पशुओं के साथ पानी पीते हैं गांव के लोग
जालोर। पशु और इंसानों में ज़मीन और आसमान का फर्क होता है, लेकिन जब दोनों का खाना पीना एक जैसा हो जाए तो उसे मजबूरी या बेवकूफी समझा जाए, आपको बता दें की जालोर जिले में एक ऐसा गांव है जहां पशुओं के साथ मनुष्य भी पानी पीते हैं, परन्तु इनकी बेवकूफी नहीं मजबूरी है। जो एक ही तालाब का पानी पीते हैं।
दरअसल जालोर के रायथल गांव मे इंसान व जानवर एक ही तालाब का पानी पीते हैं। यहां के हालात आदिकाल जैसे हैं। जिले के कई क्षेत्रों में लोगों को नर्मदा का शुद्ध व फ्लोराइड मुक्त पानी पीने को मिलता है। वहीं दूसरी ओर कई गांवों की स्थिति ऐसी है कि नर्मदा का पानी तो दूर की बात है, इनको सरकारी नल व टंकियां भी नसीब नहीं हैं। गांव के पास पानी का तालाब है। जिस पर ग्रामीण और पशु दोनों निर्भर हैं।
पशु मल-मूत्र इस तालाब के अन्दर व आस-पास करते हैं और गांववासी यहां से पीने के लिए पानी लेकर जाते हैं। कपड़े धोने एवं नहाने का कार्य करते हैं। पेयजल व्यवस्था के बारे में जलदाय विभाग के अधिकारियों को इस बारे में पता नहीं है।
जालोर। पशु और इंसानों में ज़मीन और आसमान का फर्क होता है, लेकिन जब दोनों का खाना पीना एक जैसा हो जाए तो उसे मजबूरी या बेवकूफी समझा जाए, आपको बता दें की जालोर जिले में एक ऐसा गांव है जहां पशुओं के साथ मनुष्य भी पानी पीते हैं, परन्तु इनकी बेवकूफी नहीं मजबूरी है। जो एक ही तालाब का पानी पीते हैं।
दरअसल जालोर के रायथल गांव मे इंसान व जानवर एक ही तालाब का पानी पीते हैं। यहां के हालात आदिकाल जैसे हैं। जिले के कई क्षेत्रों में लोगों को नर्मदा का शुद्ध व फ्लोराइड मुक्त पानी पीने को मिलता है। वहीं दूसरी ओर कई गांवों की स्थिति ऐसी है कि नर्मदा का पानी तो दूर की बात है, इनको सरकारी नल व टंकियां भी नसीब नहीं हैं। गांव के पास पानी का तालाब है। जिस पर ग्रामीण और पशु दोनों निर्भर हैं।
पशु मल-मूत्र इस तालाब के अन्दर व आस-पास करते हैं और गांववासी यहां से पीने के लिए पानी लेकर जाते हैं। कपड़े धोने एवं नहाने का कार्य करते हैं। पेयजल व्यवस्था के बारे में जलदाय विभाग के अधिकारियों को इस बारे में पता नहीं है।