गुरुवार, 3 जुलाई 2014

दिल्ली के धार्मिक और पर्यटन स्थल

दिल्ली के धार्मिक और पर्यटन स्थल 

निज़ामुद्दीन दरगाह


यह दिल्‍ली का प्रमुख स्‍थल है । यहां विख्‍यात संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का मकबरा है। इसके परिसर में एक टैंक है जिसके चारों तरफ कई अन्‍य ऐतिहासिक मकबरे हैं। यहां अमीर खुसरो और सम्राट शाहजहां की पुत्री राजकुमारी जहांआरा की कब्रें भी हैं। साल में दो बार एक बारी हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया और दूसरी बार अमीर खुसरो की जयंती पर मेला आयोजित किया जाता है और जब सम्‍पूर्ण भारत से तीर्थ-यात्री यहां आते हैं तो यह स्‍थान जीवंत हो जाता है।




जामा मस्जिद

लालकिला के निकट यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। प्रत्‍येक शुक्रबार को मध्‍याह्न में दो घंटों के दौरान यह गैर-मुस्लिमों के लिए बंद कर दिया जाता है। कुछ मस्जिदों में से यह भी एक मस्जिद है जहां महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं। उपयुक्‍त पोशाक पहनकर जिसे उत्‍तरी गेट से किराये पर लिया जाता है, और नंगे पांव जाना यहां अनिवार्य है। इसके प्रांगण में 25000 तक श्रद्धालु समाहित हो सकते हैं। शाहजहां की इस भव्‍य वास्‍तुकला की सौगात 1658 में पूरी हुई थी इसके तीन द्वार हैं और चार मीनार तथा दो छोटी मीनारें हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दिन के किसी भी पहर में, किसी भी दिशा से देखें तो यह एक समान दिखेगा इसकी भव्‍यता आपको अवश्‍य रोमांचित करेगी।



गुरूद्वारा रकाब गंज

संसद भवन के नजदीक इसका निर्माण 1732 में लक्‍खी बंजारा ने कराया था जिन्‍होंने शहीद सिख गुरू तेगबहादुर जी का अंतिम संस्‍कार किया था। इसमें सिक्‍ख गुरूद्वारों की स्‍थापत्‍य शैली का अनुकरण किया गया है। एडविन ल्‍यूटन की टीम ने केवल ये ही कहा कि इस सिक्‍ख धार्मिक स्‍थल को “किसी भी सूरत में विस्‍थापित नहीं किया जा सकता।”



गुरूद्वारा शीशगंज

लालकिला के सामने चांदनी चौक से थोड़ी दूरी पर गुरूद्वारा शीश गंज स्थित है। यह गुरूद्वारा सिक्‍खों के नौवें गुरू तेगबहादुर की याद में बनाया गया था। जिनका यहां 1675 ई. में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर इस्‍लाम न कबूलने के फलस्‍वरूप इनका शीश काट दिया गया था। आज भी उस बरगद के वृक्ष को देखा जा सकता है जहां उन्‍हें शहीद किया गया था और वह अपनी कैद के दौरान जिस दीवार पर बैठकर वे दैनिक स्‍नान करते थे उसे देखा जा सकता है।


बहाई टैम्‍पल

नेहरू प्‍लेस के पूर्व में यह मंदिर “कमल के फूल” के आकार में निर्मित किया गया है और बहाई टैम्‍पल श्रृंखला के तहत यह विश्‍व का सातवां और अंतिम टैम्‍पल है । इसे 1986 में पूरा किया गया और इसके आस-पास हरे-भरे मनमोहक बाग हैं। वास्‍तुविद् फारीबर्ज सबहा ने प्रतीक के रूप में “कमल” को चुना जो हिन्‍दुत्‍व बुद्धवाद, जैनवाद और इस्‍लाम सभी में सर्व ग्राहय प्रतीक है।

किसी भी समुदाय या सम्‍प्रदाय के अनुयायी यहां आकर प्रार्थना या ध्‍यान कर सकते हैं। पुष्पित फूल-पंखुड़ियों के आस-पास यहां पानी की नौ पुलियाँ हैं। जिसे प्राकृतिक प्रकाश द्वारा प्रकाशमय कराया गया है। जब इस पर फ्लडलाइट डाली जाती है तो सायंकाल में यह गौधूलि का अदभुत दृश्‍य प्रदान करता है।

