रविवार, 5 अप्रैल 2015

जीवन के 33 वर्ष एक अविश्वसनीय महल बनाने हेतु समर्पित कर दिए

शौक का कोई मूल्य नहीं होता यह एक प्रचलित मुहावरा है परन्तु बहुत से लोगों का शौक उनसे कुछ ऐसा करवा जाता है जो अविस्मरणीय बन इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है । इस तरह वह व्यक्ति भी अमर हो जाता है जिसने शौक के चलते ऐसी कोई कलाकृति तैयार की होती है । ऐसे ही एक व्यक्ति थे फ्रांस के ग्रामीण पोस्टमैन फर्दीनांद शेवल जिन्होंने अपने जीवन के 33 वर्ष एक अविश्वसनीय महल बनाने हेतु समर्पित कर दिए जिसमें स्तम्भ, मेहराबें तथा छोटी-छोटी कुटिया थीं ।

विधुर शेवल को फ्रांस में डाक बांटते समय अक्सर असामान्य आकार की चट्टानें मिला करती थीं । तब उन्होंने निश्चय किया और एक पहिए वाली ठेला गाड़ी लेकर वह रोजाना 18 मील का सफर तय करके खूबसूरत कंकर-पत्थर एकत्रित करने लगे । एक छोटे से शौक के तौर पर शुरू हुआ यह काम 1879 में एक ‘लाइफ प्रोजैक्ट’ बन गया । इस प्रोजैक्ट के परिणामस्वरूप सामने आया सर्वाधिक शानदार शौकिया भवन निर्माण कला का नमूना- ला पालाइस आइडियल ।


यह भवन कंकर-पत्थरों से निर्मित एक महल है जो कला का लामिसाल नमूना है ।फर्दीनांद शेवल ने 13 वर्ष की आयु में एक बेकर का चेला बनने के लिए स्कूल छोड़ दिया था । आगे चल कर उन्होंने डाक बांटने का काम शुरू कर दिया । अपनी उम्र के तीसरे दशक में जब उन्होंने असामान्य आकार वाली चट्टानें देखीं तो इस महल के निर्माण का विचार उनके मन में पैदा हुआ ।अपनी एक पत्रिका में उन्होंने लिखा था, ‘‘मैं इसका कारण जानने का इच्छुक था । एक स्वप्न में मैंने देखा कि मैंने एक महल, किला या गुफाएं निर्मित की थीं । मैंने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया क्योंकि मुझे लगा था कि वे मेरा मजाक उड़ाएंगे । मुझे खुद भी अजीब महसूस हुआ था । मैंने खुद से कहा कि क्योंकि प्रकृति की इच्छा है कि मैं ऐसी कलाकृति बनाऊं तो मैं ऐसा महल तैयार करूंगा ।’’


और इस तरह अस्तित्व में आया ला पालाइस आइडियल नामक महल जिसके लिए शेवल रात के समय काम किया करते थे । जो असामान्य पत्थर इस महल के निर्माण में इस्तेमाल किए गए उन्हें वह पहले तो अपनी जेब में भर कर लाते थे, फिर उन्होंने एक टोकरी का इस्तेमाल किया और अंतत: एक पहिए वाली ठेला गाड़ी का इस्तेमाल किया ।


भवन निर्माण की इस अद्वितीय कलाकृति पर ईसाईयत से लेकर हिंदू भवन निर्माण कला का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है । शेवल द्वारा निर्मित इस कलाकृति को ‘नेव आर्ट’ आर्कीटैक्चर की असाधारण उदाहरण का दर्जा दिया जाता है । भले ही 19 अगस्त, 1924 को फर्दीनांद शेवल का देहांत हो गया था परन्तु उनकी इस अद्वितीय रचना ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया ।

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