गुरुवार, 26 मार्च 2015

जरायम के नेटवर्क में फंसे बरेली के नौजवान



धार्मिक उन्माद, रुपये-पैसे का लालच, रईस बनने का जूनून या ब्रेन वाश...। तरीका कोई भी हो, दिल्ली में मुहम्मद यूसुफ की गिरफ्तारी से साफ है कि बरेली के युवा माफिया और आतंकी संगठनों के हथियार बन रहे हैं। दिल्ली में माफिया डॉन लक्कड़वाला का गुर्गा यूसुफ भी गरीबी से जूझ रहे पुराने शहर के एक परिवार का है। इसके साथ ही यह आशंका मजबूत हो गई है कि आतंकी संगठनों ने धीरे-धीरे ही सही, शहर के युवाओं तक अपना नेटवर्क तैयार कर लिया है। अब तक 5 युवक राष्ट्रविरोधी ताकतों की मदद करते पकड़े जा चुके हैं।




आतंकी संगठनों की मदद के बारे में सबसे पहले बरेली अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले के समय चर्चा में आया था। अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले में बरेली के चांद को खुफिया विभाग की सूचना पर गिरफ्तार किया गया था। वह पेशे से मैकेनिक था। उसके बाद बंगलुरू में विज्ञान मंदिर हमले की जांच में शीशगढ़ के जाफरपुर निवासी इरफान बंजारा का नाम सामने आया था। उसे कर्नाटक के कोलार से पकड़ा गया था। दो गिरफ्तारियों से आईबी के अफसर भी मानने लगे कि बरेली में युवकों को आतंकियों ने अपने मददगार के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कोहाड़ापीर का रहने वाला नमाजी भी राजस्थान के बाड़मेर सेक्टर से पकड़ा गया था जब वह सीमा पार करने की फिराक में था।




इन तीन गिरफ्तारियों से जो आशंका बनी, राजेश गुप्ता की गिरफ्तारी ने उस पर मुहर लगा दी थी। दिल्ली और लखनऊ के करीब बीच में होने के कारण बरेली को आतंकियों ने अब तक एक सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया है। यहां से दिल्ली, लखनऊ के साथ ही पूर्वांचल और बिहार तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। उसके बाद राजेश को एके 47 के साथ गिरफ्तार किया जाना खतरे की घंटी बजाने वाला रहा। अब मुहम्मद यूसुफ की गिरफ्तारी से साफ हो गया है कि बरेली के नौजवानों को जरायम की दुनिया में असलहे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

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