शनिवार, 22 जुलाई 2017

23 जुलाई को बनेगा रवि-पुष्य का शुभ योग, करें ये काम तिजोरी में रूपए टिकने लगेंगे

23 जुलाई को बनेगा रवि-पुष्य का शुभ योग, करें ये काम तिजोरी में रूपए टिकने लगेंगे
23 जुलाई को बनेगा रवि-पुष्य का शुभ योग, करें ये काम तिजोरी में रूपए टिकने लगेंगे

पुष्य नक्षत्र के देवता गुरु बृहस्पति हैं जो ज्ञान-विज्ञान तथा नीति निर्धारण में अग्रणी बनाते हैं। यह नक्षत्र शनि दशा को दर्शाता है। शनि स्थिरता का सूचक है इस कारण पुष्य नक्षत्र में किए गए सभी कार्य स्थायी होते हैं। इन सभी गुणों के साथ-साथ पुष्य नक्षत्र का योग सभी प्रकार के दोषों का हरण करने वाला और शुभ फलदायक माना गया है। अगर पुष्य नक्षत्र पाप ग्रह से युक्त हो या ग्रहों से बाधित हो, तारा चक्र के अनुसार प्रतिकूलता लिए हो तो भी विवाह छोड़ कर शेष सभी कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। 23 जुलाई, रविवार को पुष्य नक्षत्र होने से रवि पुष्य का योग बनेगा। इसका शुभ समय रविवार को प्रात: 9 बजे आरंभ होगा, जो सोमवार सवेरे लगभग 7 बजे तक रहेगा। सावन का महीना और हरियाली अमावस्या होने से इस योग में किए गए उपाय सोने पर सुहागे का काम करेंगे।




धन जिस तेजी से आता है उसी तेजी से खर्च भी हो जाता है तो आय में वृद्धि के लिए शुभ गुरु पुष्य या रवि पुष्य योग में बाजोट या पीला वस्त्र बिछाकर विष्णु यंत्र स्थापित करें। धूप-दीप, नैवेद्य सहित पश्चिम की ओर आसन कर बैठें तथा एकाग्रचित्त से स्फटिक माला से तीन माला निम्र मंत्र जाप करें। आसन शुद्ध व मन प्रसन्नचित्त होना चाहिए।




धन लाभ के लिए भगवान शिव पर 11 या 21 बिल्व पत्र अर्पित करें।




घर अथवा दुकान के मंदिर में लक्ष्मी यंत्र की स्थापना करने से तिजोरी में रूपए टिकने लगेंगे।




लक्ष्मी मंदिर में कमल गट्टे की और शिव मंदिर में रूद्राक्ष की माला चढ़ाएं।




पानी में काले तिल डालकर शिवलिंग पर अभिषेक करें। पितर तृप्त होंगे।




रविवार को चांदी का सिक्का खरीदकर, उस पर कुंकुम लगाकर अपने धन स्थान पर रखें। ऐसा करने से शीघ्र ही धन लाभ के योग बनने लगेंगे।




मंत्र कामनापूर्ति का श्रेष्ठ साधन हैं। शिव मंदिर में पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किया गया मंत्र जाप धन, वैभव व ऐश्वर्य की कामना को पूरी करता है। रूद्राक्ष की माला लेकर अपनी इच्छा अनुसार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।




ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

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