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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

बाड़मेर,सरहदी गांवों में पानी चोरी का डर .जहां तालों में कैद रहता हें पानी बारी बारी पेयजल स्रोतों की करते हें पहरेदारी

बाड़मेर,सरहदी गांवों में पानी चोरी का डर .जहां तालों में कैद रहता हें पानी

बारी बारी पेयजल स्रोतों की करते हें पहरेदारी

चन्दन सिंह भाटी




बाड़मेर राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में कोरोना संक्रमण की सुरक्षा के लिए लगाए लॉक डाउन के दौरान गर्मी की दस्तक के साथ लोगो को पानी की समस्याओ से दो चार होना पड़  रहा हें ,भारत पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर जिले के सरहदी गाँवों में भीषण गर्मी की दस्तक के साथ हालात  विकट  हो चुके हें ,छह छह माह से होदियो में पानी नहीं आने से गाँव वालो के हलक सूख गए हें ,जलदाय विभाग हर साल गर्मी के मौसम से ठीक पहले आपात योजना के तहत करोडो रुपयों का बजट पुरानी पेयजल योजनाओ के दुरुस्तीकरण के लिए खर्च करते हें .मगर सरहदी चौहटन उप खंड के गफन क्षेत्र के तेरह गाँवो के हालत कुछ और ही बयान कर रहे हें ,इस क्षेत्र के तेरह गाँव गफानो के गाँव कहे जाते हें यानी रेतीले धोरो के बीच के विषम गाँव जन्हा पानी क्या इंसान भी नहीं पहुँच पाते .रमजान की गफन ,आर बी की गफन ,तमाची की गफन ,लक्खे का तला ,भीलो का तला ,भुन्गारिया ,रासबानी ,आदी में लोग पानी की एक एक बूँद के लिए तरस रहे हें .


पाकिस्तान की सरहद से सटे राजस्‍थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में तापमान बढ़ने के साथ-साथ पानी की समस्या विकराल होती जा रही है। सरहदी गांवों में ग्रामीण पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पानी की विकट समस्या के कारण गांवों में पलायन की स्थिति बन गई है। गांवों में पारंपरिक पेयजल स्रोत सूख गए हैं। लगातार छठे साल पड़े अकाल के कारण पारंपरिक कुएं, तालाब, बावडि़यों, बेरियों तथा टांकों का पानी सूख चुका है। हालात ये हैं कि जिले के लगभग 860 गांव पेयजल की किसी योजना से जुड़े नहीं हैं। इन कमीशंड, नॉन कमीशंड गांवों में प्रशासन द्वारा पानी के टेंकरों की व्यवस्था की गई है, मगर, यह महज खानापूर्ति तक ही सीमित है। गांवों में टैंकर पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। ऐसे में गांवों में लोगों ने पानी पर पहरेदारी शुरू कर दी है।

जिले के सीमावर्ती क्षेत्र चौहटन के विषम भोगोलिक परिस्थितियों में बसे गफनों के 1३ गांवों में पेयजल सबसे बडी त्रासदी है। इन 13 गांवों- रमजान की गफन, आरबी की गफन, तमाची की गफन, भोजारिया, भीलों का तला, मेघवालों का तला, रेगिस्तानी धोरों के बीच बसे हुए हैं। इन गांवों में पहुंचने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। ऐसे में ग्रामीण अपनी छोटी-छोटी पानी की बेरियों पर ताले लगा कर रखते हैं। तालों के साये में पानी रखना यहां की परम्परा और जरूरत है। इन गांवों के लोग पानी की एक-एक बूंद की कीमत और उपयोगिता जानते हैं।

