स्पष्ट है कि आधुनिक कहे जाने वाले समाज में ऐसे चेहरे भी मौजूद हैं, जो अंधविश्वास में भरोसा करने की बड़ी भूल कर रहे हैं। यदि निमंत्रण पत्रों में सचिवालय कर्मी का नाम उसकी इजाजत पर छपा है तो मामला और संगीन बन जाता है।

नशे में फोन पर दिया तलाक भी जायज

नशे में फोन पर दिया तलाक भी जायज

नई दिल्ली। दारूल उलूम देवबंद ने फतवा जारी किया है कि नशे की हालत में फोन पर दिया गया तलाक वैध होगा। यह फतवा 13 मार्च को जारी किया गया। एक शख्स ने पूछा था कि क्या नशे की हालत में फोन पर दिया जाने वाला तलाक वैध है। अगर वैध है तो ऎसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए? इस शख्स के मुताबिक हाल ही में उसके जीजा ने नशे की हालत में फोन पर उसकी बहन को तलाक दे दिया था। लेकिन जब मेरे जीजा का नशा उतरा तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

अब वह मेरी बहन से रिश्ता रखना चाहता है। दारूल इफ्ता ने अपने जवाब में कहा कि अगर किसी ने महिला को तीन बार तलाक-तलाक कह दिया तो वह महिला पति के लिए हराम हो जाती है। अब आपकी बहन की फिर से उसी शख्स से शादी वैध हल्लाह के तहत ही हो सकती है। हल्लाह के तहत उस औरत को किसी और से शादी करनी होगी। इसके बाद उसका पति उसे तलाक देगा या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है तो फिर वह पुराने पति से निकाह कर सकती है।

ISI की भारत में विस्फोटकों का जखीरा भेजने की साजिश!

जैसलमेर। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इन्टर सर्विसेज इन्टेलीजेंस (आईएसआई) के राजस्थान के रेतीले टीलों से लगती अन्तरराष्ट्रीय सीमा से हथियार और विस्फोटकों का जखीरा भारत भेजने की साजिश का खुलासा हुआ है।


विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि मुंबई एटीएस के सीमा पार से भेजे गए एक संदेश से पता चला है कि आईएसआई के भारत में मौजूद अपने एक एजेंट को इस बारे में जानकारी दी है कि विस्फोटकों और हथियारों का जखीरा राजस्थान सीमा से भिजवाया जा रहा है।

सूत्रों ने बताया कि इस संदेश के बाद सीमा सुरक्षा बल को सतर्क कर दिया गया है और सीमावर्ती पुलिस थानों को भी सजग रहने के निर्देश दिए गए हैं। इस बारे में संपर्क किये जाने पर जोधपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक उमेश मिश्रा ने बताया कि सीमा पार से हथियार भेजने की बातचीत को मुंबई एटीएस ने इंटरसेप कर पुलिस महानिदेशक राजस्थान को इस बारे में सूचना भेजी है।

उन्होंने बताया कि जैसलमेर और बाडमेर पुलिस को सतर्कता बढाने को कहा गया है और सीमावर्ती थानों को चौकसी बढाने के साथ ही संदिग्धों पर निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।

बीएसएफ के सूत्रों ने बताया कि सीमा पर तैनात प्रहरियों को अलर्ट कर दिया गया है औऱ सीमा पर पैनी निगाह रखने के साथ रात्रिकालीन गश्त बढा दी गई है।

राजस्थान दिवस बाड़मेर से एक साथ उठेगी राजस्थानी को मान्यता की आवाज


अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर

 राजस्थान दिवस बाड़मेर से एक साथ उठेगी राजस्थानी को मान्यता की आवाज

‘राजस्थानी रै बिना गूंगो राजस्थान’ का लगेगा नारा, कार्यकर्त्ता देंगे तहसील व जिला मुख्यालयों पर बारह बजे ज्ञापन

राजस्थान दिवस के अवसर पर 30 मार्च को राजस्थानी भाषा को मान्यता की आवाज

प्रदेशभर से एक साथ उठेगी।



बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षसमिति की ओर सेराजस्थान दिवस पर बाड़मेर जिला मुख्यालय सहित सभी उपखंड मुख्यालयों पर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग को लेकर ज्ञापन

दिए जाएंगे। इसके लिए संघर्ष समिति के बी डी चारण ,अनिल वैष्णव को बालोतरा ,महावीर जीनगर को बायतु ,के एस दाखा को सिवाना बाबूलाल मंजू को गुडा मालानी रहमान जायादू को चौहटन नेपाल सिंह कोटडा को शिव का प्रभार सोंपा गया हें जिला मुख्यालय पर जिला संयोजक चन्दन सिंह भाटी,मोटियार परिषद् के पाटवी रघुवीर सिंह तामलोर ,डॉ लक्ष्मी नारायण जोशी अनिल सुखानी श्रीमती देवी चौधरी श्रीमती उर्मिला जैन रमेशा सिंह इन्दा ,एडवोकेट विजय कुमार ,रमेश गौड़ को जिम्मेदारिया दे गयी हें ,

समिति के समिति के संयोजक चन्दन सिंह भाटी के अनुसार इसदिन ‘राजस्थानी रै बिना गूंगो राजस्थान’ संघर्ष का मुख्य नारा रहेगा तथासभी कार्यकर्त्ता ज्ञापन सौंपते वक्त यह नारा लिखी मुखपत्ती अपने मुख परलगाए रखेंगे। संघर्ष समिति के सभी घटक राजस्थानी मोट्यार परिषद,राजस्थानी महिला परिषद, राजस्थानी चिंतन परिषद, राजस्थानी फिल्म परिषद,राजस्थानी खेल परिषद, राजस्थानी लोक कलाकार परिषद तथा मातृभाषा राजस्थानीछात्र मोर्चा के कार्यकर्ता इसमें सक्रिय भूमिका निभाएंगे औरप्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री के नाम राजस्थानी भाषा को संवैधानिकमान्यता की मांग के ज्ञापन दोपहर बारह बजे जिला कलेक्टर को देंगे। साथ ही केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारणमंत्री अंबिका सोनी के नाम राजस्थान दूरदर्शन का नाम डीडी राजस्थान सेडीडी राजस्थानी करने तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम राजस्थानी भाषा,साहित्य, संस्कृति व शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने संबंधी 17 सूत्री ज्ञापनभी दिए जाएंगे।

बाघा भारमली की अमर प्रेम कहानी की



राजस्‍थान लोक साहित्‍य में विशिष्‍ट स्‍थान है

 बाघा भारमली की अमर प्रेम कहानी की

बाड़मेर: प्रेम की कथा अकथ है, अनिवर्चनीय है। फिर भी प्रेम कथा विविध प्रकार से कही जाती है, कही जाती थी और कही जाएगी। थार के इस रेगिस्‍तान में कई प्रेम गाथाओं ने जन्म लिया होगा, मगर बाघा-भारमली की प्रेम कथा राजस्थान के लोक साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखती है।

समाज और परम्पराओं के विपरित बाघा भारमली की प्रेम कथा बाड़मेर के कण-कण में समाई है। इस प्रेम कथा को रुठी रानी में अवश्य विस्तार मिला है। मगर, स्थानीय तौर पर यह प्रेम कथा साहित्यकारों द्वारा अपेक्षित हुई है। हालांकि, चारण कवियों ने अपने ग्रन्थों में इस प्रेम कथा का उल्लेख अवश्य किया है। कोटड़ा के किले से जो प्रेम कहानी निकली, वह बाघा-भारमली के नाम से अमर हुई।

मारवाड़ के पश्चिमी अंचल बाड़मेर-जैसलमेर से सम्बन्धित यह प्रणय वृतान्त आज भी यहां की सांस्कृतिक परम्परा एवं लोक-मानस में जीवन्त है। इस प्रेमगाथा का नायक बाघजी राठौड़ बाड़मेर जिले के कोटड़ा ग्राम का था। उसका व्यक्तिव शूरवीरता तथा दानशीलता से विशेष रूप से सम्पन्न था। जैसलमेर के भाटियों के साथ उसके कुल का वैवाहिक संबंध होने के कारण वह उनका समधी (गनायत) लगता था।

