शनिवार, 29 मई 2010

बारमेर न्यूज़ track


इस्लाम धर्म में फतवा
"-इस्लाम धर्म में फतवा उस सलाह अथवा दिशा निर्देश को कहा जाता है जोकि कथित रूप से इस्लामी शरिया तथा इस्लामी कायदे-कानून को मद्देनजर रखते हुए इस्लाम धर्म के किसी विद्वान द्वारा जारी किया जाता है। आमतौर पर फतवा जारी करने का अधिकार मुंफ्ती का पद रखने वाले मुस्लिम विद्वान को ही होता है। जबकि कई इस्लामिक संस्थाओं ने मुस्लिम विद्वानों की फतवा जारी करने वाली एक समिति भी गठित कर रखी है। फतवा के विषय में एक बात और स्पष्ट हो जानी चाहिए कि किसी मुफ्ती या विद्वान द्वारा जारी किया गया कोई भी फतवा मात्र दिशा निर्देश अथवा सलाह की हैसियत ही रखता है इस्लामी आदेश अथवा अध्यादेश की हरगिज नहीं। किसी फतवे की अनुपालना करना या न करना भी किसी संबंधित व्यक्ति अथवा आम मुसलमान की अपनी मर्जी तथा विवेक पर निर्भर करता है। फतवे का पालन करना बाध्यता हरगिज नहीं होती। इस्लामी धर्मगुरुओं द्वारा समय-समय पर विभिन्न सामाजिक सरोकारों से संबंधित फतवे जारी किए जाते रहे हैं। इनमें आर्थिक मामलों के संबंध में, शादी-ब्याह, महिलाओं संबंधी, नैतिकता से संबंधित तथा धार्मिक कार्यकलापों आदि से संबंधित फतवे शामिल हैं।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वप्रथम फतवा संबंधी विवाद उस समय चर्चा का विषय बना जबकि ईरान की धार्मिक क्रांति के नेता तथा शिया समुदाय के सर्वप्रमुख धार्मिक विद्वान आयतुल्ला रुहल्ला खुमैनी ने 1989 में लेखक सलमान रुश्दी के विरुद्ध मौत का फतवा जारी किया था। सलमान रश्दी पर आरोप था कि उन्होंने अपनी विवादित पुस्तक द सेटेनिक वर्सेस में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हारत मोहम्मद के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी की है। इस फतवे ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आम लोगों को फतवे के विषय में बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। अभी कुछ वर्ष पूर्व बंगलादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन के विरुद्ध भी इसी प्रकार का फतवा जारी किया जा चुका है। यहां यह बताता चलूं कि इस्लाम धर्म में धार्मिक मामलों को लेकर बहस तथा आलोचना की कोई गुंजाईश नहीं है। इस्लाम धर्म इस विषय पर सहिष्णुता का कोई प्रदर्शन नहीं करना चाहता। इसीलिए ईश निंदा अथवा पैगंबरों के विरुद्ध किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी करने वालों के विरुद्ध अक्सर ऐसे फतवे आते रहते हैं। अभी कुछ वर्ष पूर्व अफगानिस्तान में अब्दुल रहमान नामक एक मुस्लिम युवक द्वारा ईसाई धर्म स्वीकार कर लेने के चलते उसके विरुद्ध भी मौत का फरमान जारी कर दिया गया था। जिसे भारी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद बचाया जा सका। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि इस्लाम धर्म में इस प्रकार के मौत के फरमान जारी करने जैसे असहिष्णुतापूर्ण फतवे पूर्णतया मानव अधिकारों के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को प्राप्त होने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे प्रमुख अधिकारों के विरुद्ध हैं।इस्लामी फतवे प्राय: विवादों से घिरे रहते हैं। उदाहरणतया नवंबर 2008 में मलेशिया में एक फतवा जारी किया गया जिसमें स्वास्थ संबंध योग क्रिया को हराम तथा प्रतिबंधित क़रार दिया गया। भारत में विश्व के सबसे बड़े इस्लामी केंद्र समझे जाने वाले दारुल उलूम देवबंद ने पिछले दिनों कुछ ऐसे फतवे जारी कर दिए जो मानवाधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करते हैं। इनके फतवों के अंतर्गत मुस्लिम औरतों का सरकारी अथवा गैर सरकारी नौकरी पर जाना गैर इस्लामी बताया गया है। मुस्लिम औरतों को सलाह दी गई कि वे घर के अंदर ही रहें और यदि नौकरी अथवा किसी अन्य कार्य हेतु बाहर जाएं भी तो बुंर्का पहन कर ही जाएं। औरतों को गैर मर्दों के साथ बात करने के लिए भी मना किया गया है। ख़ुशबू, इत्र अथवा परफ्यूम महिलाओं को इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है। खनकती हुई चूड़ियां तथा पायल आदि पहनने को भी गैर इस्लामी बताया गया है। फतवे के अनुसार इन सब वस्तुओं के प्रयोग से मर्द औरतों की ओर आकर्षित होते हैं। मर्द व औरत की तुलना पैट्रोल तथा माचिस से की गई है जिनके एक होने पर सब कुछ भस्म हो जाने की संभावना तक व्यक्त की गई है। यहां तक कि औरत को बकरी की तरह रखे जाने की सलाह दी गई है। अर्थात् मर्द जहां जाए अपनी औरत को बकरी की तरह उसके गले में रस्सी डालकर ले जाए तथा यदि औरत को घर पर अकेला छोड़े भी तो उसे ताले में बंद कर जाए ताकि कोई ‘भेड़िया’ उस औरत तक न पहुंच पाए।