अगर कभी मित्रता का उदाहरण दिया जाता है तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा का जिक्र जरूर होता है। कृष्ण, एक ऐसे मित्र जिन्होंने अपने परम मित्र को कुछ मांगे बिना ही सबकुछ दे दिया, उसकी सभी समस्याओं का निवारण कर दिया।
वे जानते थे कि कुछ मांगने से सुदामा का स्वाभिमान आहत होगा। अतः उन्होंने अपने मित्र को हाथ फैलाने का मौका ही नहीं दिया और खुद चावल का भोग लगाकर उसे शक्ति व ऐश्वर्य का स्वामी बना दिया।
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यूं तो भगवान कृष्ण और उनकी अद्भुत लीलाओं को समर्पित अनेक मंदिर हैं लेकिन मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर से कुछ ही दूरी स्थित एक मंदिर कृष्ण-सुदामा की मित्रता की मिसाल है। इस मंदिर का नाम है - नारायण धाम।
स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर का संबंध कृष्ण और सुदामा के जीवन से जुड़ी एक महान घटना से है। जब श्रीकृष्ण अपने गुरु सांदीपनी के आश्रम में विद्या अध्ययन करते थे तो एक दिन उनकी गुरु माता ने उन्हें वन से लकड़ियां लाने के लिए कहा।
कृष्ण और सुदामा वन में गए। वहां बारिश शुरू होने पर कृष्ण और सुदामा पेड़ के नीचे रुके थे। कहते हैं कि नारायण धाम ही वह स्थान है जहां कृष्ण-सुदामा रुके थे। यहां काफी हरेभरे पेड़ हैं और लोगों का मानना है कि ये पेड़ उन लकड़ियों से उत्पन्न हुए हैं जो कृष्ण-सुदामा ने इकट्ठी की थीं।
नारायण धाम मंदिर इस दृष्टि से भी अनोखा है क्योंकि यहां भगवान कृष्ण की अपने मित्र सुदामा के साथ पूजा की जाती है।
यहां कृष्ण की प्रतिमा के साथ ही सुदामा की प्रतिमा भी विराजमान है। इस प्रकार नारायण धाम कृष्ण भगवान की महानता और मित्र के प्रति उनके अद्भुत प्रेम को समर्पित धाम है।
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