मंगलवार, 31 मई 2016

foto बाड़मेर दलितों के साथ पानी में भेदभाव की लकीरें कायम ,दलित को दो बूंद पानी भी नसीब नहीं










बाड़मेर दलितों के साथ पानी में भेदभाव की लकीरें कायम ,दलित को दो बूंद पानी भी नसीब नहीं



चन्दन सिंह भाटी
बाड़मेर भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे परंपरागत रूप से अभावग्रस्त राजस्‍थान के बाड़मेर जिले में भीषण गर्मी के साथ-साथ पेयजल संकट से आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। अभावों के आदी होने के बावजूद थारवासी इस बार के पेयजल संकट और भीषण गर्मी को सहन नहीं कर पा रहे हैं। सरहदी क्षेत्रों में पेयजल संकट किसी सजा से कम नहीं है। विशेषकर, दलित वर्ग के लोगों के लिए।

बाड़मेर जिले के समस्त 1354 गांव अभावग्रस्त घोषित हैं, मगर राज्य सरकार ने अभावग्रस्त जनता को राहत देने के लिए किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए हैं, जिसके चलते दलित परिवारों के सामने जीवन का संकट पैदा हो गया है। दलितों की जिंदगी दो बूंद पानी की तलाश तक सिमट कर रह गई है। पूरा दिन एक घड़ा पानी की तलाश में निकल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में दलित परिवारों के लिए पेयजल की अलग से व्यवस्था परंपरागत रूप से है। आज भी सवर्ण जातियां दलित वर्ग के लोगों को अपने साव, तालाबों और टांकों से पानी भरने नहीं देती। अभिशप्त दलित वर्ग दो बूंद पानी के लिये संर्घष कर रहा है। गाँवों में आज भी दलित वर्ग के पेयजल स्रोत गाँव के छोर पर बने हैं. दलित वर्ग के लिए गाँवो में टाँके, बेरिया और कुँए अलग से बने हुए हैं। तालाबों पर दलितों को आज भी पानी भरने नहीं दिया जाता।







हालाँकि जिलाकलेक्टर सुधीर शर्मा ने दो रोज पूर्व अभावग्रस्त कमीशंड 1130 एवं नान कमीशंड 224 स्थानाें पर टैंकरों के जरिए जलापूर्ति करने की स्वीकृति प्रदान की है। बाड़मेर जिले में जिला कलक्टर सुधीर शर्मा ने बाड़मेर के 191, बायतू में 333, चौहटन एवं सेड़वा में 110, शिव में 11, गुड़ामालानी 105,धोरीमन्ना 10, सिणधरी 63, सिवाना 101, बालोतरा 171 एवं बालोतरा शहर के 35 अभावग्रस्त कमीशंड स्थानों पर टैंकरों के जरिए आगामी एक माह तक पेयजल परिवहन करने की स्वीकृति जारी की है। इसी तरह अभावग्रस्त नान कमीशंड बायतू के 142 एवं सिणधरी के 76 स्थानों पर जलापूर्ति के लिए स्वीकृति जारी की गई है,मगर यह स्वीकृति जारी करने में बहुत देर कर दी ,कहने को जी पी एस सिस्टम टेंकरो में लागु करने की बात जिला प्रशासन कह रहा हैं मगर जिला प्रशासन के टेंकर भंगार पड़े हैं ,ठेकेदार आ नहीं रहे ,सप्लाय कैसे होगी यह समझ से बाहर हैं




जाति के आधार पर बंटे इन पेयजल स्रोतों का निर्माण सरकार ने भले ही सार्वजनिक तौर पर कराया हो, मगर जमीनी हकीकत यही है कि दलित को सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की इजाजत तथाकथित सभ्य समाज नहीं देता। कहने को जिला प्रशासन द्वारा सभी आठों तहसीलों में पानी के टैंकरों की व्यवस्था कर रखी है, मगर ये पानी के टैंकर जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने से पहले गांवों के प्रभावशाली लोगों के हत्थे चढ जाते हैं। सार्वजनिक टांकों में पानी भरे जाने के बजाय प्रभावशाली सवर्ण जाति के निजी टांकों में भरे जाने के कारण दलितों के पेयजल स्रोत खाली ही रहते हैं। ऐसे में दलित परिवार की महिलाओं को आसपास के गांवों में पानी की तलाश में निकलना पडता है।




गांव के सार्वजनिक टांकों पर दलितों को पानी भरने की इजाजत नहीं

गांव-गांव में यही कहानी दोहराई जाने के कारण आज दलितों के पानी के टांके खाली पड़े हैं। जाति के आधार पर बंटे पानी के कारण दलित वर्ग के लोग पलायन को मजबूर हैं। गांवों में बाकायदा सवर्ण जातियों के लिए अलग से टांके बने हैं, तो दलित वर्ग के लिए ‘मेधवालों की बेरी’, ‘भीलों की बेरी’, ‘सांसियों का तला’, ‘मिरासीयों का पार’ नाम से पानी के स्रोत अलग से गांव की सरहदों पर बने हुए हैं। जिले में लगभग 70-80 सरपंच, जिला परिषद सदस्य तथा पंचायत समिति सदस्य और एक विधायक दलित समाज से होने के बावजूद ग्रामीण अंचलों में दलितों का सरेआम शोषण हो रहा है। दो बूंद पानी के लिए दलित वर्ग को बार-बार अपमानित होना पड रहा है।




जाति आधारित बंटवारा महज पानी में ही हो, ऐसा नहीं हैं। हर योजना का बंटवारा जाति आधारित हो रहा है। जिला प्रशासन द्वारा संचालित पेयजल राहत टैंकर चलाने वाले किशनाराम ने बताया, ‘‘हम गरीबों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं, मगर गांव के प्रभावशाली लोग हमें गांव में घुसने पर ‘देख लेने’ की धमकिया देते हैं, जोर-जबरदस्ती कर पानी के टैंकर अपने घरों के टांकों में खाली कराते हैं। हमें गांवों में बार-बार जाना होता है। किस-किस से दुश्‍मनी मोल लें।’’




रूघाराम मेघवाल कहते हैं, ‘राहत के पेयजल टैंकर गरीब और दलितों तक पहुंचने ही नहीं दिए जाते। गांवों में दलितों के टांकों में पानी रीत (रिक्‍त) चुका हैं। पानी खरीदने की हमारी हैसियत नही है। बीस-बीस किलोमीटर परिवार की महिलाएं और बच्चे पैदल चल कर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं। दिन भर की तलाश के बाद एक घड़ा ला पाते हैं। ऐसी स्थिति कब तक चलेगी? जिला प्रशासन को बार-बार सूचित किया, मगर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।

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