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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

""पाकिस्तान में महाशिवरात्रि""










""पाकिस्तान में महाशिवरात्रि""

पाकिस्तान का कटासराज मंदिर दशकों बाद श्रद्धालुओं के लिए खुला है. महाशिवरात्रि पर पाकिस्तान और भारत से यहां बहुत से श्रद्धालु पहुंचे.
चकवाल शहर में स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर कटासराज का पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में जीर्णोद्धार करवाया है.
महाशिवरात्रि पर पाकिस्तान के कई प्रांतों और भारत से पहुंचे श्रद्धालु बेहद भावविभोर नज़र आए.
महाशिवरात्रि पर तीन दिन तक कटासराज मंदिर में धार्मिक कार्य संपन्न किए गए.
बहुत से लोगों के लिए कटासराज का प्रसाद पाने का यह पहला मौका था.
भारत से आए कई श्रद्धालुओं ने इस मौके के लिए पाकिस्तान सरकार का धन्यवाद अदा किया.
पाकिस्तान के लाहौर, रावलपिंडी, नारोवाल, सादिक़ाबाद, सियालकोट सहित ख़ैबर-पख़्तूनख्वा और सिंध के भीतरी इलाक़ों से हिंदू श्रद्धालु कटासराज पहुंचे.
पाकिस्तान बनने के बाद पहली बार हिंदू श्रद्धालुओं को इस मंदिर में महाशिवरात्रि मनाने का मौका मिला.
मंदिर के तालाब को भी हाल ही में साफ़ कर फिर से भरा गया है.
कटासराज के शिव मंदिरों के प्रति सीमा के दोनों ओर हिंदुओं में काफ़ी श्रद्धा है.
पाकिस्तान, कटासराज, महाशिवरात्रिपाकिस्तान, कटासराज, महाशिवरात्रिलोगों ने अपने भगवान का इस मौके के लिए धन्यवाद किया.|

रविवार, 10 मार्च 2013

सड़क से पहाड़ तक आस्था की कतार



सड़क से पहाड़ तक आस्था की कतार
 महाशिवरात्रि पर रविवार को बाड़मेर शिवमय हो उठा 


बाड़मेर । महाशिवरात्रि पर रविवार को बाड़मेर शिवमय हो उठा । शहर के शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का सैलाब उमड़ने लगा। मंदिरों में जय शिव ओंकारा ....,ओम नम: शिवाय....,रूद्राष्टक,शिव पंचाक्षर स्तोत्र के स्वर सुनाई देने लगे। हाथों में जल का पात्र और पूजन सामग्री लेकर भोले के दर्शनों की आस लगाए कतारों में खड़े भक्त "बोल बम ताड़क बम.." "हर हर महादेव..." के जयकारे लगाते अपनी बारी का इंतजार करते नजर आए..।

भक्तों ने आक,धतूरा,बेर,चंदन,रोली,मोली,चावल,बिल्व पत्र,दूध,गाजर से शिवशंकर की विशेष पूजा अर्चना की और महादेव का जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि की कामना की। नव विवाहिताओं ने शिवालयों में जेघड़ चढ़ाई।

सड़क से पहाड़ तक आस्था की कतार
सब्जी मंदी स्थित शिव मंदिर , सुजेश्वर स्थित शिव मंदिर में सुबह दुग्धाभिषेक किया गया। उसके बाद मंदिर भक्तों के लिए खोला गया। सुबह चार बजे से पहले यहां भक्तों की कतारें लगनी शुरू हो गई। श्रद्धालु कई किलोमीटर लंबी कतारों में अपनी बारी का इंजतार कर रहे है। तेज धूप होने के बाद भी बाबा के दर्शनों के लिए महिलाओं एवं पुरूषों का उत्साह बना हुआ है।

जयकारे गूंजा सफ़ेद आकडा मंदिर
महाबार रोड स्थित सफ़ेद आकडा महादेव मंदिर में सुबह से भोलेनाथ के जयकारे से पूरा महौल भक्तिमय नजर आया। भक्तों ने पंचामृत अभिषेक कर शिवस्तोत्र के पाठ किए।

शहर स्थित शिव कुटिया चोहटन के कपालेश्वर ,हरपालिया में हरापालेश्वर मंदिरों में भक्तो की भरी भीड़ रही
सफ़ेद आकडा व जसदेर में पार्किग व्यवस्था
सुजेश्वर पहाडी के ऊपर स्थित महादेव मंदिर में भी अल सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ेगी।


महादेव की सजी झांकी
जसदेर स्थित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में भोलेनाथ की झांकी सजाई गई। यहां भक्तों की सुविधा के लिए जलपात्रों के साथ बिल्व पत्र व दूध की व्यवस्था भी की गई है। शाम को 7 बजे से चार प्रहर की पूजा शुरू होगी। जसदेर स्थित बारह सदाशिव ज्योतिर्लिगेश्वर महादेव मंदिर में भी अलसुबह से ही भक्त पहुंच रहे है।भक्तो के आकर्षण का केंद्र बने हें ज्योतिर्द्वादाश शिवलिंग --

शनिवार, 9 मार्च 2013

शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार

शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार

 शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्त्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं।
शिवरात्रि से आशय

शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-


फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।

शिव भक्तों का महापर्व

महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों द्वारा अत्यंत श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार यह दिन फ़रवरी या मार्च में आता है। शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए बहुत शुभ है। भक्तगण विशेष पूजा आयोजित करते हैं, विशेष ध्यान व नियमों का पालन करते हैं । इस विशेष दिन मंदिर शिव भक्तों से भरे रहते हैं, वे शिव के चरणों में प्रणाम करने को आतुर रहते हैं। मन्दिरों की सजावट देखते ही बनती है। हज़ारों भक्त इस दिन कावड़ में गंगा जल लाकर भगवान शिव को स्नान कराते हैं।
महादेव शिव के पूजन का महापर्व

भारतीय त्रिमूर्ति के अनुसार भगवान शिव प्रलय के प्रतीक हैं। त्रिर्मूति के दो और भगवान हैं, विष्णु तथा ब्रह्मा। शिव का चित्रांकन एक क्रुद्ध भाव द्वारा किया जाता है। ऐसा प्रतीकात्मक व्यक्ति भाव, जिसके मस्तक पर तीसरी आंख है; जो जैसे ही खुलती है, अग्नि का प्रवाह बहना प्रारम्भ हो जाता है। पुराणों के अनुसार जब कामदेव ने शिव के ध्यान को तोडने की चेष्टा की थी, तो शिव का तीसरा नेत्र खोलने से कामदेव जलकर राख हो गया था।


पौराणिक कथाएँ

महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित तीन कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं:-
प्रथम कथा

एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।
द्वितीय कथा

इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार – श्रीब्रह्मा व श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया। इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया। अपना महात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों आमादा हो उठे। तब शिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है। शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनक क्रोध भी शांत हो चुका था तथा उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब शिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।
तृतीय कथा

इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का ताण्डव और भगवती का लास्यनृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड- खण्ड हो जाये। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।
महान अनुष्ठानों का दिन

शिव की जीवन शैली के अनुरूप, यह दिन संयम से मनाया जाता है। घरों में यह त्योहार संतुलित व मर्यादित रूप में मनाया जाता है। पंडित व पुरोहित शिवमंदिर में एकत्रित हो बड़े-बड़े अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। कुछ मुख्य अनुष्ठान है- रुद्राभिषेक, रुद्र महायज्ञ, रुद्र अष्टाध्यायी का पाठ, हवन, पूजन तथा बहुत प्रकार की अर्पण-अर्चना करना। इन्हें फूलों व शिव के एक हज़ार नामों के उच्चारण के साथ किया जाता है। इस धार्मिक कृत्य को लक्षार्चना या कोटि अर्चना कहा गया है। इन अर्चनाओं को उनकी गिनती के अनुसार किया जाता है। जैसे –
लक्ष: लाख बार
कोटि: एक करोड बार ।

