गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

बाड़मेर सूचना के अधिकार को बनाया ग्राम सचिव का अधिकार



बाड़मेर सूचना के अधिकार को बनाया ग्राम सचिव का अधिकार
रिर्पोटर - सुरजन विश्नोई

धोरीमन्ना , उपखण्ड क्षेत्र के ग्रामपंचायत बांटा के ग्रामसेवक द्वारा एक आर. टी. आई कार्यकर्ता को सुचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत अपनी मन मर्जी से ग्रामसेवक द्वारा आवेदन खारिज करने का मामला प्रकाश मे आया है सरकार ने जनता को सूचना का अधिकार तो दिया है साथ ही यदि इसके उल्लघन करने पर जुर्मान की व्यवस्था भी की गई है इसके बावजूद भी विभागो द्वारा सूचना नही दी जाती है या फिर अपने स्तर पर नियम बनाते हुए सूचना के विस्तृत होने का बहाना बनाकर सूचना देने से मना कर दिया जाता है। जिससे साफ जाहिर होता है कि इस कानून को पंगु बनाने की कोशिशे लगातार हो रही है आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के प्रति सरकारी अमला कैसा गैर जिम्मेदाराना रूख अपनाता है इसका एक नमूना है यह भी है। पंचायती राज विभाग के ग्राम पंचायत बांटा के गोकलाराम ने ग्राम सेवक एवं पदेन सचिव से गत 5 वर्षों के विकास कार्यों एवं भूमि संबंधित पट्टो की जानकारी मांगी थी। चंूकी सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्रार्थी को सूचना एक माह में उपलब्ध करवायी जानी होती है परन्तु ग्राम सेवक द्वारा एक माह मे एक पत्र लिखकर प्रार्थी को अवगत करवाया कि आप द्वारा चाही गई सुचना इतनी विस्तृत है कि सुचना उपलब्ध कराने हेतु इस कार्यालय के संसाधन अननुपाती रूप से विचलित होते है लिहाजा सुचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(9) के तहत आपका आवेदन पत्र खारीज किया जाता है,। जबकी सुचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7(9) के तहत मांगी गई सुचना से कार्यालय का कोई संसाधन विचलित नही होता है कार्यकर्ता के अनुसार प्रथम अपील करने हेतु विकास अधिकारी के पास जाने पर उनके द्वारा भी अपील लेने से मना कर दिया। सूचना के अधिकार के तहत सूचना प्राप्त न होने एवं ग्राम सेवक द्वारा भ्रमित करने वाला बेतुका सा जवाब मिलने पर प्रार्थी को अनावश्यक समय एवं धन का खर्च करना पड़ रहा है। लेकिन प्रार्थी वर्तमान में सूचना पर आने वाले खर्च को वहन करने में तैयार है परन्तु ग्राम सेवक द्वारा सूचना देने मे होने वाली व्यय राशि न मांगकर सूचना देने से ही मना करना एक गंभीर मामला है। इसलिए प्रार्थी का अपील करने का अधिकार रखता है इसके बाद भी प्रथम अपील के बाद भी अपीलार्थी को कोई संतोषजनक न तो जवाब मिला और न ही सूचना। अंत में अपीलार्थी राज्य सूचना आयोग के पास अपील करने हेतु बाध्य हुआ। जाहिर है कि जवाब देने वाले अधिकारी ने आरटीआई की मूल भावना से खिलवाड किया और जवाब के नाम पर मात्र खानापूर्ति कर दी। ऐसे वाकये अक्सर सामने आते है जिसमें साफ दिखता है कि अधिकारी सूचना देने के नाम पर नागरिको को गुमराह करते है , मामले की लीपापोती करते है या सूचना मांगने वाले को हतोत्साहित करते है। यह भी है कि नौकरष्शह या तो कानून की जानकारी नही रखते या फिर सूचना देना अपनी नाक नीची होना समझते है। सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार और नाकामियो के उजागर होने के डर से सूचना नही देते है।

सुचना के अधिकार अधिनियम, 2005 धारा - 7(9)

किसी सुचना को साधानरणतया उसी प्ररूप में उपलब्ध कराया जाएगा, जिसमें उसे मांगा गया है, जब तक कि वह लोक प्राधिकारी कें स्त्रोतो को अननुपाती रूप से विचलित न करता हो या प्रश्नगत अभिलेख की सुरक्षा या संरक्षण के प्रतिकुल न हो।

इनका यह कहना है

मेरे द्वारा ग्रामसेवक से दो बार सुचना मांगी गई पर ग्रामसेवक द्वारा आवेदन खारिज कर दिया गया

गोकलाराम सियोल आर. टी. आई कार्यकर्ता

इतनी सुचना उपलब्ध कराने के लिए हमारे कार्यलय के संसाधन विचलित होते है

खुमानाराम ग्राम सेवक बांटा




मेने ग्रामसेवक को इसके बारे मे बता दिया है कि कार्यकर्ता को चाही गई सूचना की प्रतिया ज्यादा होने कारण अपिलार्थी को आप कार्यलय समय में बुलाकर अवलोकन करावे व जो अतिआवश्यक दस्तावेज हो उसकी प्रतिया उपलब्ध करावें ।

फिरोजखाॅन विकास अधिकारी धोरीमन्ना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें