रविवार, 11 दिसंबर 2016

भीनमाल । ये खतरे को उड़ा रहे धुएं में, रोज होता इनका मौत से सामना



भीनमाल । ये खतरे को उड़ा रहे धुएं में, रोज होता इनका मौत से सामना

पेट्रोल पंपों पर नहीं जांचे जा रहे प्रदूषण मुक्त प्रमाण पत्र,
वायु प्रदूषण बन सकता है फेंफड़ों के कैंसर का कारण


-- माणकमल भण्डारी ---
भीनमाल । वाहनों से निकलने वाला धुआं अन्य रोगों के साथ फेंफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण बन सकता है। नियमानुसार पेट्रोल पंप संचालकों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) वाहनों को प्रदूषण मुक्त प्रमाण-पत्र लगा होने पर ही डीजल-पेट्रोल देने के निर्देश जारी कर चुका है। इसके बावजूद पेट्रोल पंप संचालक प्रदूषण प्रमाण-पत्र जांचे बगैर धड़ल्ले से वाहनों में पेट्रोलियम ईंधन दे रहे हैं।

वाहनों का धुआं हानिकारक
भीड़ भरे माहौल में ट्रैफिक जाम की स्थिति में कई घंटों तक फंसे रहने के दौरान वाहनों का धुआं वायुमंडल में मिलकर सांस के जरिए आपके फेंफड़ों में जम जाता है। इससे कैंसर जैसी जान-लेवा बीमारी का खतरा बढ़ रहा है। अचरज की बात यह है कि पेट्रोल पंप संचालक पेट्रोलियम कंपनी के निर्देशों की परवाह नहीं कर रहे।


'व्यावहारिक रूप से संभव नहीं
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नई दिल्ली ने एक प्रकरण में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के वरिष्ठ मंडल खुदरा बिक्री प्रबंधक ने आदेश जारी किए थे। इसके अनुसार पेट्रोल पंप पर किसी एेसे वाहन को ईंधन नहीं दिया जाए जिसके पास प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र प्रदर्शित या उपस्थित नहीं है। दूसरी ओर पेट्रोल पंप संचालकों का कहना है कि उनके पास शक्तियां नहीं है कि जिससे ग्राहक को पेट्रोल देने से इन्कार नहीं कर सकते। इन्कार करने पर कानून व्यवस्था कौन संभालेगा।


व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है
इस संबंध में वकील पाराशर का कहना है कि कानूनी रूप से इस नियम की पालना के लिए पाबंदी के लिए जाब्ता लगाए व वाहनों को भी जब्त करने के लिए यातायात व परिवहन विभाग संयुक्त कार्रवाई अमल में लाए तभी इस नियम की पालना संभव है। वाहनों से निकलने वाले धुएं से हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती हैं। नाइट्रोजन सूर्य के प्रकाश में मिलकर ओजोन में परिवर्तित हो जाती है, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। दम घुटने जैसा एहसास होता है। इनसे निकलने वाला धुएं से सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड फेंफड़ों के एल्बुलाई में फंस जाते हैं, जिससे फेंफड़ों के सिकुडऩे-फैलने की क्षमता कम होती जाती है जो बाद में कैंसर का कारण बनती है।




- पर्यावरणविद्

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