गुरुवार, 18 नवंबर 2010
शनिवार, 13 नवंबर 2010
thar press club barmer
rajasthan chief minister ashok gehlot,ownered by chandan singh bhati ,co ordinetor thar press club barmer
बुधवार, 3 नवंबर 2010
शनिवार, 30 अक्तूबर 2010
गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010
बारमेर न्यूज़ ट्रैक,,,,,,माँ को मिला खोया सम्मान
एजीदेवी ने माना कलक्टर का एहसान
माँ को मिला खोया सम्मान
दस हजार रूपये भरण पोषण देने के निर्देश
बाडमेर, । अस्सी साल की श्रीमती एजीदेवी जिला कलेक्टर गौरव गोयल का एहसान मानती है जिसकी बदौलत उम्र के इस पडाव में महज दो रोटी के लिए मोहताज होने के बाद उसे सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिल गया। यह सब कुछ हुआ जिला कलेक्टर गोयल के निर्देशों पर मातापिता और वरिश्ठ नागरिकों का भरणपोशण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत की गई त्वरित कार्यवाही की बदौलत।
अधिनियम के तहत ससम्मान वृद्घा का भरण पोशण करने तथा दस हजार रूपये तक की राशि प्रतिमाह देने के निर्णय के बाद एजी देवी के पुत्र रतनलाल तथा पुत्र वधु सुमित्रा देवी गुरूवार को जिला कलेक्टर की मौजुदगी में अपनी गलती का एहसास करते हुए उससे माफी मांगते हुए अपने घर ले गए तथा भविश्य में उसे सम्मान के साथ रखने का वादा किया। प्रकरण के अनुसार प्रार्थीनी श्रीमती एजी देवी पत्नी रिखबदास जैन निवासी तेलियों का वास बाडमेर ने जिला कलेक्टर के समक्ष एक प्रार्थना पत्र पो कर निवेदन किया था कि उसकी उम्र 80 वशर की है तथा वह एक विधवा औरत है। उसके पुत्र व पुत्रवधु दोनों ही उसके साथ क्रुरतापूर्ण व्यवहार करने है तथा उसे भोजन नहीं देते है तथा वर्तमान में उसे घर से बिलकुल ही निकाल दिया है। प्रार्थना पत्र में उल्लेख किया गया है कि उसके नाम का एक पक्का मकान एवं एक प्लाट आया हुआ है, मकान का किराया भी उसका पुत्र लेता है, उसके पुत्र व उसकी पुत्रवधु उसे मर जाने के लिए विवश करते है। वर्तमान मे वह दर दर की ठोकरे खाकर मांगकर अपना भरणपोशण कर रही है। प्रार्थीनी ने अपना भरण पोशण करवाने एवं उसके पुत्र एवं पुत्रवधु के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का निवेदन किया है।
उक्त प्रार्थना पत्र पर जिला कलेक्टर गौरव गोयल ने त्वरित कार्यवाही करते हुए उसे उपखण्ड मजिस्ट्रेट बाडमेर मिठूसिंह को भिजवाया। उक्त प्रकरण में प्रार्थीनी एवं प्रार्थीनी के वारिसान पुत्र एवं पुत्रवधु को अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु जरिये नोटिस तलब किया गया। प्रार्थीनी के कथन के संबंध मे प्रत्यर्थी पक्ष रतनलाल न्यायालय मे उपस्थित हुआ, उसे अपनी माता का भरणपोशण करने एवं उसके साथ मातृत्वपूर्ण सदभावना पूर्वक व्यवहार करने हेतु समझाईा की गई ।