भारत में प्रसिद्ध फिल्म स्टार सलमान ख़ान ने अपनी इच्छा तथा पारिवारिक रजामंदी के अनुसार हिंदु धर्म के देवता भगवान गणेश की पूजा अपने घर पर क्या आयोजित कर डाली कि तथाकथित मुस्लिम मुल्लाओं ने उनके विरुद्ध भी फतवा जारी कर दिया। एक और प्रमुख अभिनेता शाहरुख़ ख़ान के विरुद्ध भी इसी प्रकार का इस्लामी फतवा जारी हो चुका है। भारत में राष्ट्रभक्ति के गीत के रूप में गाए जाने वाले वंदेमात्रम के गाए जाने के विरुद्ध भी फतवा जारी किया जा चुका है। भारत के केरल राज्‍य में मुस्लिम मौलवियों द्वारा मुस्लिम महिलाओं को कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के साथ विवाह न करने का फतवा भी जारी किया जा चुका है। संगीत सुनने, टी वी देखने तथा नाच गाने आदि के विरुद्ध भी कई बार फतवे आ चुके हैं। यहां तक कि क्रेडिट कार्ड रखने, कैमरायुक्त मोबाईल फोन को इस्तेमाल करने के विरुद्ध भी फतवे जारी हो चुके हैं। इस्लामी विद्वान बैंक में काम करने को भी गैर इस्लामी मानते हैं। इनके फतवे के अनुसार बीमा करना या कराना अथवा इस विभाग में नौकरी करना भी गैर इस्लामी है। क्योंकि इनके अनुसार यह व्यवस्था पूर्णतया ब्याज तथा जुए पर आधारित है।उपरोक्त सभी फतवे इस्लामी नजरिए के लिहाज से भले ही अपनी कोई अहमियत क्यों न रखते हों परंतु आज के सामजिक परिवेश में तथा वास्तविक जीवन में उपरोक्त सभी फतवे न केवल बेमानी और निरर्थक प्रतीत होते हैं बल्कि उपरोक्त सभी फतवे मानवाधिकारों तथा मानवीय मूल्यों का सरासर उल्लंघन करते हुए भी दिखाई पड़ते हैं। हां यदि यही फतवे संसार की तथा समाज की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप हों तथा इनमें सामाजिक उत्थान निहित हो तो ऐसे फतवों का न केवल मुसलमानों द्वारा स्वागत किया जाता है बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायी भी ऐसे सकारात्मक फतवों से प्रभावित होते हैं। ऐसे सकारात्मक फतवे जहां इस्लाम धर्म की छवि को सांफ-सुथरा तथा उज्‍जवल बनाते हैं वहीं इनसे मानवाधिकारों की रक्षा होती भी दिखाई देती है।उदाहरण के तौर पर 9 अगस्त 2005 को ईरान के धार्मिक नेता आयतुल्ला अली खमीनी ने एक फतवा जारी किया था जिसके अंतर्गत परमाणु हथियारों के उत्पादन, इसके भंडारण तथा इसके प्रयोग को गैर इस्लामी करार दिया गया था। इसी प्रकार मार्च 2004 में स्पेन के मुस्लिम विद्वानों द्वारा अलकायदा प्रमुख आतंकवादी ओसामा बिन लादेन तथा उसकी हिंसक गतिविधियों के विरुद्ध फतवा जारी किया गया। इसी प्रकार विश्व प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान डाक्टर ताहिर-उल-कादिरी ने इसी वर्ष मार्च 2010 में 600 पृष्ठों पर आधारित एक विस्तृत फतवा अथवा धार्मिक दिशा निर्देश जारी किया है। जिसमें न केवल ओसामा बिन लाडेन, अलक़ायदा तथा इनके द्वारा चलाई जा रही हिंसक गतिविधियों को गैर इस्लामी बताया गया है बल्कि इसी फतवे ने आत्मघाती बमों के रूप में प्रयोग में आने वाले मुस्लिम युवकों की इन अमानवीय हरकतों को भी पूरी तरह गैर इस्लामी व गैर इंसानी बताते हुए ख़ारिज किया गया है। डा. कादरी ने अपने इस विस्तृत फतवे में आतंकवादी ओसामा बिन लाडेन के उन एक-एक बिंदु का इस्लामी शरिया की रोशनी में अक्षरश: जवाब देकर यह प्रमाणित किया है कि लाडेन तथा उसकी प्रत्येक बात तथा जेहाद के नाम पर रचा जाने वाला उसका ढोंग सब कुछ किस तरह गैर इस्लामी व गैर इंसानी है। डा. कादरी ने अपने इस फतवे में आत्मघाती बने बैठे युवकों की उस सोच को भी ख़ारिज किया है जिसके अंतर्गत वे शहीद होने अथवा जन्नत में जाने की आस लगाए बैठे रहते हैं। इसी प्रकार पाकिस्तान में पिछले दिनों बिजली चोरी रोके जाने के संबंध में भी फतवा जारी किया गया है।इस्लामी फतवे के संबंध में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि चूंकि इस्लाम धर्म में 73 अलग-अलग फिरके(वर्ग)हैं तथा प्रत्येक फिरके के लगभग तमाम अलग-अलगा दिशा निर्देश हैं। प्रत्येक वर्ग के अपने अलग-अलग मौलवी, मौलाना तथा मुंफ्ती जैसे अधिकारी भी होते हैं। अत: यह बात भी कोई जरूरी नहीं कि किसी एक मुस्लिम वर्ग के विद्वान द्वारा जारी किए गए किसी फतवे का पालन किसी दूसरे वर्ग का मुसलमान भी करे। अर्थात् प्रत्येक वर्ग का मौलवी केवल अपने ही वर्ग से संबंधित मुसलमानों को ही कोई दिशा निर्देश जारी करने का अधिकार रखता है। बहरहाल, फतवों के विषय में आम लोगों की नकारात्मक धारणा अथवा नकारात्मक छवि बदलने का जिम्मा उन कठमुल्लाओं पर जाता है जो आज के सामाजिक परिवेश के प्रति अपनी आंखें मूंद कर तथा कुंए के मेंढक बनकर बेतुके तथा मानवाधिकारों का हनन करने वाले फतवे जारी करते रहते हैं। आज के प्रगतिशील युग में न केवल इस्लाम बल्कि सभी धर्मों के धर्मगुरुओं की सोच वर्तमान सामाजिक परिवेश तथा वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। ऐसे सकारात्मक फतवे निश्चित रूप से इस्लाम धर्म की छवि को बेहतर बनाने में कारगर सिद्ध होंगे