खुलने का समय (रविवार को बंद रहता है) : प्रात: 8.30 से 12.30 और सायं 4.00 से 7.30 बजे तक।


लक्ष्‍मी नारायण मंदिर

इसे बिरला मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह दिल्‍ली का प्रमुख मंदिर और पर्यटकों के लिए दर्शनीय–स्‍थल है। इसे उद्योगपति जी. डी. बिरला ने 1938 में बनवाया था। यह सुंदर मंदिर कनॉट प्‍लेस (राजीव चौक) के पश्चिम में स्थित है। यह मंदिर लक्ष्‍मी (संपन्‍नता की देवी) और नारायण (प्रजापति/संरक्षक) को समर्पित है इस मंदिर का उद्घाटन महात्‍मा गांधी ने इस शर्त पर किया था कि इसमें सभी जाति वालों को प्रवेश की अनुमति दी जाए।


अहिंसा स्‍थल

कुतुब के पीछे एक छोटी सी ऊंची पहाड़ी पर महावीर की एक बड़ी प्रतिमा स्‍थापित की गई है। जिसे 1980 के दशक में स्‍थापित किया था। इसके आस-पास के क्षेत्र को समर्पित भाव से विकसित करके बाग में परिवर्तित किया गया है। इसे “अहिंसा स्‍थल ”या “एरिया ऑफ पीस” के नाम से पुकारा जाता है।


गुरूद्वारा बंगला साहिब

यह कनॉट प्‍लेस से आधा किलोमीटर की दूरी स्थित है। जब 1664 में सिक्‍खों के अष्‍टम गुरू हरकृष्‍ण देव इस “हवेली” में शाही मेहमान के तौर पर रह रहे थे तो उसके बाद मिर्ज़ा राजा जयसिंह ने इस “हवेली” को गुरूद्वारा के रूप में समर्पित किया था। इसके बाद यह सिक्‍खों का धार्मिक स्‍थल बना और आज इसे बंगला साहिब के नाम से जाना जाता है। ऐसी जनश्रुति है कि इस मंदिर के अंदर जो जल का तालाब जिसे गुरू हरिकृष्‍ण देव ने पवित्र किया और इसके जल से चेचक और हैजा के रोगियों को चंगा किया था और आज भी जिनका विश्‍वास है, उन्‍हें उसका जल वितरित किया जाता है। सिक्‍ख इतिहास को दर्शाने वाला एक संग्रहालय भी गुरूद्वारा परिसर में स्थित है।




इस्‍कान मंदिर

हरे कृष्‍णा मूवमेन्‍ट के सौजन्‍य से इस बेहतरीन मं‍दिर का निर्माण किया गया है। और इस अदभुत मंदिर को अवश्‍य देखा जाए। न यह केवल मंदिर बल्कि यहां हरे कृष्‍णा सम्‍प्रदाय और ड्राविनिज़्म व आंतरिक विज्ञान के रहस्‍यात्‍मक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करने के लिए अत्‍याधुनिक मल्‍टी‍मीडिया शो में एनीमेशन साउंड एन्‍ड लाइट, पेंटिंग डायोरामस तथा शिल्‍पकला का प्रयोग किया जाता है। राधा और कृष्‍ण की हस्‍त-निर्मित चित्रकला इस मंदिर को सुसज्जित बनाती है। इसके परिसर में गोविन्‍दा नाम रेस्‍तरां में कोई भी लजीज़ शाकाहारी भोजन का आनन्‍द उठा सकता है।


सेन्‍ट जेम्‍स चर्च

कश्‍मीरी गेट से थोड़ी दूरी पर स्थित सेन्‍ट जेम्‍स गिरजाघर जेम्‍स स्किनर ने निर्मित कराया और 1836 में प्रतिष्ठित किया गया था। दिल्‍ली का यह बेहद पुराना गिरजाघर है। इसका निर्माण ग्रीक क्रास शैली के साथ प्राचीन पश्चिमी वास्‍तु-शैली में किया गया है। क्रॉस के तीनों भुजाओं में पोर्टिको बनाई गई है। जबकि पूर्वी भुजा को वदिका का रूप दिया गया है। गिरजाघर का मध्‍य क्षेत्र एक गुम्‍बद से ढका है जो ब्रर्नेलैस्की द्वारा निर्मित फलोरेन्‍स केथेड्रल के गुम्‍बद से मेल खाता है।


