बुधवार, 3 दिसंबर 2014

बाड़मेर तपस्या मोक्ष मार्ग का अनूठा उपक्रम है - प्रियरंजना श्री

बाड़मेर तपस्या मोक्ष मार्ग का अनूठा उपक्रम है - प्रियरंजना श्री
साध्वीवर्या श्री प्रियरंजना श्री जी 54 वीं वर्द्धमान तप ओली का पारणा सम्पन्न
उमड़ा श्रद्धा का जन सैलाब
बाड़मेर 03.12.2014

परम पूज्य गुरूवर्या पारसमणी तीर्थप्रेरीका सुलोचना श्री जी म.सा. की विदुषी सुषिष्या प्रखरव्याख्यात्री साध्वीरत्ना प्रियरंजना श्री म.सा. के पावन निश्रा में एवं साध्वीवर्या साध्वी दिव्याजंना श्री जी साध्वी शुभाजना श्री जी आदि ठाणा के पावन सानिध्य में एवं हिम्मतनगर जैन श्री संघ के तत्वाधान में पारणा महोत्सव पाष्र्वमणी तीर्थ प्रेरिका गणरत्ना श्री सुलोचना श्री जी म.सा. की विदुषी सुषिष्या, प्रवचन प्रभाविका, मधुरभाषी साध्वीरत्ना श्री प्रियरंजना श्री जी म.सा. की 54 वीं वर्द्धमान तप ओली का पारणा हिम्मतनगर में प्रातः 10 बजे समारोहपूर्वक सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम का आगाज साध्वी प्रियरंजना श्री के मंगलाचरण से सम्पन्न हुआ। साध्वीवर्या ने कहा कि तपस्या और मोक्ष मार्ग अनूठा उपक्रम है, विरले ही व्यक्ति इस मार्ग पर चल सकते है तप करने से काया में मलीन है। शरीर स्वस्थ रहता है तप की अलाग से ज्ञान दर्षन चरित्र में आत्माज्ञान की महत्पूर्ण क्रिया होती है। तप से जीवन में शक्ति मिलती है। हमारे शरीर में दो प्रकार की विद्युत है एक आकर्षण जो बाह्य व्यापी उर्जा को भीतर खींचती है जिससे प्राण शक्ति बढती है दूसरे विकर्षण विद्युत यह भीतर के रोग एवं दूषित तत्वों को जलाती है। व्यक्ति जन्म से नहीं बल्कि कर्म से महान बनता है यह पुण्योदय एवं गुरूदेव की असीम कृपा से ही वर्धमान तप की ओली की आराधना सहज जप हो जाती है।

तत्पष्चात साध्वी शुभाजना श्री जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि तप के बिना मोक्ष संभव नहीं है तप की अनुमोदना हर व्यक्ति करता है तपस्या करना कठिन है साधारण व्यक्ति तपस्या नहीं कर सकते है। साध्वी दिव्याजना श्री ने कहा कि तप की महिमा जितनी कही जाये उतनी कम है तप को सभी वंदन करते है। तप से कर्मो की निर्जरा होती है तथा तप पूर्वकर्मी के उदय से ही तप पूर्वकर्मी के उदय से ही तप की आराधना होती है तप में यदि आप आज भी उतनी आस्था से करेगे तो आपको भी निष्चित लाभ मिलेगा। स्वर्ण उदय होगा अंधकार दुर होगा। गुरू चरणों के पद चिन्हों पर चलने वाले साध्वी प्रियरंजना श्री जी है तथा आठ प्रकार के कर्म जीव के मुख्य शत्रु है राग, द्वैष, कषाय, मोह, माया ये आत्मा के सद्गुणी का नाम कहने वाले है। ज्ञान दर्षन से ही स्वाभाविक परम शक्तियों को ढकने वाली है।

बाद में पारणे के समय साध्वीवर्या ने अभिग्रह पर विस्तार से बताया गया। जिससे क्षैत्र, द्रव्य, काल भाव इत्यादि का संयोग वष सभी अभिग्रह प्रतिफूल हो गये। जैसे ही अभिग्रह प्रतिफूल हुए उस समय श्रृद्धालुओं ने हर्ष-हर्ष जय-जय के नारों से वातावरण को धर्ममय बनाया एवं सभी के चेहरे खुषी से झूम उठे। बाद में पूज्य साध्वीवर्या को श्रद्धालुओं द्वारा पारणा करवाया गया। इस अवसर पर अहमदाबाद, बड़ौदा, रेणीगुटा, हिम्मतनगर, बाड़मेर सहित आस-पास के कई क्षैत्रों से श्रद्धालुओं उपस्थित रहें।

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