शुक्रवार, 15 मई 2015

कुरुक्षेत्र में हुआ था ये पाप, इसलिए कृष्ण ने यहां किया युद्ध का आगाज



क्या किसी स्थान का प्रभाव मनुष्य के मन पर होता है? आध्यात्मिक ग्रंथों का मानना है कि ऐसा होता है। अगर मनुष्य मंदिर में जाता है तो उसका शीश सहज ही भगवान के सामने झुक जाता है। स्थान का वातावरण कहीं न कहीं उसे प्रभावित जरूर करता है।

माना जाता है कि एक घटना के बाद श्रीकृष्ण ने निर्णय लिया था कि कुरुक्षेत्र को ही युद्धभूमि बनाना है। यही वह स्थान था जिसे उन्होंने युद्ध जैसी घटना के लिए सबसे उपयुक्त माना।

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जब महाभारत का बिगुल बजने वाला था तो श्रीकृष्ण ऐसे स्थान की तलाश कर रहे थे जहां इस जंग का आगाज किया जा सके। उन्होंने कई दूत विभिन्न स्थानों की ओर भेजे ताकि वे भी कोई स्थान ढूंढ सकें।

तब एक दूत कुरुक्षेत्र पहुंचा। वहां उसने देखा कि दो भाई खेत में काम कर रहे हैं। बड़े भाई ने छोटे भाई को कहा कि वह मेड़ से बहते हुए बारिश के पानी को रोके, लेकिन उसने बड़े भाई को मना कर दिया। उसने कहा, मुझे हुक्म देते हो, तुम ही क्यों नहीं कर लेते?

यह सुनकर बड़े भाई को गुस्सा आ गया। उसने चाकू से छोटे भाई की हत्या कर दी और उसकी लाश को मेड़ के पास घसीटकर ले गया।

इतना निंदनीय कार्य करने के बाद भी उसे कोई पश्चाताप नहीं था। जब कृष्ण ने इस घटना के बारे में सुना तो वे बोले, जिस स्थान पर भाई अपने भाई का सम्मान न करे, एक-दूसरे को मारें और मारकर पश्चाताप भी न हो। ऐसे स्थान पर भला प्रेम, नीति, विनम्रता जैसे शुभ गुण कैसे रह सकते हैं?

आखिरकार कुरुक्षेत्र को ही युद्ध के लिए चुना गया, जहां एक भाई ने दूसरे भाई का और अपने प्रियजनों का रक्त बहाया।

श्रीकृष्ण के इस कथन से हमें सीखना चाहिए कि जहां विनम्रता, आदर, प्रेम और परोपकार हैं वहीं स्वर्ग है। जहां ये शुभ गुण हैं वहीं रहना सुखप्रद है। जहां ये गुण नहीं हैं वहां युद्ध और विनाश होता है। अतः हमें इन गुणों को अपने घर, समाज और राष्ट्र में स्थान देना चाहिए।

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