शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

धार्मिक सौहार्द का प्रतीक काठमांडू का माला बाजार



नेपाल की राजधानी काठमांडू के ठीक बीचों-बीच स्थित बाजार में कृत्रिम मोतियों से बनी मालाएं तथा चूडिय़ां आदि बेचने वाली करीब 50 दुकानें हैं जिनमें से अधिकतर उन मुस्लिमों की हैं जिनके पूर्वज करीब 500 साल पूर्व कश्मीर से आकर नेपाल में बसे थे। वे लोग 1484 से 1520 के मध्य मिस्त्री तथा चूडिय़ों के व्यापारियों के तौर पर काठमांडू आए थे। उनमें से कुछ ने राज दरबार में संगीतकारों के तौर पर काम भी किया।
धार्मिक सौहार्द का प्रतीक काठमांडू का माला बाजार


अब ये माला विक्रेता काठमांडू के जन-जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं और धार्मिक सौहार्द की एक उम्दा मिसाल भी पेश करते हैं। इन दुकानों पर अधिकतर हिन्दू खरीदार आते हैं जबकि इस बाजार की अधिकतर दुकानें कश्मीरी मुस्लिमों के वंशजों की हैं। श्रावण माह तथा राखी के त्यौहार के दौरान तो इस बाजार में व्यापार खासा बढ़ जाता है जब हिन्दू महिलाएं दोस्तों तथा परिवार वालों के लिए रंग-बिरंगे मोतियों की मालाएं, ब्रैसलेट तथा चूडिय़ां खरीदती हैं।



ये दुकानें 7-8 पीढिय़ों से भी अधिक समय से मुस्लिम परिवारों द्वारा चलाई जाती रही हैं परंतु अब नई पीढ़ी नए कामों की तरफ रुख कर रही है। इस बाजार में अपनी दुकान चलाने वाले ख्वाजा असद शाह का बड़ा बेटा नेपाल के एक लोकप्रिय रैप बैंड का सदस्य तथा सफल फिल्म निर्माता है। उनका छोटा बेटा एक शिक्षक है जबकि उनकी बहू स्थानीय रेडियो स्टेशन में काम करती है।




पहले इस बाजार में मोती तथा चूडिय़ों के व्यवसाय पर एकाधिकार रखने वाले मुस्लिमों को अपनी अगली पीढ़ी के इस काम में कम रुचि लेने के साथ एक और चुनौती (चीन से आयात होने वाले सस्ते मोतियों) का सामना भी करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि पहले काठमांडू के इस बाजार में चैक गणराज्य से ही इन्हें आयात किया जाता था।

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