कथा की नायिका भारमली जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री उमादे की दासी थी। 1536 ई में उमा दे का जोधपुर के राव मालदेव (1531-62ई) से विवाह होने पर भारमली उमा दे के साथ ही जोधपुर आ गई। वह रुप-लावण्य तथा शारीरिक-सौष्ठव में अप्सराओं जैसी अद्वितीय थी।

विवाहोपरान्त मधु-यामिनी के अवसर पर राव मालदेव को उमा दे रंगमहल में पधारने का अर्ज करने हेतु गई दासी भारमली के अप्रतिम सौंदर्य पर मुग्ध होकर मदमस्त राव जी रंगमहल में जाना बिसरा भारमली के यौवन में ही रम गये। इससे राव मालदेव और रानी उमा दे में ‘रार’ ठन गई, रानी रावजी से रुठ गई। यह रुठन-रार जीवनपर्यन्त रही, जिससे उमा दे ‘रुठी रानी’ के नाम से प्रसिद्व हुईं।

राव मालदेव के भारमली में रत होकर रानी उमा दे के साथ हुए विश्वासघात से रुष्ट उसके पीहर वालों ने अपनी राजकुमारी का वैवाहिक जीवन निर्द्वन्द्व बनाने हेतु अपने योद्वा ‘गनायत’ बाघजी को भारमली का अपहरण करने के लिए उकसाया। भारमली के अनुपम रुप-यौवन से मोहित हो बाघजी उसका अपहरण कर कोटड़ा ले आया एवं उसके प्रति स्वंय को हार बैठा। भारमली भी उसके बल पौरुष हार्द्विक अनुसार के प्रति समर्पित हो गई, जिससे दोनों की प्रणय-वल्लरी प्रीति-रस से नित्‍य प्रति सिंचित होकर प्रफुल्ल और कुसुमित-सुरभित होने लगी।

इस घटना से क्षुब्ध राव मालदेव द्वारा कविराज आसानन्द को बाघाजी को समझा-बुझा कर भारमली को लौटा लाने हेतु भेजा गया। आसानन्द के कोटड़ा पहुंचने पर बाघ जी तथा भारमली ने उनका इतना आदर-सत्कार किया कि वे अपने आगमन का उद्देश्य भूल वहीं रहने लगे। उसकी सेवा-सुश्रूषा एवं हार्दिक विनय-भाव से अभिभूत आसाजी का मन लौटने की बात सोचता ही नहीं था। उनके भाव विभोर चित्त से प्रेमी-युगल की हृदयकांक्षा कुछ इस प्रकार मुखरित हो उठी-

‘जहं तरवर मोरिया, जहं सरवर तहं हंस।
जहं बाघो तहं भारमली, जहं दारु तहं मंस।।’

उसके बाद आसानन्‍द, बाघजी के पास ही रहे। इस प्रकार बाघ-भारमली का प्रेम वृतान्त प्रणय प्रवाह से आप्‍लायित होता रहा। बाघजी के निधन पर कवि ने अपना प्रेम तथा शोक ऐसे अभिव्यक्त किया-

‘ठौड़ ठौड़ पग दौड़, करसां पेट ज कारणै।
रात-दिवस राठौड़, बिसरसी नही बाघनै।।’

जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब का प्रवेश द्वार


जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब का प्रवेश द्वार

जैसलमेर’देश के सबसे अंतिम छोर पर बसी ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी ‘जैसलमेर’ सारे विश्व में अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। रेत के समंदर में बसे जैसल में तब दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान तक न था। राजा और प्रजा बेसब्री से वर्षाकाल का इंतज़ार करते थे। वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिए वि. सं. 1391 में जैसलमेर के महारावल राजा जैसल ने किले के निर्माण के दौरान एक विशाल झील का निर्माण करवाया, जिसे बाद में महारावल गढ़सी ने अपने शासनकाल में पूरा करवाकर इसमें पानी की व्यवस्था की। जिस समय महारावल गढ़सी ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था उन्हीं दिनों एक दिन धोखे से कुछ राजपूतों ने ही उनकी हत्या झील के किनारे ही कर दी थी। तब तक यह विशाल तालाब ‘गढ़सीर’ के नाम से विख्यात था जो बाद में ‘गढ़ीसर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
जैसलमेर शहर के दक्षिण पूर्व में स्थित यह विशाल तालाब अत्यंत ही कलात्मक व पीले पत्थरों से निर्मित है। लबालब भरे तालाब के मध्य पीले पत्थरों से बनी राव जैसल की छतरी पानी में तैरती-सी प्रतीत होती है। गढ़ीसर तालाब 120 वर्ग मील क्षेत्रफल की परिधि में बना हुआ है जिसमें वर्षा के दिनों में चारों तरफ से पानी की आवक होती है। रजवाड़ों के शासनकाल में इसके मीठे पानी का उपयोग आम प्रजा व राजपरिवार किया करते थे। यहां के जल को स्त्रियां बड़े सवेरे सज-धज कर समूहों में लोकगीत गाती हुई अपने सिरों पर देगड़े व चरियां भर कर दुर्ग व तलहटी तक लाती थीं।
एक बार वर्षाकाल में मूसलाधार बारिश होने से गढ़सी तालाब लबालब भर गया और चारों तरफ रेगिस्तान में हरियाली छा गई। इससे राजा व प्रजा इतने रोमांचित हो उठे कि कई दिन तक जैसलमेर में उत्सव-सा माहौल रहा, लेकिन इसी बीच एक दु:खद घटना यह घटी कि अचानक तालाब के एक ओर की पाल ढह गई व पूरे शहर में पानी भर जाने के खतरे से राजा व प्रजा में भय व्याप्त हो गया। सारी उमंग खुशियां काफूर हो गयीं। उन दिनों जैसलमेर के शासक केसरी सिंह थे।
महारावल केसरी सिंह ने यह दु:खद घटना सुनते ही पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवाकर पूरी प्रजा को गढ़सी तालाब पर पहुंचने का हुक्म दिया व स्वयं भी हाथी पर सवार हो तालाब पर पहुंच गए। लेकिन इस बीच उन्होंने अपने नगर के समस्त व्यापारियों से अपने-अपने गोदामों से रूई के भरे बोरों को लेकर आने को कहा। रूई से भरी अनेक गाडिय़ां जब वहां पहुंचीं तो राव केसरी ने अपनी सूझ-बूझ से सबसे पहले बढ़ते पानी को रोकने के लिए हाथियों को कतारबद्ध खड़ा कर दिया और प्रजा से धड़ाधड़ रूई से भरी बोरियां डलवाकर उसके ऊपर रेत की तंगारियां डलवाते गए। देखते ही देखते कुछ ही घंटों में तालाब की पाल को फिर से बांध दिया गया तथा नगर को एक बड़े हादसे से बचा लिया गया।
ऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब को बड़े हादसे से भले ही बचा लिया गया लेकिन इसे एक बदनामी के सबब से कोई नहीं बचा सका, क्योंकि यह आज भी एक ‘बदनाम झील’ के नाम से जानी जाती है। गढ़ीसर तालाब दिखने में अत्यंत ही कलात्मक है क्योंकि इस तालाब पर स्थापत्य कला के दर्शन होते हैं। तालाब के पत्थरों पर की गई नक्काशी, बेल-बूटों के अलावा उन्नत कारीगरी, बारीक जालीदार झरोखे व तक्षण कला के नमूने हैं।
गढ़ीसर तालाब को और भी भव्यता प्रदान करने के लिए इसके ‘प्रवेश द्वार’ को यहीं की एक रूपगर्विता टीलों नामक वेश्या ने बनवाया था जिससे यह ‘वेश्या का द्वार’ के नाम से पुकारा जाता है। यह द्वार टीलों ने संवत 1909 में निर्मित करवाया था। लावण्य व सौंदर्य की मलिका टीलों वेश्या के पास बेशुमार दौलत थी जिसका उपयोग उसने अपने जीवनकाल में सामाजिक व धार्मिक कार्यों में किया। टीलों की सामाजिक व धार्मिक सहिष्णुता से बड़े-बड़े व्यापारी, सोनार व धनाढ्य वर्ग के लोग भी प्रभावित थे।
वेश्या टीलों द्वारा बनाये जा रहे द्वार को देखकर जब स्थानीय लोगों में यह कानाफूसी होने लगी कि महारावल के होते हुए भला एक वेश्या तालाब का मुख्य द्वार क्यों बनवाये। बड़ी संख्या में नगर के बाशिंदे अपनी फरियाद लेकर उस समय की सत्ता पर काबिज महारावल सैलन सिंह के पास गये। वहां पहुंच कर उन्होंने महारावल के समक्ष रोष प्रकट करते हुए कहा कि महारावल, टीलों गढ़ीसर तालाब का द्वार बनवा रही है और वह पेशे से वेश्या है। आम जनता को उस बदनाम औरत के बनवाये द्वार से गुजर कर ही पानी भरना पड़ेगा, इससे बढ़कर शर्म की बात और क्या होगी? कहा जाता है कि महारावल सैलन सिंह ने प्रजा की बात को गंभीरता से सुनने के बाद अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा कर तुरंत प्रभाव से ‘द्वार’ को गिराने के आदेश जारी कर दिये।
लेकिन उस समय तक ‘मुख्य द्वार’ का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था। जैसे ही टीलों को महारावल सैलन सिंह के आदेश की भनक लगी तो उसने भी अपनी सूझबूझ व बड़ी चालाकी से अपने समर्थकों की सहायता से ‘मुख्य द्वार’ के ऊपर भगवान विष्णु का मंदिर हाथों-हाथ बनवा दिया। मंदिर चूंकि हिन्दुओं की भावना व श्रद्धा का प्रतीक साबित हो गया, अत: किसी ने भी मुख्य द्वार को तोडऩे की हिम्मत न जुटायी। अंतत: वेश्या टीलों द्वारा बनाया गया भव्य कलात्मक द्वार बच गया, लेकिन हमेशा-हमेशा के लिए ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी जैसलमेर में गढ़ीसर तालाब के मुख्यद्वार के साथ वेश्या ‘टीलों ’ का नाम भी जुड़ गया।
गढ़ीसर तालाब का मुख्य द्वार गढ़ाईदार पीले पत्थरों से निर्मित है लेकिन इसके ऊपर की गई बारीक कारीगरी जहां कला का बेजोड़ नमूना है वहीं कलात्मक अलंकरण व पत्थरों पर की गई खुदाई विशेष रूप से चिताकर्षक है। जैसलमेर आने वाले हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी ऐतिहासिक नगरी व रेत के समंदर में पानी से भरी सागर सदृश्य झील को देखकर रोमांचित हो उठते हैं।