पानी के कारण गांवों में होने वाले झगडों के कारण ग्रामीण मजबूरी में पानी को सुरक्षित रखने के लिए ताले लगा कर रखते हैं ताकि पानी चोरी ना हो जाए। मगर, इस बार पानी की जानलेवा किल्लत ने ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए पहरेदारी का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया। गांव के सलाया खान निवासी तमाची की गफन ने संवाददाता को बताया कि टांकों पर ताले जड़ने के बाद भी पानी चोरी हो जाता है। पानी की समस्या इस कदर है कि ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डाल कर पानी चोरी कर ले जाते हैं। चोरों का पता लगाने का प्रयास भी किया मगर सफलता नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने पंचायत बुलाकर निर्णय लिया कि परंपरागत रूप से बनी पानी की बेरियो पर बारी बारी पहरेदारी की जाए ,इन गाँवों में जातिगत हिसाब से मोहला वाइज़ पानी की बेरिया बनी हें।सभी बेरियो पर लोगो ने अपने अपने ताले जड़ रखे हें ,रासबानी के जुम्मा खान के अनुसार पानी की भयंकर किल्लत हें ,सरकारियो पेयजल योजनाओ से पानी सप्लाई हुए वर्षो बीत ,गए निजी टेंकरों की कीमत प्रति टेंकर हज़ार रुपये हें जिसे देने की स्थति में हम नहीं हें ,प्रशासन को कई बार लिखित और मौखिक रूप से पानी की समस्या के बारे में बता चुके हें मगर कोई समाधान नहीं निकल रहा .पानी की होदियो में पानी कभी आया ही नहीं ,

जनप्रतिनिधि गूंगे बहरे हें ,


रमजान की गफन के अली मोहम्मद ने बताया की पानी की सुरक्षा की इससे बेहतर व्यवस्था नहीं हो सकती।प्रत्येक परिवार अपनी बेरी के साथ अन्य बेरियो की पहरेदारी करता हें ताकि पानी चोरी ना हो . उन्होंने बताया कि चालीस किलोमीटर के दायरे में पेयजल का कोई स्रोत नहीं है। पानी का एक टैंकर टांके में डलवाते हैं, तो प्रति टैंकर एक हज़ार रूपए का खर्चा आता है। ऐसे में पानी चोरी होने से आर्थिक नुकसान के साथ पानी की समस्या भी खड़ी हो जाती है। हालांकि, इस समस्या और ग्रामीणों द्वारा की जा रही सुरक्षा व्यवस्था पर कोई प्रशासनिक अधिकारी बोलने को तैयार नहीं। मगर, यह सच है कि रेगिस्तानी इलाकों में प्रशासनिक लापरवाही और उपेक्षा के चलते ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए पहल करनी पडी । यह है भारत के लोकतंत्र का नजारा। बाड़मेर जिले के गांवों में पानी की समस्या कोई नई बात नहीं है। मगर, प्रशासनिक लापरवाही के चलते हालात इतने विकट होंगे, यह किसी ने नहीं सोचा था।

सोमवार, 30 मई 2016

बाड़मेर सरहदी गाँवो में पानी पर खिंची तलवारें,जाति और गांव आधारित पानी का हुआ बंटवारा

बाड़मेर सरहदी गाँवो में पानी पर खिंची तलवारें,जाति और गांव आधारित पानी का हुआ बंटवारा



चंदन सिंह भाटी
बाडमेर भारत पाकिस्तान की सरहद पर बसें सबसे दुर्गम ग्राम पंचायत खबडाला में गतपांच  सालों से पानी की भारी किल्लत झेलनें के बाद गांव में पानी को लेकर खिंचने वाली तलवारों पर लगाम कसकर ग्रामीणों ने आपसी सहमती बना कर प्रत्येक गांव में पानी का बंटवारा कर अनुकरणीय उदाहरण पो किया।यह अलग बात हैं कि गांव में पानी एक माह में दो  बार ही आता हैं।

