शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

बाड़मेर।बाटाडू के ऐतिहासिक कुऐं को संरक्षण की दरकार



बाड़मेर।बाटाडू के ऐतिहासिक कुऐं को संरक्षण की दरकार

रिपोर्टर @ जगदीश सैन पनावड़ा/ओमप्रकाश मूढ़
-कभी प्यास बुझाता था,आज दुर्दशा का शिकार,
-राजस्थान के जलमहल के नाम से जाना जाने वाला बाटाडू का कुआँ दुर्दशा का शिकार,
-स्थानीय विधायक कैलाश चौधरी ने चुनावों में किया था जीर्णोद्वार का वादा
बाड़मेर। जिले के बायतु तहसील की ग्राम पंचायत बाटाडू जो कि जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर तथा उपखण्ड मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थित एक ऐसा जलमहल जो एक समय क्षेत्र के लोगों की प्यास बुझाने का एक साधन हुआ करता था वो कुआँ आज खुद दुर्दशा के आसू बहा रहा है।आसपास के गांवों की कई दशक तक जलापूर्ति का मुख्य स्त्रोत बाटाडू का कुआँ रहा है जो इस समय कचरा पात्र बनकर रह गया है।

-यदि इसकी देखरेख हो तो जलसंकट के दौरान काफी राहत मिल सकती है।
सन् 1947 के काल में मारवाड़ क्षेत्र में भंयकर अकाल पड़ा। जिस दौरान यहाँ के लोग रोजी रोटी की तलाश में बाहर जाने के लिए मजबूर हुए और दूर दूर तक कहीं पीने का पानी उपलब्ध नहीं था।उस संकट की घड़ी में यह कुआँ लोगों का प्राण बचाता था।इस कुऐं का निर्माण रावल गुलाबसिंह ने करवाया था।
जब इस क्षेत्र के लोग जल संकट से जूझ रहे थे।उस समय यह कुआँ इस क्षेत्र की जीवन रेखा हुआ करता था।इससे आसपास के करीब दो दर्जन से अधिक गाँवों में जलापूर्ति होती थी।वक्त के थपेड़े सहती हुई संगमरमर से बनी यह विरासत अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।जलापूर्ति बंद होने के बाद सुरक्षा के मध्य नजर तत्कालीन सरपंच ने सन् 2000 में चारदीवारी का निर्माण तो करवा दिया। मगर इसके बाद इसकी किसी ने सुध नहीं ली। कुऐं की चारदीवारी में आसपास के लोगों द्वारा घरों का कचरा दाल रहे है।
कभी स्वच्छ पानी से भरा रहने वाला यह कुआँ उपेक्षा के चलते केवल कचरा पात्र बनकर रह गया है।सन् 1947 के समय आसपास के 30-40 किलोमीटर परिधि में यह एक मात्र कुआं होने के कारण एक दर्जन से भी अधिक गाँवों बाटाडू, लुनाड़ा, खिम्पसर, झाख, मौखाब,उण्डू, काश्मीर, पौशाल, भीमड़ा, कोलू, कवास, छितर का पार, कानोड़, सवाऊ सहित कई गाँवों के लोगों के प्यास बुझाने का एक मात्र यही साधन था।

-ऊपर से खुला होने से बना हादसे का सबब....
इस कुऐं से ऊपर से पानी निकालने के कारण खुला है जिससे कई जीव-जन्तु अंदर गिर जाते है।कई बार बकरियाँ और अन्य पशु इस कुऐं में गिर जाते है।जिससे उनकी मौत हो जाती है।इसलिए ऊपर से खुला होने से कभी बड़ा हादसा घटित हो सकता है।

-संरक्षण को तरसता कुआँ.....
ऐतिहासिक धरोहर जो आज पुरातत्व विभाग एवम पौराणिक व प्रशासनिक विभाग की उदासीनता के चलते अपनी दुर्दशा पर आसूँ बहा रही है।अगर समय रहते विशाल ऐतिहासिक संगमरमर के कुऐं की देखरेख व मरम्मत कार्य नहीं किया गया तो यह धरोहर महज कागजों की शोभा बनकर रह जायेगी।स्थानीय विधायक कैलाश चौधरी ने धरोहर के जीर्णोद्वार के लिए जरूर आश्वासन दिये।मगर आजतक जीर्णोद्वार का कार्य नहीं हुआ।कई बार विभागीय अधिकारियों को अवगत करवाने के बावजूद आज तक किसी ने इस कुऐं की सुध नहीं ली है।

-विधायक ने किया था वादा....
विधानसभा चुनावों में बायतू विधायक कैलाश चौधरी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि अगर राज्य में बीजेपी की सरकार आई तो बाटाडू के कुऐं का जीर्णोद्वार किया जायेगा।परन्तु आजतक इसकी सुध नहीं ली गई है।

-कुऐं की जल प्रबन्धता.....
इस कुऐं की लम्बाई 60 फिट, चौड़ाई 35 फिट तथा ऊँचाई 6 फिट व कुऐं की गहराई 80 फिट है। कुऐं की उत्तर दिशा में एक बड़ा कुण्ड बना है जिसकी गहराई 5 फिट है। इस कुण्ड के बिच में एक मकराना निर्मित पत्थर के स्टैंड के ऊपर संगमरमर की गुरुड़ प्रतिमा बनी है जो इस कुऐं की आकर्षक का केंद्र है। इस कुऐं पर जाने के लिए कुऐं के मुख्य द्वार तथा एक निकासी द्वार है। इस दोनों द्वार पर दो सिंह प्रतिमाएं लगी हुई है।ओर इसके चारों ओर श्लोकों के साथ ही कई राजा-महाराजाओं और देवी-देवताओं की कला का वर्णन किया गया है।

-आस्था का स्थल बाटाडू का कुआँ....
यह संगमरमर के इस कुऐं पर हिन्दू धर्म के कई देवी-देवताओं की कला उकेरी हुई है।आज यह एक मात्र दर्शनीय स्थल ही नहीं बल्कि आस्था का स्थल बन चूका है।यहां प्रत्येक सोमवार को पूजा-अर्चना की जाती है।श्रावण मास के पहले सोमवार को विशाल मेला लगता है।

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