सोमवार, 11 मई 2015

यहां भजन-साधन करने से मिलती है कृष्ण-प्रेम की सिद्घि



श्री नवद्वीप धाम की परिधि सोलह कोस है। इसका आकार अष्टदल कमल की तरह है। सीमन्त द्वीप, गोद्रुम द्वीप, मध्यद्वीप, कोल द्वीप ऋतु द्वीप, जह्र द्वीप, मोदद्रुम द्वीप और रूद्र द्वीप। ये आठ द्वीप कमल के अष्टदल हैं। इन सब के मध्य में स्थित अंतर्द्वीव कमल की कर्णिका है। इस अंतर्द्वीव के बीचाें बीच श्रीमायापुर स्थित है। नवद्वीप धाम में विशेषत: मायापुर में भजन-साधन करने से अत्यन्त शीघ्र ही कृष्ण-प्रेम की सिद्घि हाे जाती है। मायापुर के मध्य भाग में महा याेगपीठ रूप श्रीजगन्नाथ मिश्र जी का भवन (मंदिर) है। साैभाग्यशाली जीव इसी याेगपीठ में श्रीगाैराडगंदेव की नित्यलीला का दर्शन करते हैं।





श्रीनवद्वीप धाम अाैर श्रीवृन्दावन धाम दाेनाें अभिन्न तत्त्व हैं। इस नवद्वीप धाम में मायापुर सर्वाेपरि तत्त्व है। ब्रज में जाे स्थान गाेकुल का है श्रीनवद्वीप में वही स्थान श्रीमायापुर का है। मायापुर श्रीनवद्वीप धाम की महायाेग पीठ है।



श्रीमद् भागवत् पुराण (7-9-78) श्लाेक "छन्न: कलाै" के अनुसार कलिकाल के पूर्ण अवतार जैसे प्रच्छन्न अर्थात् छिपे हुए हाेते हैं उसी प्रकार उनका धाम भी प्रच्छन्न धाम है। कलियुग नवधाम के समान काेई तीर्थ नहीं है। जाे इस धाम की चिन्मयता प्राप्त कर लेता है, वही व्यक्ति ब्रज-रस का यथार्थ अधिकारी है। ब्रज ही कहिए या नवद्वीप ही कहिए, बहिमुखि दृष्टि से दाेनाें ही प्रपंचमय नजर आंएगे। साैभाग्य से जिनके चिन्मय करने में समर्थ हाेते हैं।

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