खबडाला गांव के पूर्व सरपंच रतन सिंह सोढ़ा  नें बताया कि विगत पांच  सालों से खबडाला ग्राम पंचायत सहित बंधडा,बचिया,पूंजराज का पार,सगरानी,पिपरली,द्राभा,गारी,मणिहारी सहित 94 गांवों में पेयजल की जबरदस्त किल्लत के चलतें ग्रामीणें के सामने बडी समस्या खडी हो गई।खबडाला गांव में पानी के दो होज सरकारी योजना में बने हुऐ हैं।एक 20 साल पुराना हैं।दूसरा तीन साल पहलें बना जिसे आज तक पाईप लाईन से जोडा ही नही गया।लाखों रूप्यें खर्च कर हौज के पास ही पशुओं  कें लियें पानी की खेली भी बनाई गई थी।जो आज भी सूखी पडी हैं।पुराने होज में एक माह में महज दो  दिन पानी की आपूर्ति होती हैं।आपूर्ति के समय आसपास के गांवों के ग्रामीण भी पानी भरने आते हैं।इतना कम पानी हमारे एक गांव की भी प्यास नहीं बुझा पाता ऐसे में दूसरे गांवों के लोगों को कैसे पानी भरने दे।इसी बात को लेकर गांवों के बीच झगडे भी होने लगे।कई बार तलवारें भी खींची।  पानी भरने को लेकर आपसी संर्धश होनें के कारण गिराब थानें में मुकदमा भी दर्ज हुआ।रोज रोज की परोानी सें निपटने के लिऐं ग्रामीणों नें सर्व सम्मति से ग्राम पंचायत के आठों गांवों की समझौता बैठक बुला कर पानी का बंअवारा करने का निर्णय लिया गया।गांव के ही टीकमारीम मेघवाल नें बताया कि पानी के बंटवारे के तहत दो दो गांवों की बारी तय की कि पानी आपूर्ति के दिन निर्णित गांव के लोग ही पानी भरेंगे। उन्होने बताया कि गावों में पेयजल की आपूर्ति नाम मात्र ही होती हैं,गांव में परम्परागत पानी के स्त्रोत बेरिया हैं। जिसके कारण आम आदमी की जरुरत  तों जैसे तैसे पूरी जाती हैं मगर पशुओं  को पानी कहॉ से पिलाऐं,गांव में लगभग एक हजार गायें,30 हजार भेड बकरीयॉ हैं।जिन्हें पीने के लिऐ पानी चाहियें।पशुधन के लिऐ पानी की वयवस्था के लियें 15 किलोमीटर दूर तक के गांवों में जाना पडता हैं।गांव की बेरियों का जीर्णेद्घार सरकारी योजलाओं में किया जाऐ तो ग्रामीणे के समक्ष पेयजल की किललत कुछ हद तक हल हो जाऐंगी।
 इस साल पड़ी भीषण गर्मी के चलते बेरियो का पानी भी रीत गया जिससे परेशानी और  बढ़ गयी ,बेरियो का भी बंटवारा जातिगत आधार पर हो रख हैं ,स्वर्ण जातियों के लिए अलग और अनुसूचित जाति के लिए अलग बेरियां हैं


पेयजल स्रोत पाइप लाइन दुरुस्त कराने के लिए ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और जलदाय विभाग को सेकड़ो स्मरण ज्ञापन और लिखित शिकायतें दी मगर कोई कार्यवाही अम्ल में नहीं ली गयी


जिला प्रशासन  को कई बार लिखित और मौखिक बताया गया मगर किसी प्रकार की मदद नही हुई।गांव की महिला श्रीमति गोमती मेगवाल नें बताया कि मणिहारी गांव की होदी में वाल्व खराब होने के कारण पानी फालतू बह जाहैं ,वाल्व को ठीक कर दे तो हमारे गांव को पानी आपूर्ति हो सकती हें।गडरा रोड कें अधिशाषी अभियंता   नें बताया कि खबउाला में पेयजल की समस्या हैं।पाईप लाईन खराब हैं इसे से जल्द दुरूस्त कर दिया जाऐगा।एक सप्ताह में पानी की समस्या का कुछ हद तक समाधान कर दिया जाऐगा।बहरहाल ग्रामीणों ने रोज के झगडों सें परोान होकर पानी का बंटवाडा तो कर दिया मगर पानी आता ही नही तों बांटे क्या।दो बून्द पानी हलक में उतारनें की ग्रामीणो की तमाम कोशिशी  जिलाप्रशासन कें ढुलमुल  रवैयें कारण बेकार हो रही हैं।

शनिवार, 28 मई 2016

बाड़मेर बून्द बून्द पानी को तरसते सीमावासियों के बीच व्यर्थ बहता हे चौबीस घंटे पानी


बाड़मेर बून्द बून्द पानी को तरसते सीमावासियों के बीच व्यर्थ बहता हे चौबीस घंटे पानी


मिठडाऊ गांव में पानी का दुरूपयोग

सरहद से चन्दन सिंह भाटी


बाड़मेर बाड़मेर में पिछले एक माह से पानी के लिए हां हा कार मचा हे ,शहर की तांग गलियों में थारवासि नल खुलने की उम्मीदें खो चुके हैं ,शहर से बदतर हालत भारत पाक आंतराष्ट्रीय सीमा पर बसे गाँवों का हैं ,जहना एक एक बून्द पानी की सहेजी जाती हैं ,पेयजल समस्या और सरहदवसियो का चोली दामन का साथ जगजाहिर हैं ,इस बार थार में पड़ी भीषण गर्मी ने जिला प्रशासन के माकूल व्यवस्थाओं की सारी पोल खोल के रख दी ,पानी की समस्या से दो चार हो रहे सीमावर्ती गाँवो के बीच एक गाँव हैं मिठडाऊ ,अनुसूचित जाती बाहुल्य यह गाँव अपने हस्तशिल्प उत्पादनो के लिोए काफी मशहूर हैं ,करीं आठ सौ घरों की बस्ती वाले इस गांव में कभी पानी की बड़ी समस्या थी ,मगर पिछले सालो में यहाँ जी एल आर और पानी की होदी बनने के बाद ग्रामीणों और आसपास की ढाणियों को काफी राहत मिल गयी ,इस होदी के आसपास धनि गाँवो से आये पानी भरने वालो की कतारें लगती हैं ,बैलगाड़ी ,गधे ,ओंठो पर पानी की पखाले रख भर कर ले जाते हैं ,










एक ही पाल पर इंसान और जानवर पानी पीते हैं ,इसी होज में ग्रामीणों का पशुधन पानी पीटा हैं ,तो इंसान भी अपने पानी की व्यवस्था इसी होज से पखाले भर कर करते हैं ,जितनी सुविधा इस गांव में पानी की हैं पुरे जिले में और कंही नहीं ,गाँव की सड़के पानी से धोई जाती हैं तो दुकानदार दिन भर दुकानों के आगे पानी का छिड़काव इसी होज के पानी से कर बहुमूल्य पानी को व्यर्थ करते हैं ,चौबीस घटे इस होज में पानी चलता हैं ,चौबीस घंटे यह होज ओवर फ्लो रहता हैं ,ग्रामीण पानी की महत्वता को समझ रहे हैं ,संवाददाता जब इस गांव में पहुंचे तो ग्रामीणों का एक ही प्रश्न था की हमने पानी के लिए अक्सर लड़ाईयां लड़ी एक एक घड़ा भरने में दिन पूरा खप जाता था ,आज पानी दिन भर व्यर्थ बाह रहा हैं हमारा जी जलता हैं ,






जलदाय विभाग का कोई कर्मचारी यहाँ उपस्थित नहीं था ,भारत पाक अंतर्राष्ट्रीय सरहद के पास बसे इस गाँव में सीमा सुरक्षा बल की बी ओ पी स्थापित हैं ,पानी को कोई सहेज नहीं रहा जबकि इन्ही श्रृंखला के गाँवो के लोग बून्द बून्द पानी को तरस रहे हैं ,




चौबीसो घंटे बहते पानी से लाखो गेलंन पानी का दुरूपयोग हो रहा हैं ,अक्सर इस खुले होज में गांव के बच्चे और पशु अठखेलिया करते हैं ,इसी पानी को पीने के काम लिया जाता हैं ,बहरहाल अकाल के हालातो से जूझ रहे बाड़मेर जिले में आमजन को पेयजल समस्या से राहत एक और जिला प्रशासन पानी के टेंकरो से पानी सप्लाई कर रहा हे तो दूसरी एयर ऐसे कई गाँवो में पानी व्यर्थ बाह रहा हैं



बुधवार, 29 मई 2013

राजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित



राजस्‍थान: सरहद पर दो बूंद पानी के लिए तरसते दलित

चन्दन सिंह भाटी



बाडमेर: भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे परंपरागत रूप से अभावग्रस्त राजस्‍थान के बाड़मेर जिले में भीषण गर्मी के साथ-साथ पेयजल संकट से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। अभावों के आदी होने के बावजूद थारवासी इस बार के पेयजलसंकट और भीषण गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे हैं। सरहदी क्षेत्रों में पेयजल संकट किसी सजा से कम नहीं है। विशेषकर, दलित वर्ग के लोगों के लिए।

बाड़मेर जिले के समस्त , गांव अभावग्रस्त घोषित हैं, मगर राज्य सरकार ने अभावग्रस्त जनता को राहत देने के लिए किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए हैं, जिसके चलते दलित परिवारों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया है। दलितों की जिंदगी दो बूंद पानी की तलाश तक सिमट कर रह गई है। पूरा दिन एक घड़ा पानी की तलाश में निकल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दलित परिवारों के लिए पेयजल की अलग से व्यवस्था परंपरागत रूप से है। आज भी सवर्ण जातियां दलित वर्ग के लोगों को अपने साव, तालाबों और टांकों से पानी भरने नहीं देती। अभिशप्त दलित वर्ग दो बूंद पानी के लिये संर्घष कर रहा है। गाँवो में आज भी दलित वर्ग के पेयजल स्रोत गाँव के छोर पर बने हें .दलित वर्ग के लिए गाँवो में टाँके ,बेरिया और कुँए अलग से बने हुए हें .तालाबो पर दलितों को आज भी पानी भरने नहीं दिया जाता