गोयल ने बताया कि प्रार्थीनी का प्रार्थना पत्र माता पिता और वरिश्ठ नागरिकों का भरणपोशण तथा कल्याण अधिनियम के अन्तर्गत दर्ज किया जाकर स्वीकार किया गया है तथा विरोधी पक्षकार रतनलाल को निर्दोित किया गया है कि वह अपनी माता के भरणपोशण हेतु अधिकतम रूपये दस हजार की राशि अपनी माता श्रीमती एजी देवी को प्रतिमाह संदाय करेगा। साथ ही रतनलाल व उसकी पत्नी श्रीमती सुमित्रादेवी को पाबन्द किया गया कि वे अपनी माता/सास के साथ सदभावनापूर्ण एवं मातृत्व का व्यवहार करेंगे। रतन लाल अपनी माता को उसके रहवासी मकान मे रहने के दौरान आनाकानी नहीं करेंगे एवं सम्मानपूर्ण स्थान भी देंगे, जिसके लिए रतनलाल एवं श्रीमति सुमित्रादेवी को भरणपोशण अधिनियम के अन्तर्गत निर्दोित किया गया है।
उन्होने बताया कि थानाधिकारी पुलिस थाना कोतवाली बाडमेर को आदेश दिया गया है कि वे श्रीमती एजी देवी को तेलियों का वास बाडमेर मे स्थित उसके रहवासी मकान में रहने हेतु व्यवस्थित करने की आवयक कार्यवाही कर पालना से न्यायालय को अवगत करावे तथा प्रार्थीनी के भरण पोशण के संबंध मे समयसमय पर आवश्यक निगरानी की भी व्यवस्था कराई जाए।
शनिवार, 23 अक्तूबर 2010
शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010
शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010
शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010
सोमवार, 4 अक्तूबर 2010
रविवार, 3 अक्तूबर 2010
शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010
बुधवार, 29 सितंबर 2010
सोमवार, 27 सितंबर 2010
रविवार, 26 सितंबर 2010
शनिवार, 25 सितंबर 2010
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
रविवार, 19 सितंबर 2010
शनिवार, 18 सितंबर 2010
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
बुधवार, 15 सितंबर 2010
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
रविवार, 5 सितंबर 2010
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
बुधवार, 1 सितंबर 2010
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
सोमवार, 30 अगस्त 2010
रविवार, 29 अगस्त 2010
शनिवार, 28 अगस्त 2010
शुक्रवार, 27 अगस्त 2010
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
बुधवार, 25 अगस्त 2010
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
सोमवार, 23 अगस्त 2010
रविवार, 22 अगस्त 2010
शनिवार, 21 अगस्त 2010
विश्व पर्यटन दिवस विशेष .स्वर्ण नगरी जैसलमेर 'रेगिस्तान का गुलाब' और 'राजस्थान का अंडमान'
स्वर्ण नगरी के नाम से मशहूर जैसलमेर की खूबसूरती देखते ही बनती है। ऎतिहासिक विरासत खुद में समेटे जैसलमेर की यदुवंशी भाटी राजपूत महारावल जैसल ने श्रावण शुक्ला 12, संवत् 1212 को एक त्रिकूट पहाडी पर नींव रखी थी। इसका प्राचीन नाम माडधरा व वल्ल मंडल भी था। यूं तो और भी कई शहरों में हवेलियां हैं लेकिन जैसलमेर की हवेलियों का कोई सानी नहीं है। इसलिए जैसलमेर को हवेलियों व झरोखों की नगरी भी कहा जाता है। यही नहीं इसे 'रेगिस्तान का गुलाब' और 'राजस्थान का अंडमान' भी कहा जाता है। भारत की सीमा पर थार मरूस्थल में बसा जैसलमेर जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में 'लेह' और 'कच्छ' के बाद तीसरा सबसे बडा जिला है। क्षेत्रफल के आधार पर राजस्थान का सबसे बडा जिला जैसलमेर (38,401 वर्ग किलोमीटर) है।
जैसलमेर के प्रमुख स्थान और कस्बे
