मंगलवार, 9 सितंबर 2014

आज प्रतिप्रदा श्राद्ध: जानें शुभ समय और पूजन विधि

आधुनिकता की दौड़ में युवा पीड़ी के अधिकतर लोगों को यह ज्ञान नहीं है कि श्राद्ध किस तरह से किया जाता है तथा युवा वर्ग श्राद्ध से जुडी शास्त्रीय विधि से भी अनिभिज्ञ हैं। तो हम अपने पाठकों को यह बता दें के पितृत्व की संतुष्टि और अपने कल्याण हेतु श्राद्ध परम आवश्यक माना गया है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है की श्राद्ध करने वाले की दीर्धायु प्राप्त होती है। पितृ कृपा स्वरुप श्राद्ध कर्ता को श्रेष्ठ संतान देते हैं। घर-परिवार में धन-धान्य में वृद्धि होती है। शारीरिक बल, पौरुष और सुंदरता में वृद्धि होती है तथा सांसारिक जीवन में सुख-समृद्धि हासिल होती है।

 सूक्ष्म जीवात्मा पूजन: शास्त्र स्कंदपुराण के अनुसार पितृ और देव योनि एक समान होती हैं। देवगण और पितृगण दोनों ही दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं। दूर की पूजा भी ग्रहण कर लेते हैं और दूर से की गई स्तुति से भी संतुष्ट हो जाते हैं। देवगण और पितृगण दोनों ही गंध तथा रस तर्पण से तृप्त होते हैं। जिस प्रकार मनुष्यों का आहार अन्न है, उसी भांति पितृगण का आहार अन्न का सार तत्व है। जैसे गोशाला में गाय का बछड़ा अपनी बिछड़ी हुई मां को किसी न किसी भांति ढूंढ़ ही लेता है, उसी भांति मंत्रोच्चारण द्वारा दी हुई आहुतियों का द्रव्य को पितृगण किसी न किसी प्रकार प्राप्त कर ही लेते हैं।

प्रतिपदा श्राद्ध का ज्योतिषीय मत: आज मंगलवार दिनांक 09.09.14 के दिन प्रतिप्रदा का श्राद्ध मनाया जाएगा। महूर्त अनुसार प्रतिपदा तिथि मंगलवार दिनांक 09.09.14 को प्रातः 07 बजकर 09 मिनट से प्रारंभ होकर बुधवार दिनांक 10.09.14 अपरान सूर्योदय पूर्व 03 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। ध्यान दिया जाए के पितृपक्ष में इस वर्ष पप्रतिप्रदा तिथि का क्षय हुआ है। अतः श्राद्ध मात्र अभिजीत महूर्त में ही किया जा सकता है। आज सूर्यौदय प्रातः 06 बजकर 06 मिनट पर होगा तथा सूर्यास्त शाम 06 बजकर 29 मिनट पर होगा। दिनमान 12 घंटे और 23 मिनट का है रहेगा। अतः अभिजीत महूर्त का समय मध्यान के समय दोपहर 11 बजकर 54 मिनट से प्रारंभ होकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा।

कैसे करें प्रतिप्रदा श्राद्ध कर्म: मंगलवार दिनांक 09.09.14 को पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र विद्धमान रहेगा। अतः श्राद्धकर्ता को चाहिए की वो पितृगण के निमित सरसों के तेल का दीपक जलाएं। लाल-पीले मिश्रित फूल अर्पित करें। सुघंधित धूप अर्पित करें। लाल चंदन अर्पित करें। पूड़ीयों के साथ बेसन के हलवे का भोग लगाएं। उसके बाद ब्राहमणों के पांव धोकर उनका सत्कार करकर उन्हें पूड़ीयों, बेसन के हलवे तथा सात्विक सब्ज़ी का भोजन करवाएं तथा वस्त्र पात्र और उचित दक्शिबा देकर उनका आशीर्वाद लें।

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