जाति के आधार पर बंटे इन पेयजल स्रोतों का निर्माण सरकार ने भले ही सार्वजनिक तौर पर कराया हो, मगर जमीनी हकीकत यही है कि दलित को सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की इजाजत तथाकथित सभ्य समाज नहीं देता। कहने को जिला प्रशासन द्वारा सभी आठों तहसीलों में पानी के टैंकरों की व्यवस्था कर रखी है, मगर ये पानी के टैंकर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने से पहले गांवों के प्रभावशाली लोगों के हत्थे चढ जाते हैं। सार्वजनिक टांकों में पानी भरे जाने के बजाय प्रभावशाली सवर्ण जाति के निजी टांकों में भरे जाने के कारण दलितों के पेयजल स्रोत खाली ही रहते हैं। ऐसे में दलित परिवार की महिलाओं को आसपास के गांवों में पानी की तलाश में निकलना पडता है।

गांव के सार्वजनिक टांकों पर दलितों को पानी भरने की इजाजत नहीं

गांव-गांव में यही कहानी दोहराई जाने के कारण आज दलितों के पानी के टांके खाली पड़े हैं। जाति के आधार पर बंटे पानी के कारण दलित वर्ग के लोग पलायन को मजबूर हैं। गांवों में बाकायदा सवर्ण जातियों के लिए अलग से टांके बने हैं, तो दलित वर्ग के लिए ‘मेधवालों की बेरी’, ‘भीलों की बेरी’, ‘सांसियों का तला’, ‘मिरासीयों का पार’ नाम से पानी के स्रोत अलग से गांव की सरहदों पर बने हुए हैं। जिले में लगभग 70-80 सरपंच, जिला परिषद सदस्य तथा पंचायत समिति सदस्य और एक विधायक दलित समाज से होने के बावजूद ग्रामीण अंचलों में दलितों का सरेआम शोषण हो रहा है। दो बूंद पानी के लिए दलित वर्ग को बार-बार अपमानित होना पड रहा है।

जाति आधारित बंटवारा महज पानी में ही हो, ऐसा नहीं हैं। हर योजना का बंटवारा जाति आधारित हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा संचालित पेयजल राहत टैंकर चलाने वाले किशनाराम ने बताया, ‘‘हम गरीबों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं, मगर गांव के प्रभावशाली लोग हमें गांव में घुसने पर ‘देख लेने’ की धमकिया देते हैं, जोर-जबरदस्ती कर पानी के टैंकर अपने घरों के टांकों में खाली कराते हैं। हमें गांवों में बार-बार जाना होता है। किस-किस से दुश्‍मनी मोल लें।’’

रूघाराम मेघवाल कहते हैं, ‘राहत के पेयजल टैंकर गरीब और दलितों तक पहुंचने ही नहीं दिए जाते। गांवों में दलितों के टांकों में पानी रीत (रिक्‍त) चुका हैं। पानी खरीदने की हमारी हैसियत नही है। बीस-बीस किलोमीटर परिवार की महिलाएं और बच्चे पैदल चल कर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं। दिन भर की तलाश के बाद एक घड़ा ला पाते हैं। ऐसी स्थिति कब तक चलेगी? जिला प्रशासन को बार-बार सूचित किया, मगर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।


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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

मनरेगा में जल सरंक्षण के नाम करोडो लुटाये नतीजा सिफर

विश्व जल दिवस पर विशेष


मनरेगा में जल सरंक्षण के नाम करोडो लुटाये नतीजा सिफर 


बाड़मेर आज भी पानी के लिए पानी पानी हो रहा


बाड़मेर मीलों तक पसरे रेत के महासमंदर में सदियों से पानी की कमी, भीषण गर्मी और कठिनाइयों से भरे लोक जीवन वाले थार में हाल के वर्षों में जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर सर्वत्र जल संरक्षण और संग्रहण के हुए अथक प्रयासों ने बहुत बड़ा बदलाव का दावा जिला परिषद् द्वारा किया जा रहा हें जबकि वास्तविकता हें की जल सरंक्षण के नाम करोडो रुपये लुटा दिए .बाड़मेर आज भी पानी के लिए पानी पानी हो रहा हें ,


