शनिवार, 16 मई 2015

वीर कुंवर प्रताप सिंह बारहट। क्रन्तिकारी।

वीर कुंवर प्रताप सिंह बारहट। क्रन्तिकारी। 

मेवाड़ के मुकुटमणी महाराणा प्रताप के जन्म के ठीक ३५३ साल बाद खुनी गौरांगश ही के राज्य में ठा . केसरी सिंह बारहठ के पुत्र वीर कुंवर प्रताप ने वीरभूमि मेवाड़ की क्रांतिकारी धरती ( उदयपुर में जड़ीयों की ओल के पास घाणेराव घाटी) में माता माणिक कंवर की कोख से जन्म लेकर भारतमाता की परतन्त्रता की बेड़ीयां तोड़ने के वास्ते आत्मोत्सर्ग व बलिदान का जो महान आदर्श प्रस्तुत किया वह भारतीय क्रान्तिकारी इतिहास का एक दीप्तिमान स्वर्ण प्रष्ठ है।




प्रताप की प्रारम्भिक शिक्षा कोटा में हुई, बाद में दयानन्द एंग्लो वैदिक स्कुल अजमेर में मेट्रीक तक पढ़े पर परीक्षा में नहीं बैठे। कारण, आपको देशभक्ति की अग्निपरीक्षा में पास होना था।




१५ वर्ष की आयु में स्वतन्त्र शिक्षण के लिए देशभक्त श्री अर्जुनलाल सेठी के पास भेज दिया गया। फिर प्रताप को अपने बहनोई ईश्वरदान आशिया के साथ वहां से प्रशिद्ध देशभक्त मास्टर अमीचन्द जी के यहां क्रान्तिकारीयों की शिक्षा दीक्षा के लिए दिल्ली भेज दिए गए।




राजस्थान के क्रान्तीकारी व गांधीवादी नेता रामनारायण चौधरी ने लिखा है -” सच तो यह है कि महात्मा गांधी को छोड़ कर ओर किसी पर भी मेरी इतनी श्रद्धा नहीं हुई जितनी कुं प्रताप सिंह बारहठ पर। वे जहां रहते सारा वातावरण सरलता, प्रेम, ओर पवित्रता से भर देते थे।”




अमीचन्द जी के पकड़े जाने के बाद सेठी जी इन दोनों को वापस ले आए। अपने पिता के पकड़े जाने के एक सप्ताह पहले ये वापस अग्यातवासी हो गए। पिता पर मुकदमा चला, झुठ छल कपट से चलाए मुकदमें मे पिता की द्रढ़ता और धैर्य देखकर प्रताप ओर गौरव से भर रहे थे।




देशभक्ति की आग से धधकते हुए ह्रदयकुण्ड में पाशविक सत्ता के मदान्द प्राणी अत्याचारों का पेट्रोल उंड़ेल रहे थे।




बन्धन में पड़े हुए पिता को प्रताप नें सन्देश भेजा ” दाता कुछ विचार न करें, अभी प्रताप जिन्दा है।”




एक दिन प्रताप नें मां से कहा ” भाभा , धोती फट गई , कहीं से तीन रूपये का प्रबन्ध कर दो तो धोती लाऊं, आज ही चाहिए।”




माता के हाथ तो सर्वदा खाली थे पर कोशीश करने पर दो रूपए मिले और पुत्र को दे दिए . प्रताप का यही माता का अन्तिम पाथेय था | कोटा से इधर उधर भ्रमण करते हुए सिन्ध हैदराबाद गए।




वहां से पुनः जोधपुर आने का निर्देश मिला , पर आशानाड़ा में पकड़े गए। उनके साथ में उनका प्रिय साथी गणेशदान था , प्रताप के पकड़े जाने के गम से इतनी चोट लगी की छिपते टकराते वीर गति को प्राप्त हो गए।




शचीन्द्रनाथ सान्याल ने बंदि जीवन में लिखा “जेल में लगातार प्रताप को यातनाएं दि जा रही थी, मगर एक दिन तीन चार घण्टे पुलिस के साथ प्रताप की बातें हुई. हम पास की कोठरी मे सोचने लगे कि अब शायद प्रताप कि हिम्मत जवाब दे रही हे , सम्भव हो कल प्रताप सब भेद बता दे …..




किन्तु अगले दिन प्रताप ने कहा ” देखिए मेंने बहुत सोचा , देखा , अन्त में तय किया है कि कोई बात नहिं खोलुंगा, अभी तक तो केवल मेरी ही मां कष्ट पा रही है किन्तु यदि मैं सब गुप्त बातें प्रकट कर दुं तो और भी कितनी माताएं कष्ट पाएगीं . मेरी एक माता को हंसाने के लिए मे हजारो माताओं को नहीं रूला सकता।”




मन के एक बार फिसल पड़ने पर उसे फिर अपनी जगह लौटा लाना असम्भव सा होता हे ये समझ कर देखो। एसे ही सपुतों की कुर्बानीयों से मां की पराधीनता की शताब्दियों पुरानी बेढ़ीयां कटी है।




प्रताप को पांच साल की कठोर सजा दी गई ओर बरेली जेल मे अमानवीय यातना का दौर शुरू हो गया .उन दिनो जेल की बर्बरता व क्रान्तिकारीयों को दी जाने वाली यातनाओं को सुन कर ह्रदय सिहर उठता है. दण्ड व यातना सहते सहते प्राणों का दीपक क्षीण होने लगा।




सरकार नहीं चाहती थी कि क्रान्ति की यह सूक्ष्म चिनगारी बाहर निकले ,बैशाखी पुर्णीमा व 24 मई 1918 को पच्चीस वर्ष कि आयु में प्रताप शहीद हो गए। बरेली की जनता नें सरकार से लाश देने की मांग की थी, मगर बलवा हो जाने के भय से, व बर्बर यातनाओं से शहीद होने का पर्दाफाश न हो जाए, इस भय से प्रताप को जेल में हि दफना दिया गया।




आज विभिन्न क्षेत्रो में अलग अलग ग्रुप कविसम्मेलन, पुष्पांजली व रक्तदान का आयोजन करवा कर अपनी विनम्र श्रद्धांजली द्वारा ईस वीर सपुत की यादें जन मानस में ताजा करने को प्रयासरत हे। ताकी फिर कोई प्रताप जैसा अग्निधर्मायुवक इस धरा पर पुनः आए।




मुझे पुर्ण आशा हे कि आप सब इस पवित्र अवसर पर पधार कर उस वीर सपुत को नमन करेंगे।




लेख

भीखदान चारण, बालोतरा द्वारा

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