ये पूजाएं देर दोपहर तक तथा पुन: रात्रि तक चलती हैं। इस दिन उपवास किये जाते हैं, जब उनकी नितांत आवश्यकता हो।
शिवरात्रि कैसे मनाएं?
रात्रि में उपवास करें। दिन में केवल फल और दूध पियें।
भगवान शिव की विस्तृत पूजा करें, रुद्राभिषेक करें तथा शिव के मन्त्र


देव-देव महादेव नीलकंठ नमोवस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तब॥
तब प्रसादाद् देवेश निर्विघ्न भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडांकुर्वन्तु नैव हि॥

का यथा शक्ति पाठ करें और शिव महिमा से युक्त भजन गांए।
‘ऊँ नम: शिवाय’ मन्त्र का उच्चारण जितनी बार हो सके, करें तथा मात्र शिवमूर्ति और भगवान शिव की लीलाओं का चिंतन करें।
रात्रि में चारों पहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यत: शामिल करना चाहिए।
शिवरात्रि या शिवचौदस नाम क्यों?

भूतेश्वर महादेव मन्दिर, मथुरा

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की महादशा यानी आधी रात के वक़्त भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे, ऐसा ईशान संहिता में कहा गया है। इसीलिए सामान्य जनों के द्वारा पूजनीय रूप में भगवान शिव के प्राकट्य समय यानी आधी रात में जब चौदस हो उसी दिन यह व्रत किया जाता है।
बेल (बिल्व) पत्र का महत्त्व

बेल (बिल्व) के पत्ते श्रीशिव को अत्यंत प्रिय हैं। शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार उसे जंगल में देर हो गयी, तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची- वह सारी रात एक-एक कर पत्ता तोडकर नीचे फेंकता जाएगा। कथानुसार, बेलवृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख, शिव प्रसन्न हो उठे। जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था। शिव ने उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया। यह कथा न केवल यह बताती है कि शिव को कितनी आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, बल्कि यह भी कि इस दिन शिव पूजन में बेल पत्र का कितना महत्त्व है।
शिवलिंग क्या है?

वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है। इसीलिए इसका आदि और अन्त भी साधारण जनों की क्या बिसात, देवताओं के लिए भी अज्ञात है। सौरमण्डल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव तन पर लिपटे सांप हैं। मुण्डकोपनिषद के कथानुसार सूर्य, चांद और अग्नि ही आपके तीन नेत्र हैं। बादलों के झुरमुट जटाएं, आकाश जल ही सिर पर स्थित गंगा और सारा ब्रह्माण्ड ही आपका शरीर है। शिव कभी गर्मी के आसमान (शून्य) की तरह कर्पूर गौर या चांदी की तरह दमकते, कभी सर्दी के आसमान की तरह मटमैले होने से राख भभूत लिपटे तन वाले हैं। यानी शिव सीधे-सीधे ब्रह्माण्ड या अनन्त प्रकृति की ही साक्षात मूर्ति हैं। मानवीकरण में वायु प्राण, दस दिशाएँ, पंचमुख महादेव के दस कान, हृदय सारा विश्व, सूर्य नाभि या केन्द्र और अमृत यानी जलयुक्त कमण्डलु हाथ में रहता है। लिंग शब्द का अर्थ चिह्न, निशानी या प्रतीक है। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है।
शिवलिंग मंदिरों में बाहर क्यों?

जनसाधारण के देवता होने से, सबके लिए सदा गम्य या पहुँच में रहे, ऐसा मानकर ही यह स्थान तय किया गया है। ये अकेले देव हैं जो गर्भगृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देते हैं। इन्हें तो बच्चे-बूढे-जवान जो भी जाए छूकर, गले मिलकर या फिर पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना हल्के हो सकते हैं। भोग लगाने अर्पण करने के लिए कुछ न हो तो पत्ता-फूल, या अंजलि भर जल चढ़ाकर भी खुश किया जा सकता है।
जल क्यों चढ़ता है?

रचना या निर्माण का पहला पग बोना, सींचना या उडेलना हैं। बीज बोने के लिए गर्मी का ताप और जल की नमी की एक साथ जरुरत होती है। अत: आदिदेव शिव पर जीवन की आदिमूर्ति या पहली रचना, जल चढ़ाना ही नहीं लगातार अभिषेक करना अधिक महत्त्वपूर्ण होता जाता है। सृष्टि स्थिति संहार लगातार, बार–बार होते ही रहना प्रकृति का नियम है। अभिषेक का बहता जल चलती, जीती-जागती दुनिया का प्रतीक है।
जब मंदिर न जा सकें


लिंग पदार्थकामना


मिट्टी सब कामनाएँ


कलावा विरोधशमन


कपूर,कुंकुम

सुख


फूल राज्य


आटा वंशवृद्धि


गुड़, चीनी स्वास्थ्य


फल संतान


अनाज बरकत


दूब घास अपमृत्यु बचाव


तिल की पीठी ख़ास इच्छा


लिंग पुराण आदि ग्रन्थों में कहा गया है कि घर पर लकड़ी, धातु, मिट्टी, रेत, पारद, स्फटिक आदि के बने लिंग पर अर्चना की जा सकती है। अथवा साबुत बेल फल, आंवला, नारियल, सुपारी या आटे या मिट्टी की गोल पर घीचुपडकर अभिषेक पूजा कर सकते हैं। विशेष मनोरथ के तालिका दे रहे हैं कपड़े बांध कर या लपेटकर इनसे लिंग बना सकते हैं।
शिव महादेव क्यों ?

बड़ा या महान बनने के लिए त्याग, तपस्या, धीरज, उदारता और सहनशक्ति की दरकार होती है। विष को अपने भीतर ही सहेजकर आश्रितों के लिए अमृत देने वाले होने से और विरोधों, विषमताओं को भी संतुलित रखते हुए एकपरिवार बनाए रखने से शिव महादेव हैं। आपके समीप पार्वती का शेर, आपका बैल, शरीर के सांप, कुमार कार्तिकेय का मोर, गणेशजी का मूषक, विष की अग्नि और गंगा का जल, कभी पिनाकी धनुर्धर वीर तो कभी नरमुण्डधर कपाली, कहीं अर्धनारीश्वर तो कहीं महाकाली के पैरों में लुण्ठित, कभी मृड यानी सर्वधनी तो कभी दिगम्बर, निमार्णदेव भव और संहारदेव रुद्र, कभी भूतनाथ कभी विश्वनाथ आदि सब विरोधी बातों का जिनके प्रताप से एक जगह पावन संगम होता हो, वे ही तो देवों के देव महादेव हो सकते हैं।
शनि शिवपुत्र क्यों ?

संस्कृत शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही खुश हों तो निहाल करें और नाराज़ हों तो बेहाल करते हैं। सूर्य जीवन का आधार, सृष्टि स्थिति का मूल, वर्षा का कारण होने से पुराणों में खुद शिव या विष्णु का रूप माना गया है। निर्देश है कि शिव या विष्णु की पूजा, सूर्य पूजा के बिना अधूरी है। खुद सूर्य जलकारक दायक पोषक होने और शनि स्वयं जल रूप होने इस बात में कोई विरोध नहीं हैं।
शिव को पंचमुख क्यों ?

पांच तत्त्व ही पांच मुख हैं। योगशास्त्र में पंचतत्वों के रंग लाल, पीला, सफ़ेद, सांवला व काला बताए गए हैं। इनके नाम भी सद्योजात (जल), वामदेव (वायु), अघोर (आकाश), तत्पुरुष (अग्नि), ईशान (पृथ्वी) हैं। प्रकृति का मानवीकरण ही पंचमुख होने का आधार है।