सरहदी जिले बाड़मेर में पेयजल की विकराल समस्या को देखते हुए ही महानरेगा और अन्य योजनाओं में सर्वाधिक काम जल संरक्षण एवं संग्रहण के लिए गए। नरेगा में अब तक करीब तीन लाख टांको का निर्माण बाड़मेर जिले में कराये जाने का दावा किया जा रहा हें जबकि हे की जिला परिषद् द्वारा स्वीकृत इन टांको में आधे भी कम का निर्माण हुआ हें बाकी का उठा लिया मगर टांको का निर्माण हुआ ही नहीं .बाड़मेर जिले में जल सरंक्षण के नाम पर बने इन टांको के लिए जिला प्रशासन ने करोडो रुपये जनप्रतिनिधियों की अनुसंशा पर लुटा दिया मगर आज भी थार वाशिय दो बूँद पानी के लिए तरस , हें बारीकी से टांको के निर्माण की जान्क्स्च निष्पक्ष एजेंसी से कराई जाए तो साड़ी पोल खुल जाए .जिला परिषद् द्वारा जरूरतमंद जनता को टाँके स्वीकृत की बजे उन लोगो को टाँके स्वीकृत किये जिन्हें पूर्व में किसी ना किसी योजना में टांको की स्वीकृति मिली हें ,अधिकाँश मामलो में लोगो ने टांको को नरेगा में बता कर भुगतान उठा लिया .यह कडवी सच्चाई हें ,बाड़मेर आज भी पानी के लिए पानी पानी हो रहा हें ,टांको पर वोटो की टिकी हें यह जनप्रतिनिधि जानते हें ,गत रामसर तहसील के एक छोटे से गाँव में एक साथ सौ तनको की स्वीकृति निकाली हें जबकि इस गाँव में पूर्व वर्ती योजनाओ में कई टांको का निर्माण हो रखा हें ,इसी तरह जिले की आठ पंचायत समितियो में से बायतु ,सिनधरी को टांको की सिक्रितिया जा की गई हें जबकि पानी के लिए तरस रहे शिव ,चौहटन और बाड़मेर को सबसे कम टाँके दिए गए .जिला परिषद् में सुविधा शुल्क देकर मनमर्जी से टाँके स्वीकृत कराये , हें जिन टांको की स्वीकृतिया जारी की हे उनमे कईयों के प्रस्ताव ग्राम द्वारा दिए ही नहीं गए ,नरेगा योजना के साथ बी आर जी ऍफ़ ,सांसद ,विधायक कोष से भी टांको की स्वीकृतिया जा की गई हें ,एक ही परिवार को तीन चार योजनाओ में टांका निर्माण की स्वीकृतिया जारी की गई हें ,बाड़मेर जिले में दो दशक पूर्व शिव पंचायत समिति में टांका निर्माण घोटाला हुआ था जिसमे पचास से अधिक सरकारी कारिंदे , जनप्रतिनिधियों के खिलाफ भरष्टाचार निरोधक विभाग्ग में मामले दर्ज हुए थे जिनकी जांच आज भी चल रही हें .इस घोटाले में प्रभावशाली जनप्रतिनिधि भी शामिल हें .मनरेगा में भी सबसे बड़ा टांका घोटाला हुआ हें जिसकी निष्पक्ष जांच हो जाए तो साड़ी पोल खुल जाए .टांको के आस पास दस दस पोधे लगाये जाने थे जिसकी अलग से राशि का प्रावधान हें मगर वन विभाग के आंकड़े कहते हें की पोधो का उठाव हुआ ही नहीं .विभाग द्वारा जिले में पांच सौ बेरियो के निर्माण का दावा किया जा रहा हें ,मगर हकीकत में बेरियो का निर्माण हुआ हें नहीं क्योको बेरियो का निर्माण किया नहीं जा सकता यह प्राकर्तिक होती , हें .मंरेगा योजना के तहत बाड़मेर जिले को जल सरंक्षण के नाम हें .