रामदेवरा: जैसलमेर-बीकानेर मार्ग पर जैसलमेर से 125 किलोमीटर दूर स्थित रूणेचा गांव में लोक देवता बाबा रामदेव का मंदिर, रामदेव सरोवर, गुरूद्वारा, परचा बावडी आदि दर्शनीय स्थल हैं। रामदेवजी की शिष्या डालीबाई का समाघि स्थल भी स्थित है। रामदेव अन्न क्षेत्र समिति कोढियों व अपंगों की सेवा करती हंै।
तनोट : इसे पूर्व रियासत के शासकों की प्राचीनतम राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यहां तनोट देवी का मंदिर है, जो जैसलमेर के पूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती है। इस मंदिर में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं। तनोट से 9 किलोमीटर दूर घटियाली माता का मंदिर है। तनोट में देवी मंदिर के सामने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत का प्रतीक विजय स्तंभ भी स्थापित है। कटरा गांव- पश्चिमी छोर का अंतिम गांव, जो जैसलमेर जिले में स्थित है।
कुलधरा : यहां कैक्टस गार्डन का निर्माण किया जा रहा है। जैसलमेर के दीवान सालिमसिंह के कथित अत्याचारों से तंग आकर 84 गांवों में बसे पालीवाल ब्राह्मण जैसलमेर से पलायन कर गए थे। कुलधरा इन्हीं 84 गांवों में से सबसे महžवपूर्ण कस्बा था।
पर्यटन स्थल
पटवों की हवेली : यह पांच हवेलियों का समूह है, जिन्हें पांच भाइयों ने मिल कर बनाया था। इनका निर्माण सन् 1800 से 1860 के मध्य करवाया गया। सालिम सिंह की हवेली-जैसलमेर के प्रधानमंत्री सालिम सिंह ने सन् 1825 में इस हवेली का निर्माण करवाया। नीली गुंबददार छत और नक्काशी किए मोर की आकृति अत्यन्त आकर्षक है। नथमल की हवेली -इस हवेली के दाईं व बाईं ओर की गई नक्काशी देखने में एक-सी हैं, लेकिन ऎसा है नहीं।
सम के टीले: जैसलमेर के पश्चिम में 42 कि.मी. दूर थार मरूस्थल में विशाल रेतीले टीलों का क्षेत्र शुरू होता है। सम गांव में ऊंट सफारी तथा सूर्यास्त दर्शन पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। वनस्पति विहीन रेत के टीलो को सम के टीले भी कहा जाता है।
आकल वुड फॅासिल पार्क : भू-पर्यटन के लिहाज से यह क्षेत्र महžवपूर्ण है। जैसलमेर से बाडमेर की ओर जाने वाले मार्ग पर 17 किलोमीटर दूर आकल गांव में फॉसिल पार्क (जीवाश्म उद्यान) है। राष्ट्रीय मरू उद्यान-जैसलमेर व बाडमेर जिले के 3,162 किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राज्य का सबसे बडा अभयारण्य है। जैसलमेर में इसका करीब 1,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। 8 मई, 1981 को अघिसूचित इस अभयारण्य में दुर्लभ राज्य पक्षी गोडावण पाया जाता है।
बादल विलास व जवाहर विलास: जैसलमेर के महारावलों के निवास जवाहर तथा बादल विलास 19 वीं शताब्दी की अद्भुत कलाकृतियों में से एक हैं। इन्हें मुस्लिम सिलावटों ने तराशा था। बादल विलास में बना ताजिया टावर पांच मंजिला है और शिल्प कला का बेजोड नमूना है। जवाहर विलास में झरोखों व छतरियों के साथ ही दीवारों पर की गई खुदाई देखते ही बनती है। इसका निर्माण 20 वीं शताब्दी में महारावल जवाहर सिंह ने कराया था।
बडा बाग : जैसलमेर से सात किलोमीटर उत्तर में एक खूबसूरत बाग है, जिसके साथ ही एक विशाल बांध बना हुआ है। यहां राजघराने से संबंघित स्मारक और पुराने शासकों की मूर्तियां भी दर्शनीय हैं।