गुरुवार, 27 मई 2010

लाजवाब हैं बाड़मेर की मृण्कलाएं


लाजवाब हैं बाड़मेर की मृण्कलाएं

बाडमेर: सिंधु नदी और लूणी नदी के मध्य स्थित बाड़मेर का थार क्षेत्र मृण्कलाओं के वैविध्य का प्रमुख केन्द्र रहा है। नदी के पेटे मगरे की जमीन पर तैयार खेत, तालाबों और थार की धरा के बीच के तालरों की मिट्टी मृण्कलाओं का प्राण रही है। मिट्टी को प्राणवान बनाने वाली जातियां- हिन्दू कुम्हार और मोयले कुम्हार ने क्षेत्र की मृण्कलाओं को एक खूबसूरत आयाम दिया है।मिट्टी-पानी से एक मेल होकर लोक रसकता की सृष्टि के सृजक इन कुम्हार शिल्पकारों ने मृण (मिट्टी) कला के कद्रदानों की कला पिपासा को शांत किया। गांव के गरीब से लेकर उच्च वर्ग के लोगों के लिए मृण यानि मिट्टी के बर्तनों की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए इस क्षेत्र के मृण्‍कला सृजक अपनी श्रेष्ठता को कायम रखे हुए हैं। बाड़मेर जिले की मृण्कला में दैनिक आवश्यकताओं के कलात्मक बर्तन, मामाजी की मूर्तियां, पचपदरा तथा मोकलसर की मटकियां और परम्परागत शैली की पवाड की नलियां प्रमुख हैं।मुसलमानों में मोयला शैली में महज सोलह बर्तन ही बनाये जाते हैं। इन कलात्मक बर्तनों में प्रमुख रूप से मटकी, तबाक (परात), कड़ली (आटा रखने हेतु), करी (सुराई), दोझाणी (दूध दुहने के लिए), धांगी (रोटी पकाने के लिए), परोटी (दूध जमाने के लिए), कूपा, ओलचवी मटूरा, कुण्डजा कुलड़ी, ताणी, फलमा, गगरी, तसियां हैं। मोयला शैली में कलात्मक बर्तनों में मिट्टी की खुदाई कर कूट-कूट कर भिगो दिया जाता हैं। उसमें बाद में मिट्टी की गढ़े हुए मूरर बर्तनों को पकाने के लिए न्याव के कचरे के ऊपर बर्तनों को ठिकरियों से ढक कर रख दिया जाता है।

बुधवार, 26 मई 2010

बारमेर न्यूज़ track

Police busts 'eunuch wedding' in Peshawar
PESHAWAR: A Pakistani court on Tuesday remanded in custody a portly fertiliser dealer and teenage eunuch for allegedly trying to marry in the city of Peshawar, police said.
The alleged couple and dozens of guests were arrested when police raided a late-night party after a tip off that 42-year-old Malik Mohammad Iqbal Khan was trying to marry a 19-year-old eunuch, police said.
“We arrested the bridegroom, the would-be bride and 41 others at the wedding party,” local police station chief Shahid Khan told AFP in the working class neighbourhood of Faqir Abad in the northwestern city.
All of them were remanded in custody for one day on charges of attending an event that is “against Sharia law” and “illegal”, police said.
The fertiliser dealer, who already has two wives, denied he was marrying the eunuch, it had only been a birthday party for Rani.
“We were having a birthday party, but police arrested us. We had no intention of getting married,” he told AFP at the police station.
The furious 'bride' also insisted it had only been a birthday bash.
“I pray there should be more suicide attacks on police because they put people in trouble unnecessarily,” said Rani, who gave only one name.
Shah Faisal, a senior lawyer in Peshawar, said that police brought up the charge of “unnatural sexual offence” against the accused for which the maximum punishment was life imprisonment.
Police showed an AFP reporter a room in the neighbourhood that had been strung with lights and decked out in a style befitting newly wed couples in northwest Pakistan.
Police pointed to Rani's palms, which were covered in henna, a traditional rite of passage for brides but also performed for other special occasions.
Rani's family was paid 300,000 rupees (3,550 dollars) by Khan and another 80,000 rupees (946 dollars) to pay off a debt owed by Rani, Shahid Khan said.
Pakistan is a deeply conservative Muslim country where sex outside marriage is taboo and homosexuality illegal.
The eunuch community, which includes hermaphrodites, transsexuals, transvestites and homosexuals, is mocked, pitied and shunned by society. They frequently beg on the streets and many end up as prostitutes.
In a move toward granting the country's estimated 500,000 eunuchs rights, Pakistan's top judge has ordered the government to recognise them as a distinct gender, although how it will be implemented remains to be seen.

Hamir Singh crowned 26th Rana
barmer Rana Hamir Singh, the son of Rana Chander Singh, was crowned the 26th Rana of Rajputs/ Thakurs of Tharparkar on Sunday. Hamir Singh has worked as the deputy Nazim of Umerkot. The coronation, held at the playground of Govt Boys High School, drew a large number of elders of the community and the local elite. People belonging to different faiths turned up to watch the event. The ceremony began with the entry into Mithi of a convoy of hundreds of vehicles from Rana Jagir (Rana’s native village near Umerkot). When the caravan stopped at the old Naka (checkpoint), two girls sang “arti” in praise of a deity during which worshippers hold a platter containing incense. Rana Hamir Singh sat on a resplendent chariot, which was followed by scores of other vehicles. A large number of Thakurs attired in traditional Rajputi dress of “pheenta” (a multi-coloured turban) and “traita” (a white sheet), stood on both sides of the road to herald the arrival of the new Rana. Pir Ladhusingh, the guardian of the Pir Pithoro shrine, put a golden crown on Rana Hamir Singh’s head on behalf of the Rajput community. Addressing the ceremony, Rana Hamir said he would follow in the footsteps of his late father and do his best to improve the lot of the people of Tharparkar

Hamir Singh crowned 26th Rana




Police busts 'eunuch wedding' in Peshawar

A Pakistani court on Tuesday remanded in custody a portly fertiliser dealer and teenage eunuch for allegedly trying to marry in the city of Peshawar, police said.

The alleged couple and dozens of guests were arrested when police raided a late-night party after a tip off that 42-year-old Malik Mohammad Iqbal Khan was trying to marry a 19-year-old eunuch, police said.

“We arrested the bridegroom, the would-be bride and 41 others at the wedding party,” local police station chief Shahid Khan told AFP in the working class neighbourhood of Faqir Abad in the northwestern city.

All of them were remanded in custody for one day on charges of attending an event that is “against Sharia law” and “illegal”, police said.

The fertiliser dealer, who already has two wives, denied he was marrying the eunuch, it had only been a birthday party for Rani.

“We were having a birthday party, but police arrested us. We had no intention of getting married,” he told AFP at the police station.

The furious 'bride' also insisted it had only been a birthday bash.

“I pray there should be more suicide attacks on police because they put people in trouble unnecessarily,” said Rani, who gave only one name.

Shah Faisal, a senior lawyer in Peshawar, said that police brought up the charge of “unnatural sexual offence” against the accused for which the maximum punishment was life imprisonment.

Police showed an AFP reporter a room in the neighbourhood that had been strung with lights and decked out in a style befitting newly wed couples in northwest Pakistan.

Police pointed to Rani's palms, which were covered in henna, a traditional rite of passage for brides but also performed for other special occasions.

Rani's family was paid 300,000 rupees (3,550 dollars) by Khan and another 80,000 rupees (946 dollars) to pay off a debt owed by Rani, Shahid Khan said.

Pakistan is a deeply conservative Muslim country where sex outside marriage is taboo and homosexuality illegal.

The eunuch community, which includes hermaphrodites, transsexuals, transvestites and homosexuals, is mocked, pitied and shunned by society. They frequently beg on the streets and many end up as prostitutes.

In a move toward granting the country's estimated 500,000 eunuchs rights, Pakistan's top judge has ordered the government to recognise them as a distinct gender, although how it will be implemented remains to be seen.




Hamir Singh crowned 26th Rana

barmer Rana Hamir Singh, the son of Rana Chander Singh, was crowned the 26th Rana of Rajputs/ Thakurs of Tharparkar on Sunday. Hamir Singh has worked as the deputy Nazim of Umerkot. The coronation, held at the playground of Govt Boys High School, drew a large number of elders of the community and the local elite. People belonging to different faiths turned up to watch the event. The ceremony began with the entry into Mithi of a convoy of hundreds of vehicles from Rana Jagir (Rana’s native village near Umerkot). When the caravan stopped at the old Naka (checkpoint), two girls sang “arti” in praise of a deity during which worshippers hold a platter containing incense. Rana Hamir Singh sat on a resplendent chariot, which was followed by scores of other vehicles. A large number of Thakurs attired in traditional Rajputi dress of “pheenta” (a multi-coloured turban) and “traita” (a white sheet), stood on both sides of the road to herald the arrival of the new Rana. Pir Ladhusingh, the guardian of the Pir Pithoro shrine, put a golden crown on Rana Hamir Singh’s head on behalf of the Rajput community. Addressing the ceremony, Rana Hamir said he would follow in the footsteps of his late father and do his best to improve the lot of the people of Tharparkar