रविवार, 24 अप्रैल 2011

बाडमेर पानी पर खिंची तलवारें,पानी का हुआ बंटवारा










पानी पर खिंची तलवारें,पानी का हुआ बंटवारा

बाडमेर भारत पाकिस्तान की सरहद पर बसें सबसे दुर्गम ग्राम पंचायत खबडाला में गत दो सालों से पानी की भारी किल्लत झेलनें के बाद गांव में पानी को लेकर खिंचने वाली तलवारों पर लगाम कसकर ग्रामीणों ने आपसी सहमती बना कर प्रत्येक गांव में पानी का बंटवारा कर अनुकरणीय उदाहरण पो किया।यह अलग बात हैं कि गांव में पानी एक माह में चार बार ही आता हैं।खबडाला गांव के पूर्व सरपंच रतन सिंह सोा नें बताया कि विगत तीन सालों से खबडाला ग्राम पंचायत सहित बंधडा,बचिया,पूंजराज का पार,सगरानी,पिपरली,द्राभा,गारी,मणिहारी सहित 94 गांवों में पेयजल की जबरदस्त किल्लत के चलतें ग्रामीणें के सामने बडी समस्या खडी हो गई।खबडाला गांव में पानी के दो होज सरकारी योजना में बने हुऐ हैं।एक 20 साल पुराना हैं।दूसरा तीन साल पहलें बना जिसे आज तक पाईप लाईन से जोडा ही नही गया।लाखों रूप्यें खर्च कर हौज के पास ही पुओं कें लियें पानी की खेली भी बनाई गई थी।जो आज भी सूखी पडी हैं।पुराने होज में एक माह में महज चार दिन पानी की आपूर्ति होती हैं।आपूर्ति के समय आसपास के गांवों के ग्रामीण भी पानी भरने आते हैं।अतना कम पानी हमारे एक गांव की भी प्यास नहीं बुझा पाता ऐसे में दूसरे गांवों के लोगों को कैसे पानी भरने दे।इसी बात को लेकर गांवों के बीच झगडे भी होने लगे।कई बार तलवारें भी खींची।15 रोज पूर्व पानी भरने को लेकर आपसी संर्धश होनें के कारण गिराब थानें में मुकदमा भी दर्ज हुआ।रोज रोज की परोानी सें निपटने के लिऐं ग्रामीणों नें सर्व सम्मति से ग्राम पंचायत के आठों गांवों की समझौता बैठक बुला कर पानी का बंअवारा करने का निर्णय लिया गया।गांव के ही टीकमारीम मेघवाल नें बताया कि पानी के बंटवारे के तहत दो दो गांवों की बारी तय की कि पानी आपूर्ति के दिन निर्णित गांव के लोग ही पानी भरेंगे। दन्होने बताया कि गावों में पेयजल की आपूर्ति नाम मात्र ही होती हैंगांव में परम्परागत पानी के स्त्रोत बेरिया हैं। जिसके कारण आम आदमी की परूस तों जैसे तैसे बुण जती हैं मगर मवोीयों को पानी कहॉ से पिलाऐंगांव में लगभग एक दजार गायें,30 हजार भेड बकरीयॉ हैं।जिन्हें पीने के लिऐ पानी चाहियें।पाुधन के लिऐ पानी की वयवस्था के लियें 15 किलोमीटर दूर तक के गांवों में जाना पडता हैं।गांव की बेरियों का जीर्णेद्घार सरकारी योजलाओं में किया जाऐ तो ग्रामीणे के समक्ष पेयजल की किललत कुछ हद तक हल हो जाऐंगी।जिला प्रासन को कई बार लिखित और मौखिक बताया गया मगर किसी प्रकार की मदद नही हुई।गांव की महिला श्रीमति गोमती मेगवाल नें बताया ि कमणिहारी गांव की होदी में वाल्व खराब होने के कारण पानी फालतू बह जाहैं ,वाल्व को ठीक कर दे तो हमारे गांव को पानी आपूर्ति हो सकती हें।गडरा रोड कें अधिसी अभियंता सुनिल जोाी नें बताया कि खबउाला में पेयजल की समस्या हैं।पाईप लाईन खराब हैं दसे जल्द दुरूस्त कर दिया जाऐगा।एक सप्ताह में पानी की समस्या का कुछ हद तक समाधान कर दिया जाऐगा।बहरहाल ग्रामीणों ने रोज के झगडों सें परोान होकर पानी का बंटवाडा तो कर दिया मगर पानी आता ही नही तों बांटे क्या।दो बून्द पानी हलक में उतारनें की ग्रामीणो की तमाम कोािश्ों जिला प्रासन कें ुलमुल रवैयें कारण बेकार हो रही हैं।