बुधवार, 17 दिसंबर 2014

मंझी हुई शख्सीयत हैं राजस्थानी लोक गायक गाजी खान

मंझी हुई शख्सीयत हैं राजस्थानी लोक गायक गाजी खा

सिर पर राजस्थानी पगड़ी और चेहरे पर जानी-पहचानी मुस्कान। बिना किसी शास्त्रीय शिक्षा के सुर, लय और ताल की अनोखी संगत। ऐसी मंझी हुई शख्सीयत हैं गाजी खान, जो अपनी टोली में प्रमुख गायक हैं लेकिन कोई कलाकार अनुपस्थित हो तो वह उसके द्वारा बजाए जाने वाले वाद्ययंत्र बजाने में भी सक्षम हैं। हालाकि वह कभी स्कूल नहीं गए। जो भी सीखा, वह सब अपने घर से।  
विरासत में मिला संगीत

बकौल गाजी खान आज जो भी सीखा है वह परिवार की बदौलत है। संगीत का हर सुर, लय और ताल सबकुछ पिता जी ने सिखाया। या यूं कहें कि यह मुझे विरासत में मिला तो गलत न होगा। मेरे दादा और परदादा भी राजा-महाराजा के दरबारों में उनकी शौर्यगाथा गाते थे। गाजी खान नार्वे, स्पेन, इटली और जर्मन देशों में भी राजस्थान की मारवाड़ी शैली का परचम लहरा चुके हैं। उन्होंने बताया कि वहा लोग संगीत की इस धुन को बहुत पसंद करते हैं। वह इसे समझने की न सिर्फ कोशिश करते हैं बल्कि कई बार तो ऐसा मौका आया है जब वह सुनते-सुनते हॉल में डास करने लगते हैं।

संगीत ने बहुत कुछ सिखाया

मैं कभी स्कूल नहीं गया लेकिन अंग्रेजी, फ्रेंच, फारसी, सिंधी और गुजराती भाषाओं पर पकड़ है। बोल भी लेता हूं और लिख भी लेता हूं। यह संगीत के जरिये ही सीखा है, इसलिए मैं संगीत का कृतज्ञ हूं। अव्वल तो घर का माहौल भी संगीतमय था। सुबह भी सुरमई थी और रात भी। ऐसे में संगीत की ओर मेरा रुझान लाजिमी था। मैंने भी पिता से इसकी शिक्षा ली और पहली प्रस्तुति वर्ष 2000 में बाड़मेर में ही दी, जिसे खूब सराहा गया। बकौल गाजी खान हम दिल दे चुके सनम में निमोड़ा-निमोड़ा के रचयिता मेरे पिता भूंगर खान हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें