मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

"दानवीर" जो कभी पेड़ के नीचे बैठकर बेचता था डायमंड



मुंबई। दीवाली के इस शुभ मौके पर हाल ही एक डायमंड कंपनी ने अपने कर्मचारियों को फ्लैट, कार और हीरे गिफ्ट बांटकर काफी चर्चा बटोरी थी।




लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण और रोचक है इस कंपनी के मालिक 33 वर्षीय घनश्यामदास ढ़ोलकिया के व्यापार शुरू करने और फिर उसमें बुलंदियों तक पहुंचने की कहानी है।




हाल ही मीडिया के साथ बातचीत करते हुए ढ़ोलकिया ने अपने इस प्रेरणादायी सफर को साझा किया।




विश्वास और भरोसे की कहानी

ढ़ोलकिया का मानना है कि हीरे की चमक से ज्यादा बेचने वाले पर भरोसा और विश्वास ग्राहकों को उनके पास खींच कर लाता है।
diamond king dholkia life story is full of trust and commitment


पेड़ के नीचे बैठकर बेचे हीरे

हीरा ढ़ालने के व्यापार से संबंधित परिवार के ढ़ोलकिया 1990 में हीरे का काम सीखने मुंबई आ गए। उस समय उनकी उम्र केवल 21 साल थी। यहां पर आकर उन्होंने दो साल एक डायमंड कंपनी में नौकरी की और इस व्यापार की बारिकियां सीखीं।




इसके बाद 1992 में घनश्यादास ढ़ोलकिया ने हरि कृष्ण एक्सपोर्ट्स के नाम से अपना खुद का सेल्स और मार्केटिंग ऑफिस खोल लिया।




आज मुंबई के पॉश इलाके में शानदार ऑफिस के मालिक घनश्याम ढ़ोलकिया ने एक समय पेड़ के नीचे बैठकर हीरे बेचा करते थे। ब्रोकर के विश्वास के भरोसे ही व्यापार चला करता था और किसी भी डील में पैसों की कोई गारंटी नहीं थी।




पहले ही साल 0.18 कैरेट के हीरे बेचकर ढ़ोलकिया ने एक करोड़ रूपए का व्यापार किया।




लाइफ के टर्निंग पाइंट

1994 में ढ़ोलकिया के एक इजरायली ग्राहक ने उनका नाम एक अंत्तराष्ट्रीय फर्म को रेफर किया।




2001 में जब उन्होंने 0.18 की जगह 0.96 कैरेट के हीरों का व्यापार प्रारंभ किया।




बिजनेस का बड़ा सबक

1993 में उनके एक ग्राहक ने उनको 27 लाख रूपए की चपत लगा दी। उसकेे बाद उन्होंने अपने रिस्क को बांटना सीखा ताकि कोई भी खराब डील उनके व्यापार को रोक नहीं सके।




रिश्तों की जीवन में महत्ता

अपने परिवार और कर्मचारी घनश्याम ढ़ोलकिया के लिए उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हैं।




उन्होंने 1993 से लेकर आज तक अपना अकाउंटेंट नहीं बदला। उनका बैंक हालांकि उनको ज्यादा ब्याज पर लोन देता होगा लेकिन वह उसके साथ ही काम करते हैं क्योंकि 1993 में इस बैंक ने उनको ऎसे खराब समय में 25 लाख रूपए दिए थे जब उनको कोई भी पैसे देने को तैयार नहीं था।




100 परसेंट एंप्लॉई सेटिस्फेक्शन

उनकी कंपनी का कोई भी कर्मचारी आज तक सैलेरी या खराब वातावरण की वजह से काम छोड़ कर नहीं गया। या तो वह रिटायर हुआ है या फिर उसने खुद का बिजनेस शुरू किया है।




उनकी कंपनी में सभी 6 हजार कर्मचारियों को रोजाना मुफ्त लंच खिलाया जाता है। मैनेजर और कारीगर सभी एक साथ बैठकर एक ही तरह का खाना खाते हैं।




कंपनी की ओर से किसी कर्मचारी या कस्टमर का पेमेंट कभी भी नहीं रोका गया। - 

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