सिन्धु नदी तंत्र ... थार के प्यासे मरुस्थल तक हिमालय का पानी ले आये


सिन्धु नदी तंत्र और राजस्थान




जिस गति से देश में पानी का संकट गहराता जा रहा है, वह निश्चय ही राष्ट्रीय विकास नीति निर्धारकों के समक्ष एक अहम मुद्दा बनता जा रहा है और समय रहते हुए जल नियोजन के लिए सटीक प्रयास नहीं किए गये तो राष्ट्रीय विकास गति मन्थर पड़ जाएगी, यद्यपि यह निश्चित है कि बदली हुई पर्यावरणीय दशाओं के कारण समाप्त हुए भू-जल स्रोतों का पुनर्भरण तो नहीं हो सकता किन्तु जल की खपत को नियंत्रित कर उसके विकल्प तलाशे जा सकते हैं, जैसे कठोर जनसंख्या नियंत्रण, शुष्क-कृषि पद्धतियां एवम् जल उपयोग के लिए राष्ट्रीय राशनिंग नीति इत्यादि। साथ ही के. एल. राव (1957)द्वारा सुझाए गए नवीन नदी प्रवाह ग्रिड सिस्टम का अनुकरण एवम् अनुसंधान कर हिमालियन एवम् अन्य नदियों को मोड़ कर देश के आन्तरिक जल न्यून वाले सम्भागों की ओर उनके जल को ले जाया जा सकता है। सम्प्रति देश की समस्त नदियों के जल का 25 प्रतिशत भाग ही काम में आता है। शेष 75 प्रतिशत जल समुद्र में गिर कर सारा खारा हो जाता है।

नदियों के मार्ग बदलना आधुनिक तकनीकी कौशल में कोई असम्भव कार्य नहीं है। केवल उत्तम राष्ट्रीय चरित्र के साथ दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ ब्रह्मपुत्र नदी में ही इतना पानी व्यर्थ बहता है कि उसके 10 प्रतिशत पानी को भारत भूमि के मध्य से गुजरने के लिए बाध्य कर दिया जाए तो देश के समस्त जल संकट दूर हो जाएंगे।

भारतवर्ष जैसे देश में नदियों के भागों को मनोवांच्छित दिशा में प्रवाहित करवाने की परम्परा कोई नयी अवधारणा भी तो नहीं हैं। ऐतिहासिक सत्य के अनुसार महाराजा भागीरथ ने गंगा के मार्ग को स्वयं निर्धारित किया था तो 19वीं शदी के अन्तर्गत महाराजा भागीरथ ने गंगा के मार्ग को स्वयं निर्धारित किया था तो 19वीं शदी के अन्तर्गत महाराजा गंगासिंह जी का उदाहरण भी हमारे समक्ष है जिन्होंने सिन्धु नदी प्रवाह से एक नयी नदी (राजस्थान नहर) का निर्माण कर थार के प्यासे मरुस्थल तक हिमालय का पानी ले आये जो निश्चय ही अनुकरणीय है।

महाराजा गंगा सिंह के द्वारा थार मरुस्थल हेतु खोजे गये पानी (इन्दिरा गाँधी नहर) का इतिहास प्रस्तुत लेख में दिया गया है जो आधुनिक जल-चेताओं के लिए सुन्दर मार्गदर्शक के रूप में उत्साहप्रद है।

यद्यपि थार मरुस्थल में पानी लाने की खोज अर्थात प्यासे थार मरुस्थल में हिमालियन नदियों से नहर के द्वारा पानी लाने का सर्वप्रथम विचार बीकानेर के स्वर्गीय महाराजा डूंगरसिंह जी का था। (पानगड़िया 1985) उन्हें यह निश्चय था कि अगर सिन्धु नदी प्रवाह तन्त्र से पानी मिल जाए तो इस थार मरुस्थल की कायापलट होकर यह एक सरसब्ज प्रदेश में बदल जाये।

सन् 1884 में पड़ौसी रियासत पंजाब में अबोहर नहर का निर्माणकर बीकानेर रियासत के बहुत पास तक पानी पहुंचा दिया जिससे महाराजा का उत्साह और बढ़ गया तथा वे इस दिशा की ओर आगे बढ़ा दिया जाये तो निश्चित रूप से इस मरुस्थल को सहज ही पानी मिल जाये इस प्रस्ताव के लिए महाराज डूंगरसिंह जी ने पंजाब रियासत से अनुरोध किया किन्तु पंजाब रियासत ने उपर्युक्त प्रस्ताव को यह कह कर ठुकरा दिया कि पंजाब के “नदी प्रवाह” पर बीकानेर रियासत का कोई अधिकार नहीं है। किसी प्रकार के अंतिम निर्णय पर पहुँचने से पूर्व ही सन् 1887 में महाराज डूंगरसिंरह जी का देहान्त हो गया और तब सात वर्षीय उनके छोटे भाई गंगासिंह जी उत्तराधिकारी बने।

जैसे ही परिपक्व अवस्था में गंगासिंह जी ने प्रवेश किया और राज्य को संभाला तो उनका ध्यान इस प्यासे मरुस्थल में सिन्धु नदी तंत्र से पानी लाने पर निरन्तर बना रहा और 1899 में भीषण अकाल ने उन्हें बुरी तरह झकझोर डाला। उनकी रियासत का सम्पूर्ण जल जीवन या तो मृतप्राय हो गया या अस्त-व्यस्त हो गया। अकाल की इस भयंकर मार से क्रुद्ध होकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार को लिखा कि आपके राज्य से हमें क्या लाभ, जहां प्यास के कारण जनता मर जाये। इस “छप्पने अकाल” की विभीषिका ने अवश्य ही ब्रिटिश सरकार को चौंका कर इस क्षेत्र को सिन्धु नदी तंत्र से पानी प्रदान करवाने के लिए सोचने हेतु बाध्य कर दिया। पंजाब के समकालीन ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी सर डेनजिल इब्बरटशन (Ibertusun) ने पंजाब के इस मन्तव्य को कि, “बीकानेर रियासत का सिंध नदी प्रवाह तंत्र पर कोई अधिकार नहीं है।” गलत बताया और यह पेशकश की कि पंजाब रियासत अपने आप में सम्प्रभु नहीं है। इसलिए सिन्धु नदी प्रवाह के पानी का उपभोग करने का अंतिम अधिकार ब्रिटिश सरकार के पास है न कि पंजाब रियासत के पास। भारत सरकार (ब्रिटिश) इस प्रवाह तंत्र के पानी का सदुपयोग अपनी किसी भी रियासत में जन कल्याण हेतु कर सकती है। इस मन्तव्य का समर्थन पंजाब के वित्त-आयुक्त सर लिविस टूपर (Liwis Tuper) ने भी किया।

