बुधवार, 29 जून 2016

बाड़मेर.पड़ोसी भी नहीं जानते कि चतरसिंह ने निशानेबाजी में 42 मेडल जीते



बाड़मेर.पड़ोसी भी नहीं जानते कि चतरसिंह ने निशानेबाजी में 42 मेडल जीते
पड़ोसी भी नहीं जानते कि चतरसिंह ने निशानेबाजी में 42 मेडल जीते

बाड़मेर-जैसलमेर जिले की सीमा पर बसा कोहरा गांव। अधिकृत तौर पर जैसलमेर जिले में आने वाला कोहरा गांव भौगोलिक रूप से इस कदर कोने में आया हुआ है कि जैसे अपने नाम को ही सार्थक कर रहा है। इस कोहरा गांव में वर्षों से कोहरे में घिरा एक नाम है चतरसिंह राठौड़, जिन्हें गुमनाम शख्सियत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सत्तर व अस्सी के दशक में इस शख्स की राइफल से निकली गोलियों ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 42 मेडल पर निशाना साधा।




यदि भाग्य ने साथ दिया होता तो यह अनपढ़ शख्स अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज करणीसिंह के बाद ओलिम्पिक खेलने वाला राजस्थान का दूसरा निशानेबाज बन जाता, लेकिन एेसा हो न सका। फिर भी जो उपलिब्धयां इस शख्स के खाते में हैं, वह गुमनाम रहने लायक तो कत्तई नहीं। लेकिन हकीकत यह है कि उनकी इन उपलब्धियों के बारे में उनके पड़ोसी तक ठीक से नहीं जानते।

प्रतिभा के धनी चतरसिंह

सीमा सुरक्षा बल के गठन के साथ ही अनपढ़ चतरसिंह राठौड़ को बीएसएफ में भर्ती होने का मौका मिल गया। वर्ष 1966 में बीएसएफ में भर्ती होने से पहले उन्होंने हथियार को हाथ भी नहीं लगाया। लेकिन बीएसएफ के इन्दौर स्थित टे्रनिंग सेण्टर में जैसे ही हथियार उनके हाथ में आया, वैसे ही उनकी कुदरती प्रतिभा खुलकर सामने आ गई।




ट्रेनिंग में वह अपने बैच के बेस्ट निशानेबाज बनकर उभरे। बीएसएफ ने उनकी निशानेबाजी की प्रतिभा को पहचाना। 22 राइफल व फुल बोर राइफल में उनकी महारत को देखते हुए उन्हें इसका विशेष अभ्यास करवाया गया। महज दो वर्ष के भीतर ही उन्हें नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इण्डिया की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला।




वर्ष 1971 में राठौड़ ने 22 राइफल 75 मीटर डिस्टेंस व फुल बोर राइफल 300 मीटर डिस्टेंस में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह सिलसिला वर्ष 1984 तक चलता रहा। इस दरम्यान उन्होंने देश के विभिन्न शहरों में आयोजित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में कुल 42 मेडल जीते। 1980 के मास्को ओलम्पिक में क्वालीफाई करने का मौका भी उनके हाथ आया, लेकिन वह चूक गए।

सेवानिवृत्ति के बाद खेती

कुदरती प्रतिभा का धनी यह निशानेबाज वर्ष 1995 में बीएसएफ में हवलदार के पद से सेवानिवृत्त हो गया और गांव में बसे-बसाए परिवार के साथ नई जिन्दगी एक किसान के रूप में शुरू कर दी। निशानेबाजी में मिले मेडल व सर्टिफिकेट एक बक्से में डालकर रख दिए। बीते बीस वर्ष से चतरसिंह गांव में ही खेती कर रहे हैं।

अरे साहब! इतने सारे मेडल

भारतीय खाद्य निगम बाड़मेर में पदस्थापित रहीमखां छीपा कोहरा गांव के निवासी हैं। आखातीज पर वह गांव गए तो उन्हें पता चला कि चतरसिंह का पांव फ्रेक्चर हो गया है। छीपा उन्हें देखने चले गए। किसी कारणवश मेडल से भरा वह संदूक छीपा के सामने खुला तो उन्होंने पूछ लिया कि यह क्या है? चतरसिंह ने जवाब दिया कि ये पुरानी यादें हैं, लेकिन अब किसी काम की नहीं।




चतरसिंह ने को बताया कि अब मैं भी यह चाहता हूं कि कोई मुझसे भी निशानेबाजी का हुनर सीखे। हालांकि यह कैसे होगा, कोई नहीं जानता।

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