मंगलवार, 25 मई 2010

BARMER NEWS TRACK

Googleअनूठी है कौड़ी कला की हस्तशिल्प विरासत
: चंदन भाटी
बाड़मेर: एक जमाने में मुद्रा के रूप में उपयोग की जाने वाली कौड़ियों को वर्तमान में बहुत उपयोगी नहीं माना जाता। आज ‘कौड़ियों के भाव’ मुहावरे का अर्थ किसी चीज को बहुत सस्ते में खरीदना या बेचना माना जाता हैं। कभी मूल्यवान रहीं ये कौड़ियां धीरे-धीरे घर-परिवारों से लुप्त होती जा रही हैं, लेकिन राजस्‍थान के बाड़मेर जिले के हस्तशिल्पियों ने अपनी सृजनात्मक ऊर्जा के बल पर कौड़ियों को साज-सज्जा के एक अद्भुत साधन का रूप प्रदान करने का सफल प्रयास किया है।बाड़मेर जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर स्थित देरासर गांव की रामदियों की बस्ती की हस्तशिल्पी श्रीमती भाणी, मिश्री खां व उनके साथियों ने कौड़ियों का नया संसार रच डाला है। कौड़ियों को रंग-बिरंगे धागों, झालरों को बारीक कसीदे और गोटों से खूबसूरती से गूंथकर पशुओं के श्रृंगार तथा घरेलू सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए इस्‍तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन, आधुनिक जरूरतों को देखते हुए हस्तशिल्प को विस्‍तार देने और उसके लिए बाजार बनाने का प्रयास हो रहा है।इस गांव के ज्यादातर हस्तशिल्पी मुसलमान (रामदिया) हैं तथा पशुपालन व विक्रय धंधा करते हैं। 95 घरों वाले इस गांव में पच्चीस घर रामदिया मुसलमानों के हैं, जो गुजरात और महाराष्ट्र के विभिन्न पशु मेलों में शरीक होकर पशु क्रय-विक्रय का धंधा करते हैं। ऐसे ही एक मेले में मिश्री खां अपनी पत्नी भाणी के साथ गुजरात गए, जहां ऊंट और घोड़ों के श्रृंगार को देखकर बेहद प्रभावित हुए। बैलों के श्रृंगार के लिए कौड़ियों की बनी मोर कलिया, गेठिये, घोडी के श्रृंगार के लिए मृणी लगाम, गोडिए, त्रिशाला और ऊंटो के लिए बने पऊछी गोरबन्ध मुहार, मोर आदि कौड़ी कला को देखकर आधुनिक नमूने तैयार करने के विषय में पूछताछ कर यहीं से इस दम्पति ने नई जिन्दगी की शुरूआत की। भाणी का पुश्तैनी कार्य कांच-कसीदाकारी का तो था ही, साथ ही भाणी ने इसी दौरान कौड़ी काम भी सीख लिया। पशु श्रृंगार की सामग्री के साथ-साथ भाणी ने गुडाल तथा अन्य झोपडों के लिए तोरण-तोरणिएं तथा अपाण के पलों पर कडों कौड़ी, खीलण कांच और भरत का कार्य करने में भी महारत हासिल कर ली। मुसलमान, मेघवाल आदि जातियों की शादियों पर कौड़ियों वाले मोर पर तो आज भी गांव वाले मोहित हैं। भाणी ने परम्परागत कौड़ी कला कार्य इण्डाणी गोरबन्ध के साथ-साथ इसी कला के थैले, पर्स बनाने आरम्भ कर दिए। हस्तशिल्पी बताते हैं कि कौड़ी कला युक्त इण्डाणियों की मांग शहर में बहुत हैं। शहर वाले परम्परागत इण्डानियों को देखकर मोहित हो जाते हैं। भाणी झालर वाली, बिना झालर वाली और बिना फुन्दी वाली इण्डाणी बनाती हैं। झालर वाली इण्डाणी बीस इंच लम्बी होती हैं, जिसके कारण शिल्पकार को इसे तैयार करने में तीन दिन लग जाते हैं। इस इण्डाणी में आधा किलो कौड़ी और लगभग डेढ़ सौ ग्राम ऊन लग जाता है। बिना झालर व फुन्दे वाली इण्डाणी एक ही दिन में तैयार हो जाती हैं। इसमें 100-125 ग्राम कौड़ी का उपयोग होता हैं। बिना झालर व फुन्दी वाली इण्डानी बनाने में एक दिन का समय लगता हैं।झालर वाली इण्डाणी में मूंजवाली रस्सी को गोलकर कपड़े से सिलाई कर दी जाती है और कौड़ी में बंद करके उसे कपड़े पर सील दिया जाता है। कौड़ी कला के कद्रदान आज कम बचे हैं। सरकारी स्तर पर इन हस्तशिल्पियों को सरंक्षण नहीं मिलने के कारण ये फाकाकशी में दिन गुजार रहे हैं। कौड़ी कला के हस्तशिल्पी देश भर में कम ही बचे हैं। मिश्री खान को दाद तो खूब मिलती है, मगर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में कोई मदद नहीं करता।

सोमवार, 24 मई 2010

BARMER NEWS TRACK

Googleराजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित
बाडमेर: भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे परंपरागत रूप से अभावग्रस्त राजस्‍थान के बाड़मेर जिले में भीषण गर्मी के साथ-साथ पेयजल संकट से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। अभावों के आदी होने के बावजूद थारवासी इस बार के पेयजल संकट और भीषण गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे हैं। सरहदी क्षेत्रों में पेयजल संकट किसी सजा से कम नहीं है। विशेषकर, दलित वर्ग के लोगों के लिए।बाड़मेर जिले के समस्त 2285 गांव अभावग्रस्त घोषित हैं, मगर राज्य सरकार ने अभावग्रस्त जनता को राहत देने के लिए किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए हैं, जिसके चलते दलित परिवारों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया है। दलितों की जिंदगी दो बूंद पानी की तलाश तक सिमट कर रह गई है। पूरा दिन एक घड़ा पानी की तलाश में निकल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दलित परिवारों के लिए पेयजल की अलग से व्यवस्था परंपरागत रूप से है। आज भी सवर्ण जातियां दलित वर्ग के लोगों को अपने साव, तालाबों और टांकों से पानी भरने नहीं देती। अभिशप्त दलित वर्ग दो बूंद पानी के लिये संर्घष कर रहा है। जाति के आधार पर बंटे इन पेयजल स्रोतों का निर्माण सरकार ने भले ही सार्वजनिक तौर पर कराया हो, मगर जमीनी हकीकत यही है कि दलित को सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की इजाजत तथाकथित सभ्य समाज नहीं देता। कहने को जिला प्रशासन द्वारा सभी आठों तहसीलों में पानी के टैंकरों की व्यवस्था कर रखी है, मगर ये पानी के टैंकर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने से पहले गांवों के प्रभावशाली लोगों के हत्थे चढ जाते हैं। सार्वजनिक टांकों में पानी भरे जाने के बजाय प्रभावशाली सवर्ण जाति के निजी टांकों में भरे जाने के कारण दलितों के पेयजल स्रोत खाली ही रहते हैं। ऐसे में दलित परिवार की महिलाओं को आसपास के गांवों में पानी की तलाश में निकलना पडता है। गांव के सार्वजनिक टांकों पर दलितों को पानी भरने की इजाजत नहींगांव-गांव में यही कहानी दोहराई जाने के कारण आज दलितों के पानी के टांके खाली पड़े हैं। जाति के आधार पर बंटे पानी के कारण दलित वर्ग के लोग पलायन को मजबूर हैं। गांवों में बाकायदा सवर्ण जातियों के लिए अलग से टांके बने हैं, तो दलित वर्ग के लिए ‘मेधवालों की बेरी’, ‘भीलों की बेरी’, ‘सांसियों का तला’, ‘मिरासीयों का पार’ नाम से पानी के स्रोत अलग से गांव की सरहदों पर बने हुए हैं। जिले में लगभग 70-80 सरपंच, जिला परिषद सदस्य तथा पंचायत समिति सदस्य और एक विधायक दलित समाज से होने के बावजूद ग्रामीण अंचलों में दलितों का सरेआम शोषण हो रहा है। दो बूंद पानी के लिए दलित वर्ग को बार-बार अपमानित होना पड रहा है। जाति आधारित बंटवारा महज पानी में ही हो, ऐसा नहीं हैं। हर योजना का बंटवारा जाति आधारित हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा संचालित पेयजल राहत टैंकर चलाने वाले किशनाराम ने बताया, ‘‘हम गरीबों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं, मगर गांव के प्रभावशाली लोग हमें गांव में घुसने पर ‘देख लेने’ की धमकिया देते हैं, जोर-जबरदस्ती कर पानी के टैंकर अपने घरों के टांकों में खाली कराते हैं। हमें गांवों में बार-बार जाना होता है। किस-किस से दुश्‍मनी मोल लें।’’रूघाराम मेघवाल कहते हैं, ‘राहत के पेयजल टैंकर गरीब और दलितों तक पहुंचने ही नहीं दिए जाते। गांवों में दलितों के टांकों में पानी रीत (रिक्‍त) चुका हैं। पानी खरीदने की हमारी हैसियत नही है। बीस-बीस किलोमीटर परिवार की महिलाएं और बच्चे पैदल चल कर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं। दिन भर की तलाश के बाद एक घड़ा ला पाते हैं। ऐसी स्थिति कब तक चलेगी? जिला प्रशासन को बार-बार सूचित किया, मगर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।