जैसलमेर दुर्ग : जैसलमेर के दुर्ग को रावल जैसल ने 1155 ई. में बनवाया था। पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण यह उषा व सांध्यकाल में स्वर्ण के समान चमकता है। इसीलिए जैसलमेर दुर्ग को सोनारगढ या सोनगढ भी कहा जाता है। राव जैसल के बाद के शासकों ने इसमें अन्य निर्माण करवाए। यह किला सात वर्षो में पूर्ण हुआ।
सातलमेर : इसे पोकरण की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। बाबा रामदेव ने इसी के पास एक गुफा में भैरव राक्षस का वध किया था।
लोद्रवा : जैसलमेर से 15 किमी. उत्तर पश्चिम में स्थित लोद्रवा किसी जमाने में जैसलमेर की राजधानी थी। खूबसूरत जैन मंदिर और कृत्रिम कल्पवृक्ष ( द डिवाइन ट्री) यहां के मुख्य आकर्षण हैं। लोद्रवा जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है।
गडसीसर सरोवर : जैसलमेर शहर के प्रवेश मार्ग पर स्थित पवित्र गडसीसर सरोवर का निर्माण रावल गडसीसिंह ने सन् 1340 में कराया था। यह सरोवर न केवल अपने कलात्मक प्रवेश द्वार, जलाशय के मध्य में स्थित सुन्दर छतरियाें व इसके किनारे बने बगीचों के कारण प्रसिद्ध है। 1965 से पहले तक यह जैसलमेर वासियों का प्रमुख पेयजल स्रोत भी था।
मेले व उत्सव
बाबा रामदेव का मेला
यह प्रसिद्ध लक्खी मेला माघ और भाद्रपद महीनों के शुक्ल पक्ष में दूज से एकादशी तक लगता है। घोटारू में गैस के भंडार-जैसलमेर जिले का घोटारू क्षेत्र तेल गैस के भंडारों के लिए चर्चित हैं। सबसे पहले गैस के भण्डार यहीं पर मिले थे। यहां 1500 से 2000 मीटर की गहराई पर गैस एवं तेल के भंडार उपलब्ध हैं।
शाहगढ बल्ज
इस क्षेत्र में 60 खरब क्यूबिक फीट उच्च गुणवत्ता की प्राकृतिक गैस मिलने का दावा फोकस एनर्जी ने किया है। 3,161 मीटर की गहराई पर मिली गैस में 91 फीसदी तक हाइड्रोकार्बन का आकलन किया गया है। तनोट-जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर स्थित तनोट में भी प्राकृतिक गैस के भंडार मिले हैं। सादेवाला- जैसलमेर से 145 किमी. दूर सादेवाला में सन् 1984 में तेल के विशाल भंडार मिले हैं, तेल और प्राकृतिक गैस आयोग की देखरेख में यहां खुदाई का काम चल रहा है।
डेजर्ट फेस्टिवल (मरू मेला)
माघ सुदी 13 से पूर्णिमा तक शीत ऋतु (जनवरी- फरवरी) में यहां लगने वाला डेजर्ट फेस्टिवल सैलानियों का प्रमुख आकर्षण है। यह मेला पर्यटन विभाग की ओर से सन् 1979 से निरंतर आयोजित किया जा रहा है। इस मेले के दौरान शोभा यात्रा निकाली जाती है जो गडसीसर तालाब से शहर में होते हुए पूनम स्टेडियम पर सम्पन्न होती है। ऊंट पोलो, ऊंट की सवारी, कठपुतली नृत्य, सपेराें का कला प्रदर्शन मुख्य आकर्षण रहते हैं। मिस्टर डेजर्ट प्रतियोगिता में विजेता चुनने का मुख्य आधार मूंछों की लंबाई होता है।
लेबल:photo
खूबसूरती,
जैसलमेर,
विशेष,
विश्व पर्यटन दिवस
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
बुधवार, 4 अगस्त 2010
मंगलवार, 3 अगस्त 2010
सोमवार, 2 अगस्त 2010
रविवार, 1 अगस्त 2010
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