शनिवार, 6 दिसंबर 2014

डीडवाना की वीरांगना की दर्द भरी पुकार, सरकार को नहीं सैनिकों की परवाह


डीडवाना की वीरांगना की दर्द भरी पुकार, सरकार को नहीं सैनिकों की परवाह
नागौर| इस देश में शहीद होना बेकार है, यहां की सरकार को किसी की कोई चिंता नहीं है, कोई काम विरोध के बिना होता है क्या कभी' यह व्यथा है एक ऐसी पत्नी की, जिसने नक्सली हमले में अपना सुहाग खो दिया। यह शब्द दर्द के रूप में शहीद हेमराज की वीरांगना की जुबां से निकले जरूर, लेकिन यह देश, व्यवस्था और समाज की एक कड़वी सच्चाई भी है। वीरांगना ने अपने दर्द के साथ ही हमारे देश की राजनीति और व्यवस्था पर करारा तमाचा भी जड़ दिया।CRPF के सब इंस्पेक्टर हेमराज शर्मा की पत्नि उनकी देह से लिपट-लिपट कर जो सवाल कर रही है, वो सोचने लायक है। क्या सचमुच में CRPF के जवानों को बिना पूरी तैयारी के जंगलों में भेज देना क्या जरूरी था। देश के एक हेमराज का सर पाकिस्तानी काट कर ले जाते हैं और दूसरा हेमराज हमारे ही देश में नक्सलियों की गोलियों का शिकार हो जाता है और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है।



डीडवाना तहसील के मामडौदा गाँव के शहीद हेमराज शर्मा की वीरांगना ललिता का ये आक्रोश हर देश वासी की आवाज है जो सरकार से ये सारे सवाल पूछ रहे हैं। हमारे देश के जन प्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों को देश के लिए जान कुर्बान करने वालों की कितनी फिक्र करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।

हमारे देश में शहीदों को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दिन याद किया जाता है। आम जनता को भी शहीदों से लगभग कोई लेना-देना नहीं होता। देश की सीमाओं पर विपरित परिस्थितियों में दिन-रात जागकर हमारे सैनिक देश को महफूज रखते हैं, लेकिन देश की सरकारों को उन्ही सैनिकों की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं है।नक्सलियों और आतंकवादियों के हमले में न जानें कितनी ललिता अपने सुहाग को खो चुकी है, और न जाने कितनी बच्चियों और बेटियों के सिर से बाप का साया उठ चुका है। न जाने कितने मां-बाप के बेटे अपनी ड्यूटी से जीवित नहीं लौटे हैं। न जाने कितने मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा छिन चुका है, लेकिन हमारे देश की राजनीति ओर व्यवस्था को इससे कोई मतलब नहीं है। यही कारण है कि आज वीरांगना के मुंह से यह सच्चाई बयां हो गई।

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