रविवार, 23 मई 2010

BARMER NEWS TRACK

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राजस्‍थान: भीषण गर्मी से फैलीं मौसमी बीमारियां, 5 की मौत
बाड़मेर: राजस्‍थान के बाड़मेर जिले में पड़ रही भीषण गर्मी के कारण जिले भर में मौसमी बीमारियों का प्रकोप आरम्भ हो गया है। जिले भर में हैजा और उल्टी-दस्त की बीमारियों ने बड़े पैमाने पर दस्तक दे दी है। पाकिस्तान सीमा से सटे बाखासर गांव में भीषण गर्मी के कारण उल्टी-दस्त का रोग फैलने से दो दर्जन ग्रामीण इसके शिकार हो गए। इन पीडि़त ग्रामीणों को गुजरात के थराद के अस्पताल में उपचार के लिए शनिवार को भर्ती कराया, जहां तीन बच्चों सहित चार जनों ने दम तोड़ दिया। जिले भर में भीषण गर्मी का कहर जारी रहने से डिहाइड्रेशन, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया है।वहीं बस से तीर्थ यात्रा पर जैसलमेर से बाड़मेर पहुंची महिला यात्री जमना देवी (55 साल) की तेज गर्मी के कारण तापघात से मौत हो गई। जमना देवी की तबियत बस में ही खराब हो गई थी, उसके बाद उन्‍हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्‍हें मृत घोषित कर दिया गया।पाकिस्तान तथा गुजरात सीमा से सटे चौहटन तहसील के बाखासर गांव में शुक्रवार को उल्टी-दस्त का प्रकोप हो गया था, जिससे स्थानीय जिला प्रशासन बेखबर था। ऐसे में बाखासर के नजदीक गुजरात के थराद जिले के राजकीय अस्पताल में दो दर्जन ग्रामीणों को उपचार के लिए भर्ती कराया गया। शनिवार को लाधुसिंह (6 वर्ष), बलवंतसिंह (4 वर्ष), हेमी (60) तथा कमला (1 साल) की मौत हो गई। बाखासर पटी के साता, सावा, हाथला, बावरवाला, नवातला, नवापुरा आदि दर्जन भर गांवों में पिछले दो दिनों से मौसमी बीमारियों का प्रकोप होने से ग्रामीण खौफ के साये में हैं। इन गावों के पीडि़तों का उपचार गुजरात के अस्पतालों में चल रहा है, जबकि इस गांव का चिकित्सक दो दिन पहले रिश्‍वत लेते गिरफ्तार हो चुका है। शनिवार को स्वास्थ्य विभाग ने चौहटन से मेडिकल टीम बाखासर भेजी, जहां दो दर्जन पीडि़तों का उपचार किया गया। स्वास्थ्य विभाग ने इन प्रभावित गांवों से पानी के नमूने भी लिए। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. गणपतसिंह ने बताया कि प्रभावित गांवों में मेडिकल दल भेजे गये हैं। उन्होंने बताया कि तेज गर्मी के कारण बीमारी का प्रभाव बढ़ गया था। तापमान 48-49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने की वजह से थारवासियों को आग की भट्ठी जैसी गर्मी में झुलसना पड़ रहा है। गर्मी का कहर कम होने के बजाय निरन्तर बढ़ रहा है।
आसमान से बरसी आग
बाडमेर। बाडमेर जिले में गर्मी का कहर शनिवार को भी जारी रहा। सूर्य के रौद्र रूप के कारण समूचा जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। एक पल के लिए चैन नहीं मिल रहा है। ठण्डी रातों के लिए मशहूर थार में पिछली दो रातों में लू चल रही है। जन जीवन को न दिन में चैन मिल रहा है और न रात को आराम। शनिवार को तापमापी में पारा अडतालीस डिग्री से ऊपर ही रहा। पिछले दो दिन से बढे पारे के कारण बाजारों में अघाषित कफ्üयू लग गया है। अत्यावश्यक होने पर ही लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं। बालोतरा.बालोतरा क्षेत्र में इस बार गर्मी व लू का प्रकोप रिकॉर्ड बनाने की ओर है। सूरज के रौद्र रूप से वातावरण भट्टी की तरह दहक रहा है। इसका असर बाजार में भी देखा जा रहा है। तेज धूप व लू से बचाव के लिए बालोतरा के बाजार में अब जगह-जगह शामियाने तानकर छांव की व्यवस्था की जा रही है। ग्राहकों के साथ ही खुद की सुविधा को देखते हुए बाजार के दुकानदार अपनी दुकानों के आगे साझा सहयोग से शामियाने तान रहे हैं। चौहटन. समूचे पश्चिमांचल में आसमान से आग बरस रही है। आकाश से आग उगलती सूरज की किरणे, वहीं अंगारो की तरह तपती धरती ने जन जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है। यूं तो इस क्षेत्र में तापमापी यंत्र नहीं होने से तापमान का निश्चित आंकडा नहीं है, लेकिन समूचे पश्चिमांचल में भीषण गर्मी ने अब तक के सारे कीर्तिमान तोड दिए है। तन को झुलसा देने वाली गर्म लू से दिन भर तो कहर बरपा ही रहता है, वहंी रात में भी गर्म हवा का प्रवाह कम नहीं हो रहा। भीषण गर्मी से जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। गर्मी के कहर से क्षेत्र में मौसमी बीमारियों भी अपनाप्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है।
मोकलसर.क्षेत्र में शनिवार को प्रचण्ड गर्मी का दौर जारी रहा। सूर्योदय के साथ तेज गर्मी व उमस ने आमजन को परेशान कर दिया। दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक गर्मी का पारा तेज रहा। मोकलसर में शनिवार को 49 डिग्री सेल्सियस पारा दर्ज किया गया। बाजार में दोपहर को सन्नाटा पसरा रहा। सडकों पर दोपहर में आवाजाही कम रही।

शनिवार, 22 मई 2010

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थार में बरसी आग
बाडमेर । थार में भीषण गर्मी ने इस साल के सारे रिकार्ड तोड दिए। पारा 48 डिग्री को लांघ गया। लू के थपेडे आग की लपटों का कार्य कर रहे थे तो तवे के माफिक जमीन तप गई। देह झुलसाने वाली गर्मी में लोगों का घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। शुक्रवार को अघिकतम तापमान 48.1 डिग्री सेल्सिसय पहुंच गया। तापमान की इस वृद्धि ने लोगों को झुलसा दिया। सुबह से ही लू के थपेडे शुरूहो गए। भरी दुपहरी में बाजार मेे सन्नाटा पसर गया। राष्ट्रीय राजमार्ग पंद्रह पर वाहनों के पहिए थम गए। गांवों में धोरों की जमीन तपने से हाल और भी बुरे हो गए। पंखे व कूलर जवाब देने लग गए है।
आग में घी राज्य सरकार द्वारा बिजली कटौती की घोषणा थार के लोगों के लिए अब सजा बन गई है। दोपहर बारह बजे तक हो रही कटौती से लोगों में जबरदस्त रोष बढ रहा है।
नाबालिग के साथ बलात्कार का मामला
बाटाडू. गिडा पुलिस थाने में शुक्रवार को क्षेत्र के नई रेवाली गांव की एक नाबालिग के साथ बलात्कार मामला दर्ज हुआ। पुलिस ने बताया कि एक व्यक्ति ने मामला दर्ज करवाया कि उसकी 17 वर्षीय पुत्री घर से 15 मई को बाटाडू में सब्जी विक्रेता डालूराम के पास सब्जी खरीदने गई। आरोपी ने दुकान के पीछे बने कमरे में ले जाकर बलात्कार किया। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
बाड़मेर: रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार हुआ डॉक्टर
बाड़मेर: भ्रष्‍टाचार निरोधक ब्‍यूरो (एसीबी) ने शुक्रवार को राजस्‍थान के बाड़मेर जिले की चौहटन तहसील के बाखासर राजकीय अस्पताल के डॉक्टर शंकराराम को आठ सौ रुपए की घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया। ब्यूरो के उप महानिरीक्षक (डीआईजी) गोविंद गुप्ता ने बताया कि चांदासनी निवासी प्रभूराम कोली की भतीजी कंकू ने राजकीय अस्पताल बाखासर में एक बच्चे को जन्म दिया।बच्‍चे को जन्‍म देने के बाद कंकू के नाम ‘जननी सुरक्षा योजना’ के अंतर्गत 17 सौ रुपए का चेक जारी हुआ था, लेकिन चेक देने के बदले डॉक्टर शंकराराम ने उनसे घूस में हजार रुपए मांगे। परिवादी ने सौ रुपए उसे पहले ही दे दिए थे। इसके बाद गत 19 मई को परिवादी प्रभूराम ने एसीबी चौकी, बाड़मेर में डॉक्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।शुक्रवार को ब्यूरो के चौकी प्रभारी भंवरसिंह ने आरोपी शंकराराम को उसके सरकारी आवास पर परिवादी से आठ सौ रुपए की घूस लेते गिरफ्तार किया। एसीबी के अनुसार आरोपी ने परिवादी से शुक्रवार को घूस में नौ सौ रुपए ही लिए थे, लेकिन परिवादी के हाथा-जोड़ी करने पर डॉक्टर ने सौ रुपए वापस लौटा दिए। इस प्रकरण में आगे की कार्रवाई जारी है।

नौकरी न मिलने पर युवक ने फांसी लगाई
गुडामालानी. नौकरी नहीं मिलने से खफा हुए एक तीस वर्षीय तनावग्रस्त युवक ने गुरूवार रात्रि क्षेत्र के भाखरपुरा गांव में खेत में खेजडी के पेड पर फांसी के फंदे पर झूलकर आत्महत्या कर ली। पुलिस के अनुसार माधवदास पुत्र शिवदास संत निवासी भाखरपुरा ने मामला दर्ज करवाया कि उसका छोटा भाई सन्तोषदास (30) ने कुछ दिनों पहले पोस्टआफिस में नौकरी के लिए आवेदन किया था। सफल नहीं से वह पिछले पांच सात दिन से तनावग्रस्त था। गुरूवार रात्रि सन्तोषदास ने पास के खेत में जा खेजडी के पेड से फांसी का फंदा बनाकर आत्महत्या कर ली। सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची। पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम करवाकर परिजनों को सुपुर्द किया।
उल्टी दस्त का प्रकोप
चौहटन. क्षेत्र के सुदूर कच्छ रण से सटे सीमावर्ती गांवों में इन दिनों उल्टी दस्त का जबरदस्त प्रकोप फैल गया है। पिछले दो दिनों से इस क्षेत्र के बाखासर, साता, हाथला, आदि गांवों में दर्जनों के अचानक उल्टी का प्रकोप शुरू हुआ। स्थानीय स्तर इलाज नहीं हो पाने एवं अचानक उल्टी के प्रकोप के फैलाव से भयभीत लोगों ने गुजरात जाकर इलाज करवाना शुरू किया है।
अकेले बाखासर गांव के एक दर्जन से अघिक उल्टी पीडितों को गुजरात के थराद में भर्ती करवाया गया है। बाखासर के ग्रामीणों ने बताया कि मीरांदेवी पत्नी हंसाराम गर्ग, सुखी देवी पत्नी ऊकाराम कुम्हार, सुखाराम पुत्र दयाराम मेघ, देवीदान, सुरेश पुत्र मदाराम मेघ, बाबूलाल को थराद के निजी अस्पताल में भर्ती किया गया है। तीन दिनों में एक दर्जन से अघिक उल्टी के मरीजों को गुजरात इलाज के लिए ले जाया गया है।
दो महिलाओं ने दी जान
जालोर । चितलवाना व सायला थाना क्षेत्र में शुक्रवार को दो महिलाओं ने कुएं व बेरेी में कूद कर अपनी जान दे दी। सायला थाना क्षेत्र के बावतरा गांव में कुएं में कूदी महिला का शव देर रात तक नहीं मिल पाया था। उसके पैरों के चप्पल व ओरणी बरामद हुई है।
पुलिस के अनुसार चितलनवाना थाना क्षेत्र के डावल निवासी श्रीमती जमना पत्नी भगवानाराम विश्नोई ने शुक्रवार सुबह बेरी में कूद कर अपनी जान दे दी। आत्म हत्या के कारणों का खुलासा नहीं हो पाया। बेरी के निकट से महिला की चप्पल बरामद हुई। इसी तरह सायला थाना क्षेत्र के बावतरा गांव में शुक्रवार दोपहर अलकूदेवी पत्नी बींजाराम रेबारी कुएं में कूद गई।
ग्रामीणों की इत्तला पर सायला थानाप्रभारी बाघसिंह पुलिस दल के साथ मौके पर पहुंचे और शव बाहर निकलवाने का प्रयास किया। थानाप्रभारी ने बताया कि शव कुएं में फंसा होने के कारण देर रात तक बरामद नहीं हो पाया।