सेन्ट थॉमस चर्च

मंदिर मार्ग, नई दिल्‍ली स्थित इस चर्च का निर्माण 1930-32 में हुआ था। यह उन भारतीयों के लिए बनाया गया था जिन्होंने ईसाई धर्म को अपनाया था। यह लाल ईंटों से निर्मित है जो वास्‍तुविद वॉल्‍टर जार्ज की प्रिय सामग्री थी।


सेक्रेड हार्ट केथेड्रल

दिल्‍ली की यह शानदार और अदभुत चर्च इमारत है। यह कनॉट प्‍लेस में गुरूद्वारा बंगला साहिब के सामने गोल डाकखाने के निकट स्थित है। इस चर्च की संरचना फादर ल्‍यूक ने तैयार की थी और तत्‍कालीन सुप्रसिद्ध वास्‍तुविद हेनरी मैडॅड ने निर्मित कराया था । फादर ल्‍यूक ने 14 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी जो दो स्‍कूलों सेन्‍ट कोलंबिया और कॉन्‍वेन्‍ट ऑफ जीसस एन्‍ड मैरी के मध्य स्थित है । चर्च का मुख्‍य वेदिका शुद्ध मार्बल की बनी है और विशेष अवसरों तथा क्रिसमस आदि पर चर्च की घंटियों को तरन्‍नुम में बजाया जाता है। 1930 में निर्मित केथेड्रल ऑफ सेक्रेड हार्ट दिल्‍ली में नायाब स्‍थापत्‍यकला की निशानी है।




बौद्ध मंदिर

यह मंदिर मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर की आधारशिला 31 अक्‍टूबर, 1936 को रखी गई थी और 18 मार्च, 1939 को महात्‍मा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था।



हनुमान मंदिर

इसे महाराजा जयसिंह ने उसी दौरान बनाया था जब जन्‍तर-मन्‍तर निर्मित कराया था। तब से इसकी मौलिक संरचना में कई परिर्वतन किए जा चुके हैं। यहां प्रत्‍येक मंगलवार और शनिवार को मेले जैसी बहार आ जाती है। बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित यह मंदिर जन्‍तर मन्‍तर से दो-तीन मिनट की दूरी पर है।



छतरपुर मंदिर

सुविख्‍यात छतरपुर मंदिर कुतुबमीनार से 4 किलामीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर का परिसर तीन भागों में विभाजित किया गया है। मुख्‍य मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। दूसरा भाग का मंदिर देवी लक्ष्‍मी और भगवान गणपति को समर्पित है जबकि तीसरा भाग मंदिर के संस्‍थापक सन्‍त बाबा नागपाल को समर्पित है। यह विशालकाय क्षेत्र में स्‍थापित है जिसमें कई मूर्तियां पत्‍थरों और लकड़ी से उकेरकर बनाई गई है। आज आधुनिक हिन्‍दू मंदिरों में जो शैली और भव्‍यता विलुप्‍त हो गई थी उसे यहां सफेद संगमरमर के व्‍यापक प्रयोग द्वारा पुनजीवित किया गया है। दशहरा और नवरात्रों में सितंबर-अक्‍टूवर के दौरान बड़ी संख्‍या में श्रद्धालु यहां एकत्रित होते हैं। यह मंदिर सदैव खुला रहता है और यहां देवी दुर्गा को समर्पित संगीत बजता रहता है।




कैथेड्रल चर्च ऑफ रिडेम्‍पशन

मध्‍य दिल्‍ली के केन्‍द्रीय टर्मिनल के निकट एक भव्‍य भवन स्थित है। हेनरी मेड द्वारा डिजाइन चर्च की आधार शिला 1927 में लार्ड इर्विन ने रखी थी। 15 फरवरी 1931 को लाहौर के बिशॅप ने इसे प्रतिष्ठित किया था। इस चर्च का निर्माण कार्य 1935 में पूरा हुआ, यह चर्च एक क्रॉस-प्लान पर निर्मित हुआ जिसका प्रवेश-द्वार पश्चिम में है और पूर्व में एक वेदिका है।

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