पाकिस्तान: बढ़ती लाशों के साथ फलफूल रहा है ताबूतों का कारोबार
लगभग एक दशक से इस्लामिक आतंक की मार झेल रहे पाकिस्तान में इंसान भले ही न पनप पा रहा हो मगर यहां उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के कई इलाकों में आतंकवाद के कारण गंभीर आर्थिक जीवन रेखा उभर कर सामने आ रही है। पाकिस्तान में आतंकवादियों के सिवाय किसी आम आदमी का लाशों के ढेर से क्या फायदा हो सकता है मगर यहां के ताबूत उद्योगों को यहां होने वाले आतंकी हमलों से खासा फायदा पहुंच रहा है। रिपोर्टस के मुताबिक कुछ सालों में यहां ताबूतों की बिक्री में काफी बढ़ोतरी हुई है।
हालांकि पाकिस्तान में लाश को ताबूत में ले जाने का चलन बिल्कुल भी नहीं है मगर यहां इंसानों को अपनी जान बम धमाकों या गोलीबारी में गंवानी पड़ती है ऐसे में शरीर के टुकड़े टुकड़े हो जाने पर इन लाशों को अंतिम संस्कार के समय ताबूत में रखकर ही ले जाना पड़ता है ताकि किसी तरह के संक्रमण से बचा जा सके। 2004 में अफगानिस्तान में अमेरिकी आक्रमण के बाद से यहां के ताबूत उद्योग फलने फूलने लगे। पाकिस्तान सरकार के मुताबिक 2004 से अब तक लगभग 50,000 के करीब लोगों की जान बम धमाकों व गोलीबारी में ही चली गई और तो और यहां के ताबूत निर्माताओं के पास ताबूत तक कम पड़ जाते हैं लेकिन दूसरी तरफ एक और सत्य है जो कि शर्मसार कर देता है एक अंग्रेजी समाचार पत्र के मुताबिक ताबूतों की बढ़ती डिमांड के कारण यहां कुछ दुकानदार इनकी कीमतें बढ़ा देते हैं और जब भी उन्हें किसी बड़े हमले के बारे में पता चलता है तो वो पहले से ही एडवांस बुकिंग भी कर डालते है।
लगभग एक दशक से इस्लामिक आतंक की मार झेल रहे पाकिस्तान में इंसान भले ही न पनप पा रहा हो मगर यहां उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के कई इलाकों में आतंकवाद के कारण गंभीर आर्थिक जीवन रेखा उभर कर सामने आ रही है। पाकिस्तान में आतंकवादियों के सिवाय किसी आम आदमी का लाशों के ढेर से क्या फायदा हो सकता है मगर यहां के ताबूत उद्योगों को यहां होने वाले आतंकी हमलों से खासा फायदा पहुंच रहा है। रिपोर्टस के मुताबिक कुछ सालों में यहां ताबूतों की बिक्री में काफी बढ़ोतरी हुई है।
हालांकि पाकिस्तान में लाश को ताबूत में ले जाने का चलन बिल्कुल भी नहीं है मगर यहां इंसानों को अपनी जान बम धमाकों या गोलीबारी में गंवानी पड़ती है ऐसे में शरीर के टुकड़े टुकड़े हो जाने पर इन लाशों को अंतिम संस्कार के समय ताबूत में रखकर ही ले जाना पड़ता है ताकि किसी तरह के संक्रमण से बचा जा सके। 2004 में अफगानिस्तान में अमेरिकी आक्रमण के बाद से यहां के ताबूत उद्योग फलने फूलने लगे। पाकिस्तान सरकार के मुताबिक 2004 से अब तक लगभग 50,000 के करीब लोगों की जान बम धमाकों व गोलीबारी में ही चली गई और तो और यहां के ताबूत निर्माताओं के पास ताबूत तक कम पड़ जाते हैं लेकिन दूसरी तरफ एक और सत्य है जो कि शर्मसार कर देता है एक अंग्रेजी समाचार पत्र के मुताबिक ताबूतों की बढ़ती डिमांड के कारण यहां कुछ दुकानदार इनकी कीमतें बढ़ा देते हैं और जब भी उन्हें किसी बड़े हमले के बारे में पता चलता है तो वो पहले से ही एडवांस बुकिंग भी कर डालते है।
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