किन्तु थार में पानी लाने की समस्या का हल सहज में ही सम्भव नहीं था। जैसे ही भारत सरकार (ब्रिटिश) ने बीकानेर को सतलज नदी से पानी देने का प्रस्ताव मंजूर किया तो भावलपुर रियासत (वर्तमान में पाकिस्तान में है) ने रियासत पंजाब की भाँति ही विरोध किया कि बीकानेर रियासत का सिन्धु नदी प्रवाह पर कोई अधिकार नहीं है। और इस विरोध में पंजाब ने भी भावलपुर का समर्थन किया। पंजाब एवं भावलपुर के निरंतर विरोध के बाद भी बीकानेर रियासत को सफलता मिली और 1918 में सतलज नदी से पानी की स्वीकृति मिल गई।

भारत सरकार (ब्रिटिश) का आदेश था कि “जनहित में सिन्धु नदी प्रवाह के पानी को अन्य क्षेत्रों में प्रयुक्त किया जाये और केवल इस आधार पर इसे न रोका जाये कि बीकानेर रियासत का नदी प्रवाह पर अधिकार नहीं है इसलिए उसे पानी नहीं मिलना चाहिए। पानी के सदुपयोग में भारत सरकार एवं देशी रियासतों की सीमा बीच में नहीं आनी चहिए।“ इस आदेश ने सदियों से प्यासे थार मरूस्थल में पानी के आगमन हेतु रास्ता खोल दिया और 1927 में सतलज का पानी 130 किलोमीटर लम्बी गंगानहर द्वारा बीकानेर रियासत की 3.5 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई प्रदान करने हेतु लाया गया। किन्तु बीकानेर के महाराजा गंगासिंह जी उपर्युक्त पानी-प्राप्ति से ही संतुष्ट नहीं हुए। गंगा नहर के आगमन से उनका हौसला विशेष रूप से बढ़ गया और वे निरन्तर थार मरुस्थल में सिन्धु नदी जल प्रवाह से अधिक से अधिक पानी लाने के लिए प्रयत्नशील रहे।

1938 में प्रस्तावित भाखड़ा-नांगल-योजना के पानी में भी वे अपने राज्य का हिस्सा निर्धारण कराने में सफल हुए। उन्होंने पंजाब सरकार से लिखित में यह आश्वासन प्राप्त कर लिया था कि भाखड़ा-नांगल जल परियोजना में उनके राज्य का भी हिस्सा होगा। इस समझौते के माध्यम से बीकानेर रियासत ने “सिन्धु नदी जल-प्रवाह” पर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया जो भावी जल समझौतों का आधार बन गया।


सिन्धु नदी जल विवाद
सन् 1947 की स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत-पाक विभाजन हुआ जिसके कारण सिन्धु नदी जल प्रयोग में फिर से समस्या का उत्पन्न होना स्वाभाविक था। क्योंकि स्वतंत्रता से पूर्व तो इस नदी तंत्र के पानी पर पूर्ण अधिकार भारत सरकार (ब्रिटिश) का था, जिसने विभिन्न रियासतों में उत्पन्न होने वाले जल विवादों को अपने सर्वोच्च अधिकार के माध्यम से हल कर दिया था किन्तु अब भारत समान रूप से दो सम्प्रभु राज्यों में बंट गया था जिसकी मध्यस्थता करने वाला कोई उच्चाधिकारी नहीं रह गया था।

सिन्धु-नदी-तंत्र विश्व का सबसे बड़ा जल प्रवाह माना जाता है। जिसमें पांच नदियों झेलम, चिनाब, रावी, व्यास एव सतलज सम्मिलित हैं। इस नदी तंत्र का औसत वार्षिक-जल-प्रवाह 170 मिलियन एकड़ फीट है। विभाजन के समय इस सम्पूर्ण जल में से 83 मिलियन एकड़ फीट भारत की नहरों में तथा 64.4 मिलियन एकड़ फीट पाकिस्तान की नहरों में प्रयुक्त होता था, जिससे भारत में केवल 5 मिलियन एकड़ भूमि पर एवं पाकिस्तान में 21 मिलियन एकड़ भूमि पर सिंचाई की जाती थी। जबकि विरोधाभास यह था कि इन नदियों के सभी नियंत्रण हैडवर्क्स भारत में स्थित थे जिससे पाकिस्तान को हमेशा यह भय था कि भारत कभी भी सिन्धु-नदी-प्रवाह से पाकिस्तान को पानी देने से मना कर सकता है। इस संदर्भ में पश्चिमी पंजाब एवं पूर्वी पंजाब में कई बार समस्या आ चुकी थी। एक अप्रैल, 1948 को यह जल विवाद उस समय भयंकर रूप से उठ खड़ा हुआ जब पूर्वी पंजाब ने “बड़ी-अपर-नहर-प्रणाली” (Bold canal system) को पानी देने से मना कर दिया। इस विवाद को हल करने के लिए भारत-पाक के विभिन्न समझौते भी नाकामयाब रहे और पाकिस्तान ने भविष्य में भारत द्वारा पानी रोके जाने के भय से सशंकित होकर सतलज नदी के दाहिनी ओर नई नहर खोदनेका कार्य शुरू कर दिया जिससे कि भारत के फीरोजपुर हैडवर्क्स को नजर अन्दाज करके सतलज नदी से धौलपुर नहर के लिए सीधे ही पानी प्राप्त किया जा सके। किन्तु इन नहर का कार्य शुरू करते ही पूर्वी पंजाब द्वारा विरोध किया जाना स्वाभाविक था क्योंकि इस नहर से फिरोजपुर हैडवर्क्स की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया था। इसके विरोध में भारत ने सतलज नदी को उत्तर की ओर से ही प्रतिबंधित करने की योजना बनाई जिससे कि सतलज नदी का पाकिस्तान से प्रवेश समाप्त हो जाय। यह समस्या कश्मीर के मुद्दे के साथ भयंकर होती जा रही थी अतः युद्ध की संभावनाएं बनती रहीं।

- बुल्ले शाह....रांझा-रांझा' करदी हुण मैं आपे रांझा होई।



रांझा-रांझा' करदी हुण मैं आपे रांझा होई।
सद्दो मैनूं धीदो रांझा हीर न आखो कोई

रांझा मैं विच, मैं रांझे विच ग़ैर खि़लाल न कोई,
मैं नाहीं ओह आप है अपणी आप करें दिलजोई।

जो कुछ साडे अंदर वस्‍से ज़ात असाडी सोई,
जिस दे नाल मैं न्‍योंह लगाया ओही जैसी होई।

चि‍ट्टी चादर लाह सुट कुडि़ये, पहन फ़कीरां दी लोई,
चि‍ट्टी चादर दाग़ लगेसी, लोई दाग़ न कोई।

तख्‍़त हज़ारे लै चल बुल्ल्हिला, स्‍याली मिले न कोई,
रांझा रांझा करदी हुण मैं आपे रांझा होई।

