शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

हनुमानगढ़ सद्साहित्य संस्कारों का विस्तार एवम परिष्कार करता है


हनुमानगढ़ सद्साहित्य संस्कारों का विस्तार एवम परिष्कार करता है
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हनुमानगढ़ 18 अक्टूबर । पुस्तक ज्ञान का बीज होती है जो हमारे मस्तिष्क की जमीन पर दया , क्षमा , करुणा , त्याग ,तप , सेवा संस्कार एवम मानवता पौध पनपाती है । निरन्तर पुस्तकों का सान्निध्य एवम पुस्तकों का सतत स्वाध्याय इस पौध को बढा़ कर फ़लित करती हैं । इस लिए हर घर में साज़-सज़ा की अनावश्यक भौत्तिक चीजों के संग्रह के बजाय अच्छी पुस्तकों का संग्रह किया जाना चाहिए ।यह उद्गार प्राचार्य एवम अर्थशास्त्री संतोष राजपुरोहित ने मरुधरा साहित्य परिषद एवम बोधि प्रकाशन , जयपुर की ओर से चाणक्य क्लासेज , हनुमानगढ़ जंक्शन में में चल रही पुस्तक प्रदर्शनी के दौरान शुक्रवार रात्रि को आयोजित " पुस्तक संस्कृति और संस्कार " संगोष्ठी में व्यक्त किए । इस अवसर पर चाणक्य क्लासेज के निदेशक राज तिवारी ने कहा कि ज्ञान कं संचयन एवम संकलन केवल मानव मस्तिष्कों से सम्भव नहीं है , इस हेतु पुस्तकें ही अंतिम निर्णायक होती हैं । इस लिए हर घर में कुछ हो न हो मगर एक समृद्ध पुस्तकालय अवश्य होना चाहिए ।

मरुधरा साहित्य परिषद के आयोजन सचिव राजू सारसर राज ने कहा कि घर में पुस्तकालय हो तो अवसाद के क्षणो को स्वाध्याय से कम किया जा सकता है । उन्होंने कहा कि विकसित राष्ट्रों के नागरिक अपने दैनिक जीवन में समय का बजट बनाते हैं और वे उस मे पुस्तकों के अध्ययन हेतु विशेष समय निर्धारित करते हैं । ऊंचे पदों पर आसीन अधिकतम अधिकारी अपने बाल एवम युवा अवस्था में अच्छे स्वाध्यायी रहे हैं । आज के जननायक हों अथवा उच्च अधिकारी उन्हें पुस्तकें ही उच्च पदों पर ले गई हैं ।

कथाकार एवम व्यंग्यकार गुरदीप सोहल ने कहा कि दुनिया के तमाम धर्म पुस्तकों के माध्यम से ही ज़िन्दा हैं । विश्व की तमाम संस्कृतियों का ज़िन्दा रहना भी पुस्तकों पर निर्भर है । सद्साहित्य संस्कारों का विस्तार एवम परिष्कार करता है वहीं निम्नतर साहित्य अपसंस्कृति का संसार रचता है । उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का उद्दाहरण देते हुए कहा कि यह ग्रंथ मनुष्य को मनुष्य बनने की सच्ची सीख देता है इस लिए इसे प्रत्यक्ष गुरु माना जाता है ।

साहित्यकार डा. प्रेम धींगडा़ ने कहा कि मनुष्य के मस्तिष्क की सीमाएं होती हैं और वह नश्वर भी है अत: वह ज्ञान का समूचित एवम स्थाई संचय नहीं कर सकता है । यह सब पुस्तकें अनंतकाल तक के लिए कर सकती हैं । आज तक का मानवीय अनुभव एवम ज्ञान पुस्तकों में ही संचित है इस लिए और कहीं भटकने की बज़ाय हमें पुस्तकों के सान्निध्य में ही जाना चाहिए । मरुधरा के संगठन मंत्री एवम पर्यावरण प्रेमी अशोक परिहार ने कहा कि प्रकृति ने ही पुस्तकों के जन्म का मार्ग प्रश्स्त किया है । कागज़ पेड़ से आया तो कागज़ ने किताब उपजाई है । हमें भविष्य की पुस्तकों के लिए पर्यावर्ण को भी बचाना होगा । उन्होंने जिला कलक्टर द्वारा ज़िले में बनाए जा रहे पुस्तकालयों की प्रशंसा करते हुए कहा कि पुस्तकालयों में संग्रहित की जा रही पुस्तकें पेडो़ं के बलिदान से ही जन्मीं हैं अत: इन में जितनी पुस्तकें हैं उतने ही पेड़ भी लगाने चाहिए ।

इस अवसर पर चाणक्य क्लासेज के प्रबन्धक श्री शिव पारीक ने कहा कि विद्यार्थी का सच्चा गुरु पुस्तक ही होती है , जो विद्यार्थी पुस्तकों से जी चुराता है वह अपने सपने कभी साकार नहीं कर सकता । एक शिक्षक को भी स्वाध्यायी होना चाहिए तथा उसे अपने विषय में निरन्तर अपडेट होते रहना चाहिए । यदि शिक्षक अपडेट नहीं है तो वह अपने शिष्यों को अंधकार की और ले जाता है । इस अवसर पर अजय भीम , संदीप पंचारिया , राकेश जांगिड़ , मोहन जांगिड़ , राजेश कड़वासरा ने भी विचार व्यक्त किए ।

इस अनौपचारिक गोष्ठी का संचालन करते हुए मरुधरा साहित्य परिषद के अध्यक्ष ओम पुरोहित कागद ने कहा कि ज़िले में युवाओं का पुस्तक पढ़ने के प्रति रुझान बढे़ इसी को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गई है जिस में भारी छूट पर अच्छा साहित्य उपलब्ध करवाया गया है । यह प्रदर्शनी 20 तक प्रात: 10 बजे से रात्रि 8 तक खुली रहेगी ।

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