गुरुवार, 11 सितंबर 2014

भविष्य पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं ऐसे व्यक्ति के नमस्कार करने से



तुलसीदास कृत रामायण में वर्णित है जब रावण माता सीता के हरण की मंशा लेकर अपने मामा मारीच के घर जाता है तो उन्हें स्वयं से झुक कर नमस्कार करता है। संस्कारों की दृष्टि से देखा जाए तो यह सही था रावण का अपने मामा को झुक कर ही नमस्कार करना बनता था मगर रावण राक्षसों का राजा और दंभी था। वह बिना अपने किसी स्वार्थ के किसी के सामने झुक नहीं सकता था। रावण के शिष्ट व्यवहार से मारीच समझ जाते हैं कि अब भविष्य में उन पर संकट के बादल मंडराने वाले हैं।
भविष्य पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं ऐसे व्यक्ति के नमस्कार करने से
रावण के डर से उन्होंने भी झुक कर रावण को प्रणाम किया और उसके आने का प्रयोजन पूछा। तब रावण ने मारीच से कहा राम और लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक और कान काट दिए हैं। मुझे उसके अपमान का बदला लेना है। रावण की बात की अवहेलना करने से मारिच को मृत्यु के घाट उतार दिया जाता। उनके आगे कुंआ था और पीछे खाई। रावण जैसे पापी और दुष्ट के हाथों मरने से अच्छा था वह प्रभु श्री राम के हाथों अपनी मृत्यु स्वीकार करें जिस से उन्हें मरने के उपरांत परम गति मिलें। मारिच ने शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए उनका साथ देना स्वीकार कर लिया।



हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पांच प्रकार के अभिवादन बतलाए गए हैं जिन में से एक है “नमस्कार”। नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है। संस्कृत में इसे विच्छेद करें तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया। नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नहीं। आध्यात्म की दृष्टी से इसमें मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है। नमस्ते करते समय दोनों हाथों को जोड़ कर एक कर दिया जाता है। जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गए।

आमतौर पर किसी को नमस्ते करना रिश्तों में प्रगाढ़़ता लाता है मगर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके द्वारा नमस्कार करना भविष्य में हमारे लिए संकट पैदा कर सकता है।



आईए जानें कैसे

1 जब कोई व्यक्ति स्नान कर रहा हो तो उसे नमस्कार करना उपयुक्त नहीं है। ऐसा करने से नमस्कार करने वाले और नहाता हुए व्यक्ति दोनों को असहजता अनुभव होने लगती है।

2 जिस व्यक्ति को आचार व्यवहार का उचित ज्ञान न हो ऐसे व्यक्ति नमस्कार के बहाने आपके मनोभावों को आहत कर सकते हैं।

3 अशुद्ध अवस्था में जैसे मृत्यु कर्म, मासिक धर्म अथवा अन्य ऐसा कोई संस्कार जिस से अपवित्रता की स्थिति में व्यक्ति सहज चित्तवृत्ति में न हो तो नमस्कार करना उचित नहीं है।



4 भाग रहे या व्यायाम कर रहे व्यक्ति को नमस्कार करने से उसका ध्यान भंग हो सकता है जिस वजह से उसे झटका या पदाघात हो सकता है।

5 जब कोई व्यक्ति आपकी नजरों के सामने हो तभी उसे नमस्ते करें अन्यथा दूर से व्यक्ति आपके द्वारा किए गए अभिवादन को देख नहीं पाएगा और आपको बुरा लगेगा। जिस कारण रिश्तों में खट्टास आ सकती है।

6 जल में तैर रहे या स्नान कर रहे व्यक्ति को नमस्कार न करें अन्यथा थोड़ी सी चूक होने पर उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है।



7 किसी नीच व्यक्ति का नमन करना भी दुखदाई होता है। उसका झुकना किसी भयंकर परेशानी का संकेत हो सकता है।

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