- बुल्ले शाह

हावड़ा से आने वालों की जांच होगी




हावड़ा से आने वालों की जांच होगी

पुलिस अधीक्षक की प्रेस वार्ता

जैसलमेरहावड़ा एक्सप्रेस से आने वालों की जांच के लिए रेलवे स्टेशन पर अस्थाई जाब्ता तैनात किया जाएगा। हावड़ा एक्सप्रेस व अन्य लंबी दूरी की जांच के पीछे मंशा यही है कि आपराधिक तत्व जिले में नहीं आ सकें। पुलिस अधीक्षक ममता विश्नोई ने बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में यह बातें कहीं। उन्होंने कहा कि जैसलमेर जिला संवेदनशील है और यहां के कई इलाके प्रतिबंधित है, इसलिए विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। विश्नोई ने बताया कि सोलर ऊर्जा व पवन ऊर्जा कंपनियों के साइट पर हो रही चोरियों पर लगाम कसने के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन कंपनियां सहयोग नहीं कर रही हैं। उन्हें कहा गया है कि वे अपने कर्मचारियों का वेरीफिकेशन करवाएं और सुरक्षा गार्डों के रूप में पूर्व सैनिकों को तैनात करें। उनका सहयोग नहीं मिलने से प्रभावी रोक नहीं लग पा रही है। उन्होंने कहा कि नए थाने खुलने से काफी राहत मिलेगी। रामदेवरा में पूरे साल लोड रहता है जिससे वहां थाने की बेहद जरूरत थी, अब वहां आने वाले श्रद्धालुओं को पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था मिल सकेगी। इसके अलावा महिला थाना भी महिलाओं पर होने वाले अपराधों को सामने लाने के लिए काफी अहम साबित होगा। पुलिस अधीक्षक ने कहा कि जिले के पेशेवर नकबजन व अपराधियों को पासा व गुंडा एक्ट में शामिल करने के लिए रिकमेंड किया हुआ है। उन्होंने शहर में बढ़ रही मारपीट की घटनाएं और उनके बाद होने वाले प्रदर्शनों के संबंध में आमजन से अपील की कि वे व्यक्तिगत झगड़े को जातिगत रूप न दें।

देशी कट्टे से फायर कर युवती को किया घायल

देशी कट्टे से फायर कर युवती को किया घायल

पोकरण। फलसूण्ड थानाक्षेत्र के झाबरा गांव में एक युवक की ओर से देशी कट्टे से फायर कर एक युवती को जख्मी करने का मामला पुलिस में दर्ज किया है। पुलिस के अनुसार झाबरा निवासी ओमकंवर (18) पुत्री फरसूसिंह राजपुरोहित ने रिपोर्ट दी कि वह मंगलवार रात अपने घर पर सो रही थी। बुधवार सुबह करीब चार बजे झाबरा निवासी हरीश पुत्र सोहनसिंह व उसका एक अन्य साथी उसके घर आए तथा उसको उठाने का प्रयास किया।

जब वह उठी, तो हरीश ने उस पर एक देशी कट्टे से गोली चलाई, जो उसके दाहिने कंधे पर लगी तथा उसका कंधा बुरी तरह जख्मी हो गया। फायर करने के बाद हरीश व उसका साथी मौके से फरार हो गए। युवती को उपचार के लिए जोधपुर ले जाया गया। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की। पुलिस वृताधिकारी विपिनकुमार शर्मा ने बताया कि उन्होंने बुधवार को झाबरा पहुंचकर घटनास्थल का जायजा लिया तथा आरोपी के एक सहयोगी हरीश पुत्र पदमसिंह को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। पुलिस मुख्य आरोपी की सरगर्मी से तलाश कर रही है।

रक्षक है तनोट माता


रक्षक है तनोट माता

जैसलमेर। जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर भारत-पाक सीमा से सटे तनोट क्षेत्र में बने माता के मंदिर में 1965 व 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से गिराया गया एक भी बम यहां नहीं फूटा। यह माता का मंदिर सीसुब जवानो व अधिकारियो के साथ ही देश-प्रदेश के लोगों के लिए आस्था का केन्द्र बना है। इस युद्ध में पाक ने मंदिर के आस पास करीब तीन हजार बम बरसाए।

करीब साढे चार सौ गोले मंदिर परिसर में गिरे पर अधिकतर बम फटे ही नहीं। इनमें से कुछ मंदिर परिसर में आज भी मौजूद है। ये बम आज भी मंदिर की शोभा बढ़ा रहे हैं। तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने संवत् 787 को माघ पूर्णिमा को बसाया था और यहां पर ताना माता का मंदिर बनवाया था, जो वर्तमान में तनोटराय मातेश्वरी के नाम से जाना जाता है। वर्तमान मे मन्दिर की पूजा- अर्चना सीसुब के जवान ही करते हैं। तनोट क्षेत्र सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यहां से पाकिस्तान की सीमा बमुश्किल 15-20 किलोमीटर है। इसके निकट पाकिस्तान का रहिमयारखां जिला है।

इतिहास के जीवंत दस्तावेज
यहां तैनात बल व क्षेत्र के बुजुर्गो के बताए अनुसार मुगल बादशाह अकबर के हिन्दू देवताओं के चमत्कारों से प्रभावित होकर विभिन्न मंदिरों में दर्शन करने और छत्र वगैरह चढ़ाने के किस्से भले ही प्रमाणित न हों, लेकिन इस बात के तो आज भी कई चश्मदीद गवाह मौजूद हैं कि 1965 के युद्ध के दौरान एक प्राचीन सिद्ध मंदिर की अधिष्ठात्री देवी के चमत्कारों से अभिभूत पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भी उसके दर्शन के लिए लालायित हो उठे थे। चमत्कारिक माने जाने वाला यह मंदिर 1200 साल पुराना है। वर्ष 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों में भाग ले चुके भारतीय सैनिक बताते हैं कि मंदिर परिसर में गिरने वाले शत्रु के गोले फटते ही नहीं थे, जिससे मंदिर और उसके आस पास कोई नुकसान कभी नहीं हो पाया।

पाकिस्तानी ब्रिगेडियर हुआ नतमस्तक
वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से यहां दर्शन करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। करीब ढाई साल की जद्दोजहद के बाद भारत सरकार से अनुमति मिलने पर ब्रिगेडियर खान ने न केवल माता की प्रतिमा के दर्शन किए बल्कि मंदिर में चांदी का एक सुंदर छत्र चढ़ाया। ब्रिगेडियर खान का चढाया हुआ छत्र आज भी इस घटना का गवाह बना हुआ है।

"चमत्कारो" ने बढ़ाई आस्था
भारत-पाक सीमा पर स्थित मातेश्वरी तनोटराय मंदिर के 1965 और 1971 में युद्ध के दौरान हुए कई चमत्कारों से आज भी सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवान और अधिकारी अभिभूत हैं। यह मंदिर देश के कई श्रद्धालुओं की श्रद्धा का भी केन्द्र बना हुआ है। तनोट मातेश्वरी मंदिर में देशभर से सभी धर्मो के लोग श्रद्धा के साथ नतमस्तक होने पहुंचते है। सीमा पर स्थित इस मंदिर का महत्व 1965 के भारत-पाक युद्ध से और भी बढ़ गया।

बाड़मेर में कोयला घोटाला!

बाड़मेर में  कोयला घोटाला!

बाड़मेर पिछले कुछ सालों में बाड़मेर में विकास की रफ्तार तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन यहाँ पर विकास के साथ-साथ घोटालों का बड़ा काम हुआ हैं जिसके बारे में सरकार भी जानती हैं। ये अलग बात हैं कि कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ जबकि अगर कुछ कार्रवाई नहीं हुई तो यहाँ पर कोयला खनन घोटाला चालीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का आगामी तीस साल में हो सकता हैं। कोयला का अकूत भंडार मिलने के बाद बाड़मेर में खनन का ऐसा खेल हुआ हैं कि आने वाले तीस सालों में घोटाला काफी बढ़ सकता हैं। यह सनसनीखेज खुलासा राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के सामने दायर हुई एक याचिका के बाद हुई सुनवाई के बाद हुए निर्णय में सामने आई हैं।



राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के अध्यक्ष डीसी सामंत, सदस्य एस धवन, एसके मित्तल ने बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लि. की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए हैं। खासकर इसमें एक बड़ा खुलासा हुआ हैं कि जिंदल ग्रुप के राजवेस्ट पवार प्लांट लि. भादरेश बाड़मेर में लिग्नाईट की आपूर्ति के लिए बाड़मेर में माइनिंग का ठेका 812 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर से निविदा के जरिये प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से होना था, उसको बिना किसी प्रतिस्पर्धा के जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को 1230 रुपए प्रति मैट्रिक टन की दर से दे दिया गया। टैक्स जोड़ा जाए तो यह दर 1953 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर हो जाती हैं। मजे की बात यह कि जिंदल ग्रुप की एसोसिएट फर्म साउथ वेस्ट माइनिंग लि. यह ठेका लेने की पात्रता भी नहीं रखती। तीस वर्ष के लिए दिए गए इस ठेके से उक्त अवधि में टैक्स समेत करीब इकसठ हजार करोड़ का नुकसान हो सकता हैं।

समझें घाटे का ये गणित : बाड़मेर जिले में जिंदल ग्रुप की फर्म राजवेस्ट पावर प्रोजेक्ट लि. के नाम से भादरेश में 135 मेगावाट की दस इकाइयां बनाई जानी प्रस्तावित हैं, जिनमे से दो इकाइयां बन कर तैयार हैं और शेष निर्माणाधीन हैं। जब पूर्ण क्षमता के साथ सभी दस इकाइयां काम करेंगी तब प्रतिदिन पचास हजार टन कोयले की जरूरत पड़ेगी। राजवेस्ट की कंसोर्टियम फर्म साउथ माइनिंग लि. इसके लिए प्रतिदिन छह करोड़ पन्द्रह लाख टैक्स समेत नौ करोड़ छियतर लाख पचास हजार लेगी, जो राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के समक्ष तय हुई दरों (812 रुपए प्रति मीट्रिक टन) से टैक्स सहित 5.70 करोड़ रुपए अधिक हैं। इस तरह प्रतिदिन 2.90 करोड़ टैक्स रहित घाटा होगा। एक महीने में 87 करोड़, एक वर्ष में 1044 करोड़, और तीस वर्षों में 31,220 करोड़ का घाटा होगा और टैक्स समेत यह घाटा इकसठ हजार करोड़ रुपए को पार कर जाएगा।

इक्यावन फीसदी है सरकार की हिस्सेदारी : बाड़मेर के कपूरडी और जालिपा के किसानों की करीब पचास हजार बीघा जमीन अवाप्त हुई हैं, इसका मकसद यहाँ पर कोयला खनन कर कम्पनी को आपूर्ति करनी था। भूमि अवाप्ति के लिए बाड़मेर लिग्नाईट माइनिंग कम्पनी लिमिटेड का गठन किया गया, जिसमे 51 प्रतिशत हिस्सेदारी राज्य सरकार की है। शेष 49 फीसदी भागीदारी राजवेस्ट की है। यहाँ कहने का मतलब यह हैं कि ऊंची दरों पर राजवेस्ट की एसोसिएट फर्म को ठेका देने से होने वाले कुल घाटे में सरकार को इक्यावन फीसदी चूना लगेगा। वही राजवेस्ट को एसोसिएट फर्म से सीधा फायदा ही फायदा होगा।

ठेका निरस्त करने की सिफारिश हुई : राजस्थान इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमीशन ने याचिका पर सुनवाई के बाद पिछले वर्ष अगस्त माह में दिए गए निर्णय अनुसार साउथ वेस्ट माइनिंग लि. को दिए गए खनन ठेके को निरस्त करने और नए सिरे से निविदा आमंत्रित कर प्रतिस्पर्धी दरों के आधार पर ठेका देने के निर्देश दिए। हैरत की बात यह हैं कि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. कमीशन को न्यायिक क्षेत्र मानने से इनकार करते हुए अभी तक बिना रोक टोक खनन कर रहे हैं। वही सरकार भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं, जो काफी संशय पैदा कर रहा है।

कहीं कम कीमत पर कोयला उपलब्ध : राजस्थान सरकार के उपक्रम राजस्थान स्टेट माइंस मिनरल्स लि. द्वारा गिरल लिग्नाईट विद्युत तापीय संयत्र में 650 प्रति मीट्रिक टन की दर से कोयला उपलब्ध करवाया जा रहा हैं, जबकि साउथ वेस्ट माइनिंग लि. टैक्स समेत 1953 रुपए की दर से कोयला उपलब्ध करवा रहा है। इस मामले में जिला कलेक्टर डॉ. वीणा प्रधान कुछ भी बयान देने से इनकार कर रही हैं।

बुधवार, 28 मार्च 2012

हर धर्म कहता है, जीव हत्या अपराध फिर कन्या भू्रण हत्या क्यों जिला कलेक्टर


हर धर्म कहता है, जीव हत्या अपराध फिर कन्या भू्रण हत्या क्यों जिला कलेक्टर 


पीसीपीएनडीटी की जिलास्तरीय कार्यशाला का आयोजन, वक्ताओं ने रखे गंभीर विचार 

बाडमेर। सभी धर्मों में लिखा हुआ है कि जीव हत्या अपराध है और यह पाप नहीं करना चाहिए। फिर ऐसी क्या वजह है कि लोग बड़ी आसानी से कन्या भू्रण हत्या करते जा रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि इस घिनौने कृत्य को अंजाम देते हुए लोगों के हाथ नहीं कांपते। ये गंभीर और अनसुलझे सवाल जिला कलेक्टर डॉ. वीणा प्रधान ने बुधवार को समाज के समझ रखे, जिसे सुनकर हर कोई चिंतन करने पर मजबूर था। डॉ. प्रधान जिला स्वास्थ्य भवन में स्वास्थ्य विभाग की ओर से आयोजित पीसीपीएनडीटी कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त कर रही थी। कार्याला में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अजमल हुसैन, अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जितेंद्रसिंह सहित आयुश चिकित्सक, आशा सहयोगिनी, मीडिया कर्मी एवं अन्य विभागीय कर्मचारीअधिकारी मौजूद थे। 
इस अवसर पर जिला कलेक्टर डॉ. प्रधान ने कहा कि हमें इन कुरीतियों और कुकृत्यों से उपर उठना होगा, हमारे समाज को इन बुराइयों से दूर करना होगा अन्यथा खामियाजा हम सभी को सामूहिक रूप से भुगतना होगा। उन्होंने कहा कि लड़की हर परिवार की खुशहाली होती है, बेशक यदि उसे बेहतर मौका दिया जाए तो वह भी अपने परिवार का नाम रोशन कर सकती है। पीसीपीएनडीटी पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आमजन को उचित सुविधा उपलब्ध करवाने की दृश्टि से भाीघ्र ही फार्म एफ को हिंदी में तब्दील करवाया जाए। उन्होंने आमजन से भी अपील की कि कन्या भू्रण हत्या को केवल प्रशासन या कोई विभाग बंद नहीं करवा सकता, इसके लिए जरूरी है कि समाज का प्रत्येक वर्ग इसमें सहयोग करे। 
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अजमल हुसैन ने कहा कि यह बेहद संवेदनाील विशय है, जिस पर हमें बेहद सतर्कता से कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने नवरात्रों की बात करते हुए कहा कि आज हर घर में देवी की पूजाअर्चना की जा रही है लेकिन विड़बंना है कि आज हमारे समाज की देवी, घर की देवी दुःख व दिक्कत में है। उसे उस सभ्य समाज से अस्तित्व के लिए लडना पड रहा है जो उसे पूजता है। हमारा समाज अपनी जननी को ही जड़ों से उखाड़ फेंकने पर आमादा है। दुःखद पहलू यह है कि बेटी के शोषण की शुरुआत हमारे घरों से होती हुई समाज में फैल रही है। मानवता के दरिंदे लडकी के जन्म से पहले ही उसकी हत्या करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। बच्चियों के खानपान से लेकर शिक्षा व कार्य में उनसे भेदभाव होना हमारे समाज की परंपरा बन गई है। जनगणना 2011 के आंकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य में लिंगानुपात दर 926 रही, जो एक चिंता का विषय है। इससे भी गंभीर स्थिति 0 से छह वशर की आयु के लिंगानुपात दर में है। इस बार के आंकड़ों के अनुसार इस आयु वर्ग में यह दर 883 है, जिसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। इस अवसर पर एडिनल सीएमएचओ डॉ. जितेंद्रसिंह ने सभी स्वास्थ्य कर्मियों, आयुश चिकित्सकों एवं अन्य जनों से अपील करते हुए कहा कि वे इस संवेदनाील विशय को गंभीरता से लें और कन्या भू्रण हत्या रोकने में अपनी भागीदारी निभाएं। जिला पीसीपीएनडीटी समन्वयक विक्रमसिंह चम्पावत ने कार्यशाला के दौरान पीसीपीएनडीटी एक्ट एवं इसके तहत होने वाली समस्त गतिविधियों, कार्रवाई के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किस तरह आमजन इस कार्य में सहयोग दे सकते हैं और वे भी शिकायत कर सकते हैं। वक्ताओं में आयुश चिकित्सक डॉ. सुरेंद्रसिंह, डॉ. मदनसिंह, डॉ. नंदा ताई, सीसीडीयू के जिला समन्वयक अशोक राजपुरोहित सहित आशा सहयोगिनी अरूणा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 
सोनोग्राफी हजारों की जान बचाने के लिए न कि मारने के लिए 
सोनोग्राफी सेंटर संचालक डॉ. हरिश जांगिड़ ने कह कि सोनोग्राफी सेंटरों में लगी माीनों का उपयोग हजारों जिंदगियां बचाने के लिए किया जाना चाहिए, लेकिन इसे विड़बंना ही कहेंगे कि इसका दुरूपयोग किया जा रहा है। उन्होंने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि लोग आते हैं और उन्हें हर संभव प्रयास कर लिंग की जांच करवाने का दबाव बनाते हैं लेकिन उन्होंने भापथ ली कि है कि वे कभी ऐसा कुकृत्य नहीं करेंगे। महिला को विोश रूप से पे्ररित करते हुए उन्होंने कहा कि यदि महिला चाहे तो किसी भी हालत में कन्या भू्रण हत्या नहीं हो सकती। इसी तरह सेंटर संचालक डॉ. स्नेहल कटूड़िया ने कहा कि सप्ताह में दो या तीन लोग उनके पास लिंग परीक्षण करवाने आते हैं, लेकिन वे परीक्षण नहीं करते। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि ऐसे लोग अन्य राज्यों में जाकर लिंग परीक्षण करवा लेते हैं, जो एक विकट समस्या है। कार्यक्रम में जिला आयुश अधिकारी डॉ. अनिल झा, जिला आईईसी समन्वयक विनोद बिश्नोई, जिला आशा समन्वयक राकेश भाटी, डॉ. मुकेश गर्ग, डॉ. विशाल धिमान सहित अन्य अधिकारीगण मौजूद थे। 
आप बने सहभागी 
कन्या भू्रण हत्या बेहद चिंताजनक एवं गंभीर मामला है, जिसमें हर किसी की भागीदारी अहम हो सकती है। जिला आईईसी समन्वयक ने बताया कि जन भागीदारी के लिए ही हमारी बेटी डॉट कॉम वेबसाईट का संचालन सरकार द्वारा किया जा रहा है। इस वेबसाईट पर जाकर आप कभी भी किसी की भी सही शिकायत कर सकते हैं, ताकि कन्या भू्रण पर रोक लग सके। इसमें अपंजीकृत सोनोग्राफी सेंटरों एवं लिंग जांच करने वाले चिकित्सकों सहित इससे जुड़े अन्य विशयों पर शिकायत की जा सकती है। इसी तरह सरकार ने मुखबिर योजना भाुरू कर रखी है, जिसके तहत शिकायत करने वालों को 50 हजार रूपए तक का नगद पुरस्कार दिया जा रहा है। हालांकि हाल ही में घोशित बजट के तहत इसकी राशि एक लाख रूपए तक कर दी गई है। उक्त प्रकि्रयाओं में खास बात यह भी है कि शिकायत कर्ता की पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाती है। 

DRDO TO LAUNCH EXPLOSIVE DETECTION AND SWINE FLU DIAGNOSTIC KITS AT DEFEXPO


DRDO TO LAUNCH EXPLOSIVE DETECTION AND SWINE FLU DIAGNOSTIC KITS AT DEFEXPO
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March 28, 2012

The spirit of self-reliance and national pride will come alive in vibrant colours with the display of state-of-the-art military systems and technologies by DRDO during the DefExpo India 2012. Designed and developed by the Indian brains, produced by Indian hands, customized for India’s diverse and often extreme conditions, with Indian soldiers at focal point. These pride possessions of our Armed Forces symbolize India’s emergence as a technology leader and a strong and peaceful nation. The display during the four-day event, scheduled to be inaugurated by the Defence Minister Shri A K Antony here tomorrow, underscores  DRDO’s vision to make India prosperous by establishing world class science and technology base and provide our Defence Services decisive edge by equipping them with internationally competitive systems and solutions.

The star attractions will be a “Missile Interceptor Simulator” and a “3D Virtual Reality Theatre”. In this edition of DEFEXPO, DRDO has given special focus to Autonomous Vehicles. The outdoor exhibits include Muntra - Unmanned Tracked Ground Vehicle, Remotely Operated Vehicle Daksh, Unmanned Aerial Vehicles Nishant, Rustom and Netra, Light Weight Sensor Integrated Composite Bridge, the Long Range Solid State Electronically Scanned Active Phased Array Radar LSTAR, Disha EW system, Scorpio Jammer, Heavy Weight Torpedo Varunastra, Pinaka Multi Barrel Rocket System, Prahar Tactical range Ballistic Missile System and Arjun Main Battle Tank.

The indoor exhibits and models will cover nearly the entire gamut of R&D in DRDO. Prominent will be models of missiles Nag, Akash, Brahmos, Aerostat System, AEW&C System, BMP Survival Kit (BUSK), Sarvatra and other bridges. Different types of Parachutes, the family of Small Arms, Torpedoes and Decoys, Military Communication Equipment, Electronic Warfare systems, Night Vision Devices, Microwave Devices, NBC protective systems and Soldier Support systems will also be seen.

Product Launch:

The Explosive Detection Kit (EDK), and the Swine Flu diagnostic kit are among over 70 products and technologies developed for defence applications with potential civilian applications that have been identified for commercialization under the DRDO-FICCI ATAC (Accelerated Technology Assessment Commercialization) programme. These two products will be launched during a function at Hall No 7G, during 1100-1150 hrs on Saturday March 31, 2012.  The Explosive Detection Kit (EDK), developed by Pune based High Energy Materials Research Laboratory, can quickly detect and identify even traces of explosives. The handy kit is ideally suited to be carried and used everywhere. The Swine Flu diagnostic kit,  developed by Defence Research and Development Establishment, Gwalior, can detect H1N1 virus within an hour. The kit does not need sophisticated instruments and can even be used in villages where electricity is not available. 

DefExpo will also provide a platform for the Original Equipment Manufacturers (OEMs) to identify areas for collaboration and initiate dialogue with DRDO in areas of mutual interest for joint development as partners.

DRDO has amply demonstrated capability to design, develop and realize highly complex multidisciplinary weapon platforms for Army, Navy and Air force. These systems are among the most extensively evaluated systems in harsh environmental conditions, meeting stringent quality requirements of our services. The production value of products inducted / under induction is more than Rupees 1,40,000 crores, effectively translating to creation of about two million jobs in the country. The figures will see a sharp rise in near future once the systems in advanced stages of User acceptance are inducted.  Further, DRDO has enabled a number of Small and Medium industries from the private sector in the design, development, manufacture of Defence related products apart from DPSUs and Ordnance Factories. No doubt, the indigenous production of these systems at a fraction of cost of imported systems is significant contribution to Nation’s economy, besides ensuring freedom from possible blockades in the times of need.

SD GOSWAMI
DEFENCE SPOKESPERSON(MOD)

जैसलमेर पुलिस की बड़ी कामयाबी 24 घंटों में संगीन वारदातों का पर्दाफाश


जैसलमेर पुलिस की बड़ी कामयाबी 24 घंटों में संगीन वारदातों का पर्दाफाश 

1.दिनांक 12.03.12 को सरहद छोड़ में देवा गांव निवासी ट्रक चालक नरपतसिंह की हत्या कर एन.एच. 15 के पास झाड़ियों के पास मृतक का शव डाला हुआ, मिलने पर स्थानीय राजपूत समाज के लोगों द्वारा पुलिस थाना जैसलमेर के सामने मुल्जिमान का पता लगाकर गिरफ्तारी की मांग रखी गई जिस पर मन पुलिस अधीक्षक ममता विश्नोई आई.पी.एस. के निर्देशानुसार श्री गणपतलाल अति0 पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में श्री बंशीलाल स्वामी पुलिस उप अधीक्षक जैसलमेर, श्री ओमप्रकाश गौदारा निरीक्षक पुलिस थानाधिकारी पुलिस थाना सांगड़ मय थाना जाब्ता, प्रशिक्षु आर.पी.एस. श्री सुनील के. पंवार तथा पुलिस थाना कोतवाली जाब्ता द्वारा तत्परता बरतते हुए प्रकरण में 24 घंटों में मुल्जिमान को नामजद कर घटना में शरीक अभियुक्तगण महेन्द्र कुमार पुत्र राणाराम व स्वरूप राम पुत्र शंकरलाल जाति माली नि0 देवा को गिरफ्तार कर उनके कब्जा से मृतक का पर्स मय 16000/ नगदी, मोबाईल व हत्या करने में प्रयुक्त आलाऐ कत्ल लाठी बरामद कर मुल्जिमान को न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया। 
2.दिनांक 16.03.12 को प्रार्थी श्री जोगेन्द्रसिंह पुत्र श्री अर्जुनसिंह जाति बावरी नि0 अहमदपुरा जिला हनुमानग़ ने पुलिस थाना जैसलमेर में प्राथमिकी दर्ज करवाई कि दिनांक 14.03.12 की रात्रि में वह गफूर भटठा जैसलमेर में रिड़मलराम पुत्र जीवणाराम जाति मेघवाल नि0 चेलक हाल गफूर भटठा जैसलमेर की झौंपड़ी में वह व उसका पुत्र सौये हुए थे रात्रि में रिड़मलाराम व एक अन्य में मेरा एक बैग जिसमें 652000/ छः लाख बावन हजार रूपये नगदी व असल कागजात राशन कार्ड, मूल निवास प्रमाण पत्र इत्यादि थे जो चुरा लिये हैं। जिस पर प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए मन पुलिस अधीक्षक जिला जैसलमेर के निर्देशानुसार श्री सुनील के. पंवार प्रशिक्षु आर.पी.एस. मय श्री वीरेन्द्रसिंह नि.पु. थानाधिकारी व श्री चिमनाराम उ.नि. व पुलिस थाना जैसलमेर के द्वारा 24 घंटों में आरोपी रिड़मलराम पुत्र जीवणराम जाति मेघवाल नि0 चेलक हाल गफूर भटठा जैसलमेर व चम्पाराम पुत्र सालुराम उर्फ सिलुराम जाति मेघवाल नि0 कोहरा हाल पुलिस लाईन कच्ची बस्ती जैसलमेर को दस्तयाब कर उनके कब्जा से चोरी गई सम्पूर्ण चोरी की गई नगदी व असल कागजात बरामद कर पीड़ीत को राहत पहुंचाई। मुल्जिमान को न्यायालय में पेश किया जाकर चालान न्यायालय में पेश किया गया। 
3.दिनांक 26.03.12 को प्रार्थी श्री रावताराम पुत्र श्री मांणकुराम जाति मेघवाल नि0 अम्बेडकर कोलोनी जैसलमेर ने पुलिस थाना जैसलमेर में प्राथमिकी दर्ज करवाई कि दिनांक 2526.03.12 मध्य रात्रि में मेरे भाई प्रहलादराम के गफूर भटठा जैसलमेर में स्थित मकान में अज्ञात चोरों द्वारा सेंधमारी करके सोने चांदी के गहने, अन्य घरेलु किमती सामान व नगदी चुरा ले गये हैं। जिस पर मन पुलिस अधीक्षक जिला जैसलमेर के निर्देशानुसार श्री गणपतलाल आर.पी.एस. अति0 पुलिस अधीक्षक जैसलमेर के नेतृत्व में श्री बंशीलाल स्वामी पुलिस उप अधीक्षक जैसलमेर, श्री सुनील के. पंवार आर.पी.एस. प्रशिक्षु, श्री वीरेन्द्रसिंह नि.पु. थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर, श्री चिमनाराम उ.नि., श्री दुर्गाराम उ.नि., शोभसिंह सउनिए श्री रमेशकुमार मु.आ., श्री पे्रमशंकर मु.आ. 67, कानि. बालेन्द्रसिंह, गंगासिंह, माधोसिंह व अन्य जाब्ता की अलग अलग टीमें मामुर कर भरसक प्रयास कर घटना में शरीक अभियुक्तों 1. हरीश उर्फ गुटका पुत्र तेजाराम जाति प्रजापत उम्र 24 साल नि0 खींया पु.था. मोहनग़ हाल गफूर भटठा जैसलमेर 2. चुतराराम उर्फ ओमप्रकाश उर्फ ओमाराम पुत्र कुम्भाराम जाति भील उम्र 19 साल नि0 चक नं0 06 एन.डी. पु.था. अनूपग़ जिला गंगानगर हाल गफूर भटठा जैसलमेर,3. श्रीमति गंगा पत्नी मनफूलराम जाति सांसी उम्र 25 साल नि0 गफूर भटठा जैसलमेर।को जोधपुर में दस्तयाब किया गया हैं बाद अनुसंधान के गिरफ्तार किया गया। मुल्जिमान को श्रीमान सी.जे.एम. कोर्ट जैसलमेर में पेश किया गया जहां से 02 दिन का पी.सी. रिमाण्ड हांसिल किया गया हैं। जिनसे मुकदमा हाजा में माल मसरूका सोने, चांदी के गहने व अन्य सामग्री बरामदगी एवं अन्य चोरी नकबजनी के प्रकरणों में भी सफलता मिलने की उम्मीद हैं। 
4.दिनांक 17.03.12 को प्रार्थी श्री सीताराम पुत्र श्री झाबरमल जाति जाट नि0 ़ाणी गुमानसिंह जिला सीकर ने पुलिस थाना जैसलमेर ने प्राथमिकी दर्ज करवाई कि दिनांक 16.03.12 की रात्रि में उसकी टवेरा गाड़ी नं0 आर.जे. 14 टी.बी. 4166 होटल मून लाईट के सामने खड़ी थी जो रामधन चौधरी व अन्य चुराकर ले गये हैं जिस पर प्रकरण में चोरी गये वाहन की सुरागरसी हेतु मन पुलिस अधीक्षक जिला जैसलमेर के निर्देशानुसार श्री सुनील के. पंवार आर.पी.एस. प्रशिक्षु, श्री वीरेन्द्रसिंह नि.पु. थानाधिकारी थाना कोतवाली जैसलमेर, श्री प्रयाग भारती सउनि की टीम गठित कर मुल्जिम की मौजूदगी का पता लगाने हेतु उसके मोबाईल की कॉल डिटैल मंगवाई जाकर विश्लेषण किया जाकर श्री वीरेन्द्रसिंह नि.पु. थानाधिकारी कोतवाली जैसलमेर द्वारा जयपुर में मुल्जिम की मौजूदगी का पता लगाया जाकर श्री प्रयाग भारती स.उ.नि. मय कानि0 श्री भोलाराम, श्री जयराम को दस्तयाबी हेतु भेजा गया जिनके द्वारा प्रकरण में चोरी की टवेरा गाड़ी को मुल्जिम शंकर लाल पुत्र रघुनाथ चौधरी नि0 147 विकास नगर बी हीरापुरा जयपुर से बरामद किया गया हैं। 










स्थायी वारंटी को गिरफ्तार कर न्यायालय मे पेश किया 


श्रीमान मुख्य न्यायिक मजि0 न्यायालय जैसलमेर के प्रकरण स0 251/08 सरकार बनाम प्रताप सिंह मे 02 वर्ष से न्यायालय से जमानत के उपरांत फरार स्थायी वारंटी प्रताप सिंह पुत्र सोबरन सिंह जाति जाट नि0 नंगलाविधी (जागेटा) पुलिस थाना बलदेव जिला मथुरा उतर प्रदेश को श्री किशनाराम मु0आ0 89 द्वारा आज दिनांक 28.03.12 को गिरफ्तार कर न्यायालय मे पेश किया गया। जहां से न्यायिक अभिरक्षा मे भेजा गया है। 






पुलिस थाना रामग में अवैध हथकडी शराब बरामद, 01 गिरफतार 


पुलिस थाना रामग के हल्खा क्षैत्र में कल 27.03.2012 को सत्यदेव आडा निपु, 
थानाधिकारी पुलिस थाना रामग मय जाब्ता के दौराने गस्त जरिये मुखबिर सुचना मिलने पर अवैध रूप से हथकडी शराब अपने कब्जा में रखने पर सरहद नगो की ाणी से चिमनसिंह पुत्र चंदनसिंह नि0 चक 4 डीएमएस नगो की ाणी को गिरफतार किया गया।